लखनऊ। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की विधान परिषद के इतिहास में छह जुलाई के बाद पहली बार ऐसा होगा, जब प्रदेश के उच्च सदन में राष्ट्रीय राजनीतिक दल कांग्रेस की मौजूदगी समाप्त हाे जाएगी।
प्रदेश में सियासी फलक पर लगातार सिमट रही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का 100 सदस्यों वाली विधान परिषद में फिलहाल मात्र एक विधायक है। कांग्रेस के एमएलसी दीपक सिंह का कार्यकाल आगामी छह जुलाई को समाप्त हो रहा है।
गौरतलब है कि उप्र विधान मंडल के पिछले 72 साल के इतिहास में इस समय कांग्रेस की दोनों सदनों में सदस्य संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। हाल ही में संपन्न हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के सिर्फ दो उम्मीदवार विधायक बन सके।
विधान सभा में दो सदस्यों के बलबूते कांग्रेस के लिए विधान परिषद की 13 सीटों पर हो रहे चुनाव में अपना उम्मीदवार जिता पाना मुमकिन नहीं है। गौरतलब है कि उप्र में विधान सभा की कुल सदस्य संख्या 403 को देखते हुए विधान परिषद की एक सीट पाने के लिए 32 विधायकों के समर्थन की दरकार है।
कांग्रेस, चुनाव दर चुनाव दोनों सदनों में हाशिये पर सिमट रही है। विधान सभा के 2012 में हुए चुनाव में कांग्रेस के 28 विधायक थे, जो 2017 में घटकर 7 रह गए और 2022 में यह संख्या 2 पर सिमट गई। ऐसे में उप्र विधान मंडल का उच्च सदन अगले महीने कांग्रेस मुक्त हो जाएगा।
इसे कांग्रेस के लिए त्रासदपूर्ण स्थिति करार देते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी ने इस स्थिति के लिए पूरी तरह से शीर्ष नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया है। त्रिपाठी ने कहा कि एमएलसी बनने के लिए कम से कम 32 विधायकों का समर्थन जरूरी है। स्पष्ट है कि उच्च सदन में अब हमारा कोई सदस्य नहीं होगा। इससे पहले 72 साल ऐसा कभी नहीं हुआ। विधान मंडल ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में कांग्रेस की इस जर्जर हालत के लिए पार्टी हाईकमान ही जिम्मेदार है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व नौकरशाह पीएल पूनिया ने हालांकि भरोसा जताया है कि जल्द ही इस स्थिति में बदलाव होगा और कांग्रेस की एक बार फिर वापसी होगी। पूनिया ने कहा कि पिछले तीन चुनाव में 28 से 2 पर पहुंचने के सच को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन अब कानपुर हिंसा सहित अन्य तमाम मामलों के बाद लोगों को भारतीय जनता पार्टी के तिलिस्म की हकीकत का पता चल रहा है।
पूर्व राज्य सभा सदस्य पूनिया ने कहा कि लोगों के मन में भाजपा के प्रति व्याप्त भ्रम टूटा है और इसके साथ ही जनता कांग्रेस की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। पूनिया ने कहा कि भाजपा भी दो सीट से आज शिखर तक पहुंची है, इसी प्रकार दो सीट पर पहुंच चुकी कांग्रेस भी जल्द वापसी करेगी। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी का उदाहरण देते हुए कहा कि क्षेत्रीय दलों का भविष्य क्षणिक होता है। ऐसे में राष्ट्रीय दल के रूप में अब लोग कांग्रेस को ही विकल्प मान रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति का दशकों से विश्लेषण कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव ने पूनिया की दलीलों को नकारते हुए कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए राजनीति में उसकी प्रयोगधर्मिता को जिम्मेदार ठहराया। श्रीवास्तव ने कहा कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 1989 से ही प्रयोगधर्मी बनी हुई है। दुर्भाग्यवश कांग्रेस की ‘कॉस्मेटिक पॉलिटिक्स’ का हर प्रयोग नाकाम रहा। इसमें मायानगरी के चेहरे राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से लेकर निर्मल खत्री और जमीन से जुड़े नेता की पहचान वाले अजय कुमार लल्लू तक, सभी प्रयोग विफल रहे।
उन्होंने दलील दी कि कांग्रेस के तीन दशक से अधिक समय के प्रयोगधर्मी कालखंड में पूरी पार्टी खेमों में बंट गयी। इसके इतर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अब प्रियंका गांधी इस खेमेबाजी के जंजाल से कांग्रेस को मुक्त नहीं कर पाए, नतीजतन प्रदेश का विधान मंडल ही ‘कांग्रेस मुक्त’ होने लगा है।
कांग्रेस के लिए भविष्य की किसी उम्मीद के सवाल पर श्रीवास्तव ने कहा कि देश और प्रदेश में आज भी कांग्रेस के चाहने वालों की कमी नहीं है, कमी उस नेतृत्व की है जो इन्हें पार्टी केडर के रूप में खड़ा करने की क्षमता से युक्त हो। उन्होंने आगाह किया कि मौजूदा नेतृत्व जब तक ‘कॉस्मेटिक पॉलिटिक्स’ कर जनेऊ पहनने से लेकर नवरात्रि के व्रत करने और दुर्गा सप्तशती का पाठ करके लोगों को रिझाने की कोशिश करेगा तब तक, कांग्रेस फर्श पर ही रहेगी।
गौरतलब है कि आगामी 20 जून को विधान परिषद की 13 सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव हो रहा है। विधान मंडल में कांग्रेस जैसी ही हालत बसपा की भी है। पिछले 15 साल में अर्श से फर्श तक का सफर तय करने वाली बसपा का विधान परिषद में आगामी 6 जुलाई के बाद मात्र एक सदस्य बचेगा। बसपा के तीन एमएलसी दिनेश चंद्रा, अतर सिंह राव और सुरेश कुमार कश्यप का कार्यकाल 6 जुलाई को पूरा हो जाएगा। इसके बाद बसपा के एक मात्र सदस्य भीमराव अंबेडकर रह जाएंगे।
साल 2007 में विधान सभा के 206 सदस्यों वाली बसपा के 2012 में 80 और 2017 में 19 विधायक ही जीत पाने के बाद अब पार्टी का मात्र एक नुमांइदा ही निचले सदन में बचा है। ऐसे मेें बसपा के पास भी अगले पांच साल तक विधान परिषद में अपने सदस्यों की संख्या में इजाफा करने का कोई विकल्प नहीं है।
ज्ञात हो कि उप्र के उच्च सदन की 100 में से 66 सीटें इस समय भाजपा के पास हैं, जो कि 20 जून को विधान परिषद चुनाव के बाद बढ़कर 73 पर पहुंचना तय है। इसी प्रकार सपा के अभी 11 एमएलसी हैं, इनमें से 5 सदस्य 6 जुलाई को सेवानिवृत्त होंगे और 20 जून के चुनाव में 4 सदस्य निर्वाचित होने पर पार्टी की कुल सदस्य संख्या 10 होने की संभावना है।