उत्तराखंड में प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ जनरल ओबीसी कर्मचारियों के आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है ।
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प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे हड़ताली जनरल ओबीसी कर्मचारी और सरकार के बीच का गतिरोध नहीं टूट रहा है । सरकार के लाख कोशिशों के बावजूद भी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर पिछले 2 मार्च से अड़े हुए हैं । जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन ने बेमियादी हड़ताल में स्वास्थ्य, बिजली, पानी व रोडवेज सरीखी अति आवश्यक सेवाएं ठप हो गई हैं । एसोसिएशन नेताओं और आवश्यक सेवाओं से जुड़े विभागों के कर्मचारी संघों और परिसंघों के नेताओं के बीच हुई बैठक में हड़ताल की रणनीति को अंतिम रूप दिया गया । उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार हड़ताली कर्मचारियों से निपटने को एस्मा लागू कर सकती है । यह निर्णय सरकार हड़ताल के असर को आंकने के बाद ले सकती है । बेमियादी हड़ताल पर जाने के समय भी सरकार ने पहले दिन अपील करने के बाद दूसरे दिन सुबह ही ‘नो वर्क नो पे’ का फरमान जारी कर दिया था । मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए । कर्मचारियों को राज्य हित के बारे में पहले सोचना चाहिए ।
उत्तराखंड जनरल-ओबीसी कर्मचारियों ने कहा, पीछे नहीं हटेंगे
उत्तराखंड जनरल-ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन ने कहा कि आवश्यक सेवाओं को हड़ताल में शामिल कर वह जन सामान्य की दिक्कतें नहीं बढ़ाना चाहते, बल्कि अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं । उन्होंने कहा कि वे पीछे नहीं हटेंगे। सरकार निर्णय ले, वरना हड़ताल जारी रहेगी । सरकारी प्रवक्ता मदन कौशिक ने साफ कहा कि पहले कर्मचारी हड़ताल वापस लें, इसके बाद ही सरकार कोई फैसला करेगी । हड़ताली कर्मचारियों का साफ कहना था कि प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ आदेश जारी न होने तक हड़ताल जारी रहेगी ।
उत्तराखंड सरकार और कर्मचारियों के बीच बातचीत निकली बेनतीजा
सरकार से बातचीत बेनतीजा निकलने के बाद राज्य के डेढ़ लाख से अधिक जनरल-ओबीसी कर्मचारी बेमियादी हड़ताल पर चले गये हैं । कर्मचारियों का कहना है कि जबतक सरकार प्रमोशन में आरक्षण लागू न करने का आश्वासन नहीं देती है, वह काम पर नहीं लौटेंगे । इस हड़ताल का असर मंगलवार से शुरू हो रहे गैरसैंण बजट सत्र पर तो पड़ेगा ही, सचिवालय समेत तमाम राजकीय विभागों में कामकाज ठप रहेगा । उधर, एससी-एसटी कार्मिकों के काम पर आने के एलान से कर्मचारियों में टकराव के आसार भी बढ़ गए हैं ।
राज्य में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर काफी समय से बहस छिड़ी हुई है
प्रमोशन में आरक्षण को लेकर प्रदेश में लंबे समय से उत्तराखंड में बहस छिड़ी है । इस मुद्दे को लेकर कर्मचारियों का एक वर्ग हड़ताल पर है और सरकार के स्तर से इस मामले में फिलहाल प्रत्यक्ष तौर पर कोई पहल होती नजर नहीं आ रही है । प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने के लिए आंदोलन चला रहे कर्मचारी सीधी भर्ती में आरक्षण को तो संवैधानिक बता रहे हैं, लेकिन प्रमोशन में आरक्षण पर वह सरकार से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्रवाई करने की अपील कर रहे हैं । दूसरी तरफ प्रमोशन में आरक्षण के समर्थक कर्मचारियों का तर्क है कि समाज में अब भी जातिगत भेदभाव व्याप्त है । उनका तर्क है कि नीतिगत निर्णय लेने में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व अब भी काफी कम है, ऐसे में प्रमोशन में आरक्षण के हक को छोड़ना संभव नहीं है ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है
सुप्रीम कोर्ट की पिछले महीने मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी के बाद एक बार फिर पदोन्नति में आरक्षण को लेकर विवाद गहरा गया है । शीर्ष अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना या न करना राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर करता है । कोर्ट ने कहा कि कोई अदालत एससी और एसटी वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के आदेश जारी नहीं कर सकती । सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को विपक्षी नेता आरक्षण पर खतरे के तौर पर देख रहे हैं और इस पर सियासी बवाल शुरू हो गया है । दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार के एससी और एसटी के आंकड़े जमा करने के निर्देश दिए गए थे । सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है ।