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जोधपुर-इंडियन म्यूजिक ‘धरोहर’ ने धरी गुजरे दौर के भुलाए संगीत की नई नींव

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जोधपुर-इंडियन म्यूजिक  ‘धरोहर’ ने धरी गुजरे दौर के भुलाए संगीत की नई नींव
Exhibition of Old Records and Gramophone Players in jodhpur
Exhibition of Old Records and Gramophone Players in jodhpur

जोधपुर। इंडियन म्यूजिक आर्काइज एंड रिसर्च सेंटर जोधपुर तथा संगीत किसलय संस्थान के सयुंक्त तत्वावधान में गत दिनों धरोहर नाम से पुराने रिकॉर्ड्स एवं ग्रामोफोन प्लेयर्स की एक प्रदर्शनी जोधपुर के चौपासनी हाऊसिंग बोर्ड स्थित संस्थान परिसर में लगाई गई।

इंडियन म्यूजिक आर्काइज एंड रिसर्च सेंटर जोधपुर

इस अनोखी एग्जीबिशन में बतौर मुख्य अतिथि राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश गोपाल कृष्ण व्यास, विशिष्ट अथिति के रूप में विख्यात इतिहासविद ज़हूर खां मेहर मौजूद रहे। इस प्रर्दशनी में शहर के नामचीन कलाकार, चित्रकार, थियेटर आर्टिस्ट और संगीत प्रेमी उपस्थित थे।

पुराने गानो का मज़ा

यहां 70-80 साल के बालक” चहचहा रहे थे उनकी उम्र मानों उन गानों के सामने छोटी हो गई जो कभी उनके होंठो पर सजे रहते थे। मैंने पूछा एक उम्रनशीं से कि आपको यहां कैसा लग रहा है..? मेरा कांधा पकड़ लिया और चहक कर बोले-ये वो यादें है जिनको मैं अपनी कमसिनी में गुनगुनाया करता था। प्रदर्शनी के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि सहित संगीत किसलय संस्थान के प्रशिक्षु छात्र-छात्राओं ने पुराने सदाबहार गीतों की प्रस्तुति दी और माहौल को 60-70 के दशक से जोड़ दिया।

इस कार्यक्रम में स्वागत भाषण गिरधारीलाल विश्वकर्मा ने दिया और संचालन सतीश बोहरा ने किया। धरोहर प्रदर्शनी ने जोधपुर की उन शख्सियतों को जुबां दे दी जो सालों से मनलायक लफ़्ज़ों को तरस रही थी। संगीत किसलय संस्थान की चुप्पी ओढ़े दीवारें भी मानो इस म्यूजिकल इवेंट से सरगमा गई। उसकी मिट्टी गारे और ईंटों से 100 साल पुराना संगीत बह रहा था, जिसमें ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स के पुराने प्रेमी गलबहियां डाले मूंदी आंखों और प्यासे कानों से सबकुछ भुला कर अपनी उस दुनियां में विचर रहे थे जो कभी उनके सपनों की वादियां हुआ करती थी।

इंडियन म्यूजिक आर्कवाईज

इंडियन म्यूजिक आर्कवाईज की सदारत में इस दो दिनी रिकॉर्ड्स प्रदर्शनी में ना सिर्फ बुजुर्ग ही खुश दिखे, वरन नई पीढ़ी के वो लोग भी आनंदित होते नजर आए जिनको अपनी इस विरासत से बेहद प्यार है।

इंडिया विषय पर अपना लाइव प्रेजेंटेशन

प्रदर्शनी के दूसरे दिन विश्वकर्मा ने जर्नी ऑफ ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स इन इंडिया विषय पर अपना लाइव प्रेजेंटेशन दिया। इसमें उन्होंने पुराने जमाने के एक तरफा रिकॉर्डिंग वाले ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड की कार्यप्रणाली के बारे में भी बताया। उन्होंने जानकारी दी कि 1910 से पहले रिकॉर्ड एक तरफ वाले ही बनते थे। साल 1910 के बाद दो तरफा रिकॉर्ड्स बाजार में आए।

अपने उद्धबोधन में उन्होंने गानों के मेट्रिक्स नम्बर की क्लासिक जानकारी देते हुए बताया कि ये मेट्रिक्स नम्बर किसी भी गीत की पहचान होती है और ये एक यूनिक नम्बर होता है जिसे सिर्फ उसी गीत के लिए जाना जाता है। इसके अलावा भारत में रिकार्ड्स बनाने वाली कंपनियों के बारे में विस्तार से बताया गया और हर रिकॉर्ड कंपनी के रिकार्ड्स को बजाकर सुनाया गया इन दुर्लभ रिकार्ड्स को सुनकर सुनाने वाले अभिभूत हो गए।

हिंदी फिल्म ‘माधुरी’ का रिकॉर्ड

1905 में बना रिकॉर्ड भी यहां रखा गया था। मारवाड़ी का 1914 में बना रिकॉर्ड भी आकर्षण का केंद्र रहा। साल 1932 में बना हिंदी फिल्म ‘माधुरी’ का रिकॉर्ड भी रखा गया था यह पहला फ़िल्मी रिकॉर्ड था।

आप सरप्राइज हो जाएंगे उम्र से भी कई ज्यादा पुराने संगीत को यहां जीवंत सुन कर, अंशुला कोठारी कहती है- हमने इनके बारे में सिर्फ सुना था और गूगल पर पढ़ा था कि संगीत ऐसे संजोया जाता था..रूबरू इनको देखना रोमांचित करता है। प्रर्दशनी देखने दिल्ली से संगीतप्रेमी सुधीर कपुर और बख्शीश सिंह विशेष रूप से जोधपुर पधारे थे। उन्होंने भी इस एग्जीबिशन की तारीफ करते हुए कहा कि ये सिलसिला लगातार जारी रहना चाहिए।

संयोजक गिरधारीलाल विश्वकर्मा

प्रर्दशनी के संयोजक गिरधारीलाल विश्वकर्मा कहते हैं कि हमने इस धरोहर में हजारों गाने बचा कर रखे हैं और इनका डिजिटाइजेशन करके नई पीढ़ी को उपलब्ध करवा रहे हैं। हिंदी, मारवाड़ी और राजस्थान के दूसरे भागों के अपने जमाने के लोकप्रिय गायक, गायिकाओं की आवाज़ को फिर से सुनना एक नायाब और अनूठा अनुभव देता है।

दुर्लभ गानों का डिजिटाइजेशन

संगीत किसलय संस्थान के सतीश बोहरा कहते है कि इस संगीत यज्ञ में हमारी आहुतियां निश्चित रूप से इस सुगंध को दूर तक पहुंचाने का काम करेगी। विश्वकर्मा ने आगंतुकों को भारत की पुरानी और नई रिकॉर्ड्स कंपनियों की डिटेल्स बताई तथा उनके सामने ग्रामोफोन पर रिकॉर्ड्स प्ले करके गाने भी सुनाए।

उन्होंने बताया कि उनके संग्रहालय में इन दुर्लभ गानों का डिजिटाइजेशन किया जा रहा है। लगभग 20 हजार गानों को डिजिटाइज कर दिया गया है। इनमें हिंदी के अलावा राजस्थानी लोकगीत, सिंधी गीत और अन्य अनेक गाने शामिल है। कुल मिला कर ये दो दिन का सुरसंगम जोधपुर के म्यूजिक लवर्स के लिए एक यादगार आयोजन बन गया था। हम आशा करते है कि इस तरह के आयोजन भविष्य में भी होते रहेंगे और संगीत प्रेमी इसका लाभ उठाते रहेंगे।