सहारनपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस में हैवानियत की शिकार पीड़िता के मामले में भीम आर्मी अति सक्रियता के चलते जांच एजेंसियों के निशाने पर आ गई है।
पिछली 16 सितम्बर को हाथरस के चंदपा क्षेत्र के एक गांव में बाल्मिकी युवती के साथ गैंगरेप और हत्या के आरोपी राजपूत बिरादरी के चार युवक अलीगढ़ जेल में बंद है। इस पूरे मामले को लेकर विपक्षी दलों के साथ साथ सहारनपुर के कस्बा छुटमलपुर निवासी भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर की सक्रियता सवालों के घेरे में आ गई है।
पुलिस और जांच एजेंसियों ने हाथरस मामले को लेकर प्रदेश में हिंसा और दंगे की साजिश करने के बड़े मामले का खुलासा किया है और एक पत्रकार समेत पीएफआई के चार सदस्यों को गिरफ्तार किया है। उसी संदर्भ में जांच एजेंसियों को जांच में यह तथ्य भी सामने आए हैं कि पीएफआई की ओर से भीम आर्मी को मोटी रकम दी गई है। इसकी जांच भी की जा रही है।
विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि खुफिया एजेंसियों की ओर से यह खुलासा किया गया कि सहारनपुर के एक खनन माफिया और एक राजनीतिक दल के एक नेता द्वारा भी भीम आर्मी को उसकी गतिविधियां चलाने के लिए बड़े पैमाने पर मोटी रकम दी जाती रही है। इस मामले में ईडी मनी लांर्डिंग का केस दर्ज करने जा रही है।
ज्ञातव्य है कि यूपी में साढ़े तीन साल पहले जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी उसके कुछ दिन बाद ही महाराणा प्रताप की जयंती को मनाने को लेकर राजपूत बहुल देवबंद विधानसभा क्षेत्र के एक बड़े गांव शब्बीरपुर में जातीय हिंसा की बड़ी वारदात हुई थी।
उस गांव में हिंसा के पहले दिन ही देवबंद कोतवाली के गांव रसूलपुर टांक निवासी एक राजपूत युवक की गांव के दलितों द्वारा पत्थरों से हमला करने के दौरान उसकी जान चली गई थी। उसकी प्रतिक्रिया में गांव के दूसरे वर्ग ने दलितों के घरों और खेतों को आग के हवाले कर दिया था और कई दलितों के ऊपर हमला कर घायल कर दिया गया था।
शब्बीरपुर हिंसा के दो.तीन दिन बाद भीम आर्मी ने सहारनपुर नगर में जबरदस्त हिंसा और आगजनी को अंजाम दिया था। कुछ दिनों के भीतर ही पुलिस ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को हिमाचल प्रदेश से गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया था और उस पर रासूका लगा दी गई थी।
हाल ही के कुछ महीनों में चंद्रशेखर ने एक राजनीतिक दल का गठन कर लिया है। चंद्रशेखर को सहारनपुर के पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता इमरान मसूद का पूरा समर्थन प्राप्त है। जेएनयू के छात्रों समेत कम्युनिस्ट पार्टियों का भी चंद्रशेखर को भरपूर समर्थन प्राप्त है।
सहारनपुर के डीआईजी रह चुके डा अशोक कुमार राघव कहते हैं कि उनके समय में ही सहारनपुर में भीम आर्मी और चंद्रशेखर की अलगाववादी सोच और गतिविधियां सामने आनी शुरू हो गई थी। चंद्रशेखर राजपूतों से खासतौर से खुन्नस रखता है। उसने अपने गतिविधियों की शुरूआत ही राजपूतों से भिड़ने उनसे टकराव करने के रूप में की थी।
शब्बीरपुर के संघर्ष में एक राजपूत था। उस पर भीम आर्मी ने तांडव मचाया। अब हाथरस में भी संयोग से एक पक्ष राजपूत और दूसरा पक्ष दलित है। इसी कारण भीम आर्मी के चंद्रशेखर की सक्रियता यहां सबसे आगे रही और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस प्रकरण को लेकर पीआईएफ और भीम आर्मी पर उत्तर प्रदेश में हिंसा और दंगे की साजिश के जो गंभीर आरोप लगा रहे हैं। आरोप में काफी दम है। मुख्यमंत्री को बिना देरी किए भीम आर्मी को धन मुहैया कराने वाले सहारनपुर के खनन माफिया के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए।
पूर्व डीआईजी ने कहा कि खनन माफिया के खिलाफ मायावती के शासन में चीनी मिलों की अवैध खरीद फरोख्त का भी मामला दर्ज है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कई बड़ी एजेंसियों ने खनन माफिया के खिलाफ मुकदमें दर्ज कर जांच शुरू की हुई है लेकिन अधिकारियों की निष्क्रियता के चलते खनन माफिया खुला छूटा हुआ है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से लेकर दूर आगरा, बुलंदशहर तक का क्षेत्र दलित और मुस्लिम बहुलता के रूप में जाना जाता है और यहां राजनीतिक दलों की यह रणनीति हमेशा रहती है कि चुनावी सीट के लिहाज से दलित और मुस्लिमों में सियासी तालमेल और सामंजस्य मजबूत हो जाए। भीम आर्मी भी इसमें एक मोहरा बन गई है।
जिला प्रशासन के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के कड़े विरोध के बावजूद भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर हाथरस जाने में सफल हो गया था। ऐसे में यह बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि सरकार को गंभीरता दिखाते हुए जहां जांच एजेंसियों को सक्रिय करना होगा वहीं पुलिस प्रशासन के आला अफसरों को उनके खिलाफ कार्रवाई के सख्त आदेश देने होंगे तभी उत्तर प्रदेश में सौहार्द्र की भावना मजबूत होगी और विकास की गति तीव्र होगी।