युवा पीढ़ी को अपनी भीतरी ऊर्जा का सही इस्तेमाल करने का गुण सिखा रहे ऊर्जा गुरु अरिहंत ऋषि युवा शक्ति के बल पर एक नए भारत के निर्माण की बात करते हैं। हाल ही में ऊर्जा गुरु अरिहंत ऋषि को विश्व हिन्दू परिषद् के केंद्रीय संत मार्गदर्शक मंडल में जगह दी गई है। यह विहिप के इतिहास में पहला मौका है जब किसी जैन संत को स्थान मिला है। हालांकि ऊर्जा गुरु इतिहास के पन्नों पर इससे पहले भी अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। अरिहंत ऋषि के मार्गदर्शन में ऊर्जा वर्ल्ड फाउंडेशन ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दो दफा अपना नाम शामिल किया है।
अरिहंत ऋषि के दिशा निर्देशों के अनुरूप चलते हुए ऊर्जा वर्ल्ड फाउंडेशन ने एक निजी कार्यक्रम के तहत दुनिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित ईश्वर वाचक चिन्ह ‘ओम‘ निर्मित कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। 8 जनवरी, 2017 को ऊर्जा वर्ल्ड फाउंडेशन ने ‘‘ऊर्जा गुरु अरिहंत ऋषिजी‘‘ के मार्गदर्शन में करीब 927 स्कूली छात्रों के साथ सबसे बड़ा मानव ओम प्रतीक बनाया और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड 2017 का पुरस्कार प्राप्त किया।
ऊर्जा गुरु का मानना है कि ‘‘ओम आपके मन, शरीर और आत्मा को ठीक कर सकता है। यह पवित्रता और संस्कृति के बीच एक बंधन बनाने में भी मदद करता है। ओम अध्यात्म और विज्ञान के बीच की एक कड़ी है जो कभी भी विफल नहीं हो सकती, यदि आप इसके साथ अपनी मन की शक्ति का प्रबंधन करते हैं।‘‘
सबसे बड़े मानव ओम प्रतीक के अतिरिक्त 1 मार्च 2015 को मुंबई में आयोजित हुए एक कार्यक्रम के तहत अरिहंत ऋषि और जयम आइडियल यूथ ऑर्गेनाइजेशन को संयुक्त रूप से लोगों का पेड़ के रूप में सबसे बड़ा हुजूम इकठ्ठा करने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का पुरस्कार दिया गया। जयम आइडियल यूथ ऑर्गेनाइजेशन के शुभारंभ के लिए आयोजित किये गए इस इवेंट में करीब 1000 स्कूली बच्चों व युवाओं ने हिस्सा लिया था।
ऊर्जा गुरु अरिहंत ऋषि मानव विकास के लिए ध्यान और योग सबसे आवश्यक क्रिया बताते हैं। ‘‘ऊर्जा क्रिया- जागृति की कला‘‘ के लिए उनके विचार और सुझाव बहुतों के लिए प्रेरणादायक साबित हुए हैं। अपने किसी भी आयोजन के दौरान वह श्रोताओं को अपना ऊर्जा मंत्र देना नहीं भूलते, जिसे युवा पीढ़ी के लिए एक पवित्र आशीर्वाद माना जाता है।
अरिहंत ऋषि जैन समुदाय से हैं और पूरे भारत में उनके अनुयायी फैले हुए हैं। उन्होंने ऊर्जा वल्र्ड नामक एक फाउंडेशन का गठन किया, जिसका उद्देश्य लोगों के कल्याण, प्रकृति के संरक्षण, योग और ध्यान के लिए जागरूकता पैदा करना, समाज से बुराइयों को दूर करना और लोगों को खुशहाल और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करना है।
उन्हें अपने गुरु ‘‘आचार्य श्री कुशाग्रानंदजी महाराज‘‘ से प्रेरणा मिली, जो जैन धर्म का प्रसार, सशक्तिकरण और समाज के उत्थान के लिए अपने जीवन को लगा दिया है। आचार्य श्री कुशाग्रानंदजी सूचना, प्रेम के समुद्र हैं और वे किसी भी भेदभाव की परवाह किए बिना सभी के लिए अपनी पूजा और मित्रता प्रदान करते हैं।