महाराष्ट्र, भाजपा ने एक बार फिर दिखा दिया कि मौजूदा देश की राजनीति सबसे बड़े खिलाड़ी हम ही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले अमित शाह ने रातों-रात में शिवसेना से सत्ता कैसे छीनकर बता दिया कि हम ही राजनीति के महारथी हैं। शुक्रवार रात तक शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज होने के सपने देख रही थी।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भनक तक नहीं रही होगी कि सुबह की सियासी तस्वीर कुछ और होगी। महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना को ‘न खुदा मिला न विसाले सनम’ वाली कहावत फिट बैठ रही है यानी न मुख्यमंत्री का पद मिला न ही राज्य में सत्ता का सुख। साथ ही भाजपा से 30 साल पुराना रिश्ता भी टूट गया।
सब कुछ लूटने के बाद उद्धव ठाकरे आज राजनीति के चौराहे पर इस प्रकार खड़े हुए हैं कि उनसे अब बस सहानुभूति दिखाई जा सकती है। कम से कम उद्धव यह तो सोच लेते कि वह किस पार्टी से टक्कर ले रहे हैं। आज सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री की पद की शपथ लेते हुए राज्य में शिवसेना को उसकी हैसियत बता दी है। आइए आपको बताते हैं शुक्रवार रात की सिलसिलेवार घटना क्या रही।
शिवसेना ने सरकार बनाने की रात में कर ली थी पूरी तैयारी
शुक्रवार को वर्ली में नेहरू सेंटर में राज्य में सरकार बनाने की कवायद तेज हुई। एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के बीच बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री पद के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नाम की सहमति बनी। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने खुद इसकी घोषणा की। उसके बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय रावत मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल की तैयारी में लग गए थे।
लेकिन शनिवार सुबह जैसे शिवसेना और उद्धव ठाकरे के पैर से जमीन खिसक गई हो। ‘यही है राजनीति का भीतर का चेहरा’, जिसे आम लोग जान नहीं पाते हैं। सच्चाई यह है राजनीति के अंदर एक और राजनीति होती है वह आज सुबह महाराष्ट्र में दिखाई दी।
भाजपा ने शिवसेना को बता दिया कि बड़े भाई की भूमिका में हम ही थे और रहेंगे
शिवसेना पिछले 15 दिनों से भारतीय जनता पार्टी को आंखें दिखा रही थी और बड़ा भाई बनने का प्रयास करने लगी थी। इन सबके बावजूद भाजपा शांत थी लेकिन राजनीत में गुणा-भाग करने में लगी हुई थी। शिवसेना ने यह समझा कि भाजपा अब खामोश है, जबकि ऐसा हुआ नहीं भाजपा ने ऐनमौके पर शिवसेना को बता दिया कि हमसे टक्कर लेने का यही हश्र होता है।
राजनीति में सब कुछ मुमकिन है। कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता । कौन कब किसके साथ आ जाए, कहा नहीं जा सकता। शनिवार सुबह कुछ ऐसा ही देखने को मिला। 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित किए गए थे। बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीट मिलीं। महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की जरूरत होती है। 56 सीटों वाली शिवसेना भाजपा को दरकिनार कर राज्य में सरकार बनाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन भाजपा ने उसका पूरा गेम प्लान ही पलट दिया है।
शिवसेना काे जिद पड़ी भारी
शिवसेना ने बीजेपी के सामने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद बांटने की शर्त रख दी। बीजेपी तैयार नहीं हुई और शिवसेना दूसरी पार्टियों के साथ सरकार बनाने के विकल्प तलाशने में जुट गई। हालांकि, शुरुआत में एनसीपी और कांग्रेस की ओर से यही कहा गया कि शिवसेना और बीजेपी ही मिलकर सरकार बनाएं क्योंकि उनके पास आंकड़े हैं। मगर शिवसेना भाजपा को दरकिनार कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाना चाह रही थी।
शिवसेना ने 30 साल सहयोगी रही बीजेपी पर जमकर हमला बोला। फिर कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच सरकार गठन पर बातचीत शुरू हुई। कई दौर की बैठकें चलीं। कभी शरद पवार सोनिया गांधी से मिले, कभी उद्धव से। कभी तीनों पार्टियों के नेताओं ने समीकरणों पर बात की। आखिर में शुक्रवार रात तक लगभग शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनना तय हो गई थी लेकिन शनिवार सुबह भाजपा ने शिवसेना के सपने को चकनाचूर कर खुद सत्ता पर काबिज हो गई।
शिवसेना को लगा बड़ा झटका
जिसने यह खबर सुनी, उसे शुरुआत में यकीन नहीं हुआ और फिर हैरान होने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लेकिन सबसे बड़ा झटका शिवसेना को लगा। शिवसेना मुख्यमंत्री पद के ख्वाब देखकर राजनीति में अपना कद बढ़ाने पर विचार कर रही थी। लिहाजा पार्टी ने बीजेपी से अलग होने का फैसला किया और अपने हिंदुत्व के एजेंडे को भी दरकिनार कर एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने पर विचार किया।
लेकिन अचानक बाजी पलट गई और शिवसेना खाली हाथ रह गई। ऐसे में न तो शिवसेना को मुख्यमंत्री पद मिला, न 50-50 फॉर्मूला काम आया और वह भाजपा से अलग होकर राजनीति के मैदान में सब कुछ गंवा बैठी है। शायद आज की नई राजनीति की यही परिभाषा है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार