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उत्तराखंड: कल्पनाशीलता व रचनात्मकता ने बढ़ाया बच्चों में स्कूल के प्रति लगाव
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उत्तराखंड: कल्पनाशीलता व रचनात्मकता ने बढ़ाया बच्चों में स्कूल के प्रति लगाव

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उत्तराखंड: कल्पनाशीलता व रचनात्मकता ने बढ़ाया बच्चों में स्कूल के प्रति लगाव
Uk Imagination and creativity increase the interest of children in school
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नैनीताल. उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों के बच्चों में रचनात्मकता और कल्पनाशीलता काे बढ़ाने के लिये शुरु किये अभिनव प्रयोगों से न केवल उनमें नयी उमंग का संचार हुआ है बल्कि नयी नयी चीजें सीखने की जिज्ञासा बढ़ी है।
राेजाना एक ही तरह पठन पाठन से अलग बच्चों को कुछ अलग ढंग से पढ़ाने सिखाने की शुरुआत उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद के कुछ स्कूलों से हुई।

कुछ अध्यापकों ने अपने स्कूलों में परिवर्तन की नयी इबारत लिखी। इसके तहत छोटी छोटी पहल की गयी। मसलन बच्चों में शिक्षा के साथ साथ कल्पनाशीलता व रचनात्मकता का विकास किया गया। यह विचार सबसे पहले गरूड़ ब्लाक के शिक्षा अधिकारी आकाश सारास्वत के मन में आया। इस ब्लाक के अध्यापकों ने इसमें उनका साथ दिया।

शुरुआत बच्चों को उनकी मातृ भाषा में चीजें सिखाने से हुयीं। इसके लिये सबसे पहले स्कूल में होने वाली प्रार्थना को चुना गया और उसे स्थानीय बोली कुमाऊंनी में गाना सिखाया गया। इसके बाद प्रार्थना सप्ताह में कुमाऊंनी , हिंदी , अंग्रेजी और संस्कृत में की जाने लगी। इसके लिये स्थानीय शिक्षाविदों और साहित्यकारों का सहयोग लिया गया। उनसे प्रार्थना का इन भाषाओं में अनुवाद कराया गया।

सारास्वत कहते हैं कि इस बदलाव की शुरुआत 2010 में की गयी थी और समय के साथ इसके अच्छे परिणाम रहे। बाद में इसे ब्लाक के सभी स्कूलों में कराया गया। इससे स्कूलों के वातावरण में व्याप्त नीरसता टूटी। बच्चों में नयी उमंग का संचार होने लगा। हौसला बढ़ा तो प्रार्थना सभा के अलावा प्रतिज्ञा, समाचार, संविधान की प्रस्तावना सभी का ज्ञान चारों भाषाओं में कराया जाने लगा। इसमें जन समुदाय का भी सहयोग मिला।

उन्होंने बताया कि बच्चों में रचनात्मकता व कल्पनाशीलता बढ़ाने का अद्भुत उदाहरण बनी ‘दीवार पत्रिका’ जो दीवार पर बच्चों द्वारा उकेरी और रची गयी पत्रिका है। दीवार पत्रिका में बच्चों को इन चार भाषाओं में अपनी बात लिखने के लिये प्रेरित किया गया। इसकी नींव भी 2014 में बागेश्वर जनपद से पड़ी। कपकोट ब्लाक के जूनियर हाईस्कूल सिमगड़ी से इसकी शुरूआत हुई। बच्चे अपने मन की भावना को एक पेपर में उकेरते और उसे सामूहिक तौर पर एक बड़े चार्ट पेपर में पेस्ट कर दीवार पर लटका देते। इसकी पहल चुटकला, कहानी, कविता और चित्रों से की गयी। इससे बच्चों में रचनात्मकता का विकास हुअा ।

धीरे धीर बच्चे होली, दीपावली, राष्ट्रीय पर्वों व अन्य समसामयिक विषयों पर अपने भाव और विचार लिखने लगे। इससे उनमें अभिव्यक्ति का भी विकास हुआ। सिमगड़ी के बाद इसे प्राथमिक विद्यालय पिंगलौ, चोरसौं, राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय देवलखेत में शुरू किया गया। परिणाम अच्छे रहने पर इसे कपकोट ब्लॉक के अलावा गरूड़ ब्लाक के सभी सरकारी स्कूलों में शुरू कर दिया गया और फिर बागेश्वर जनपद सभी स्कूलों में इसे लागू किया गया।

देखते देखते दीवार पत्रिका का एक विचार आंदोलन बन गया। यह आज उत्तराखंड के एक हजार से अधिक स्कूलों में आकर्षण का विषय बन गयी है। दीवार पत्रिका को मासिक व त्रैमासिक स्वरूप भी दिया गया है। हर स्कूल में अलग अलग नाम दिया गया है। श्री सारास्वत के अनुसार इससे बच्चों की कल्पना को पंख लगे और नया करने का भाव जागृत हुआ। अब उत्तराखंड की इस अवधारणा को हिमाचल प्रदेश , केरल, राजस्थान व अन्य राज्य भी अपनाने लगे हैं।

इसके अलावा सरकारी स्कूलों में सामूहिक जन्मोत्सव आैर आनंदोत्सव मनाने के नये प्रयोग किये गये। इसके तहत एक माह के दौरान जन्मे सभी बच्चों का माह के अंतिम कार्य दिवस पर हर स्कूल में एक साथ जन्मोत्सव मनाया जाने लगा। इसमें अध्यापकों अौर समाज के प्रभावशाली लोगों का भी सहयोग लेकर बच्चों के लिये केक, नयी पोशाक व छोटे मोटे गिफ्ट आदि की व्यवस्था की जाती है। धीरे धीरे यह एक प्रचलन बन गया। इससे न केवल बच्चों का स्कूल के प्रति लगाव बढ़ा बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी जगा और बच्चों का पढ़ाई के प्रति नजरिया ही बदल गया।

सारास्वत ने बताया कि इस पहल को पहले तीन माह में 100 स्कूलों में प्रायोगिक तौर पर अपनाया गया। बाद में बागेश्वर के सभी स्कूलों ने इसे आत्मसात कर लिया जो सतत जारी है। उन्होंने कहा कि बागेश्वर दौरे पर आयी केरल की एक उच्च शिक्षा अधिकारी इससे इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने इसे केरल में भी लागू करवाया है। आनंदोत्सव के तहत सप्ताह के अंतिम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें बच्चे गाते तथा नृत्य करते हैं और वाद्य यंत्र बजाते हैं। स्कूलों में किचन गार्डन जैसे प्रयोग भी किये गये जिससे बच्चों को कृषि के प्रति प्रोत्साहन