उत्तराखंड। कोरोना महामारी संकट काल के दौर में देवभूमि यानी उत्तराखंड से आई एक खबर ने ध्यान खींचा। पहाड़ और हरियाली वादियों के बीच बसा उत्तराखंड अब देश के उन राज्यों में शामिल हो गया है जिनकी दो राजधानियां होंगी। अभी तक उत्तराखंड की राजधानी अस्थाई देहरादून बनी हुई है लेकिन सोमवार को जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चौंकाने वाली घोषणा करते हुए गैरसैंण को समर राजधानी बनाने की घोषणा की तो उत्तराखंड में विपक्ष और आम लोगों के बीच एक नई बहस भी छेड़ दी है। राज्य का क्षेत्रीय दल ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ और कांग्रेस गैरसैंण को समर कैपिटल नहीं है बल्कि स्थाई राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे।
जब मार्च में बजट सत्र केेे दौरान मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को दूसरी राजधानी बनाने की घोषणा की थी तभी से राजनीति तेज हो गई थी। आज त्रिवेंद्र सिंह रावत के एलान के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इसे लोगों के साथ धोखा बताया है। गौरतलब है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही यह मांग बुलंद हो रही थी कि प्रदेश की राजधानी पहाड़ में ही होनी चाहिए। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए सैकड़ों बार आंदोलन हुए हैं।
आंदोलनकारियों के साथ-साथ कई संगठन और राजनीतिक दल भी समय-समय पर गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाने की मांग उठाते रहे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भले ही गैरसैंण राज्य की दूसरी राजधानी बनाने के लिए जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश भी कर रहे हैं कि हमने वर्ष 2017 में किया वादा पूरा कर दिया है लेकिन गढ़वाल के निवासी गैरसैंण को समरकालीन नहीं पूर्णकालीन राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे।
गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए 20 सालों से हो रही थी मांग
उत्तराखंड राज्य को गठन हुए 20 वर्ष हो गए हैं। तभी से गैरसैण को राजधानी बनाने की मांग चली आ रही थी। 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल नाम से देश को उसका 27वां राज्य बना था। उस समय इस राज्य की स्थायी राजधानी को लेकर एक राय न बन पाने के चलते वहां के सबसे बड़े शहर देहरादून को ही इसकी अस्थायी राजधानी बना दिया गया। तब से लेकर अब तक 20 साल गुजर गए।
इस बीच राज्य का नाम भी उत्तरांचल से उत्तराखंड हो गया लेकिन राज्य को अपनी स्थायी राजधानी नहीं मिली है। अलग राज्य बनने से पहले ही चमोली जिले के गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग उठती रही है। लेकिन आज तक भी इस पर कोई फैसला नहीं हो सका था। हालांकि इस बीच गैरसैंण में करोड़ों रुपये खर्च कर एक नया विधानसभा भवन जरूर बना दिया गया था। सोमवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की घोषणा से गैरसैंण राजधानी बनने की दिशा में आगे बढ़ गया है।
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में हैं दो राजधानियां
लगभग 10 माह पहले केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर की भी दो राजधानी हैं। इसमें जम्मू शीतकालीन राजधानी और श्रीनगर ग्रीष्मकालीन राजधानी है । इससे पहले लद्दाख क्षेत्र भी जम्मू-कश्मीर में ही आया करता था। लेकिन इसी साल के सरकार के द्वारा 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर राज्य से 370 हटाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्यों की मान्यता दी गई थी। ऐसे ही महाराष्ट्र में दो राजधानियां हैं। नागपुर महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी के साथ-साथ राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है।
वहीं मुंबई महाराष्ट्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। यहां हम आपको बता दें कि 1953 के नागपुर पैक्ट के तहत नागपुर शहर को महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी बनाया गया था। अब बात करते हैं हिमाचल प्रदेश की। इस राज्य की दो राजधानियां है। हिमाचल प्रदेश की वर्ष 2017 तक शिमला अकेली राजधानी थी। लेकिन राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सरकार ने 2017 में ही धर्मशाला को हिमाचल प्रदेश की शीतकालीन राजधानी के तौर पर मान्यता दी थी, वहीं शिमला हिमाचल प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी है।
आंध्र प्रदेश में तीन राजधानियां बना दी गई हैं
दक्षिण भारत का राज्य आंध्र प्रदेश जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, से एक कदम और आगे निकल गया। यहां पूरी तीन राजधानियां बना दी गई हैं। पूरे देश में आंध्र प्रदेश सबसे अधिक राजधानी वाला प्रदेश है। पिछले वर्ष आन प्रदेश की विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया था कि जिसमें अमरावती के भविष्य पर असमंजस पैदा करते हुए राज्य में दो और राजधानी होने का प्रस्ताव रखा।
सदन में लंबी बहस के बाद यह बिल बिना किसी संशोधन के पास हो गया था। मौजूदा समय में आंध्र प्रदेश की अमरावती के अलावा विशाखापत्तनम और कुरनूल भी राजधानियां हो गई हैं। राज्य में 3 राजधानी बनाने का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार रहा है। विशाखापत्तन को कार्यकारी राजधानी, अमरावती को विधायी राजधानी और कुरनूल को न्यायिक राजधानी की मान्यता दी है। किसी प्रदेश की एक सेेे अधिक राजधानियां बनने पर प्रदेश ही नहीं देश की जनता अभी असमंजस में बनी रहती है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार