वाराणसी। उत्तर प्रदेश की प्रचीन धार्मिक नगरी वाराणसी के गंगा तट पर औघड़ साधु-संतों के साथ सैकड़ों शिवभक्तों ने सोमवार को मणिकर्णिका श्मशान घाट पर जलती चिताओं के बीच धूम-धाम से ‘चिताभस्म होली’ खेली।
मान्यता है कि भगवान शिव ने रंगभरी एकदाशी के दिन गौरा का गौना किया था और उसके अगले दिन उन्होंने पवित्र गंगा के मणिकर्णिका घाट पर स्नान के बाद पूत-प्रेत एवं अपने भक्तों संग ‘चिताभस्म होली’ खेली थी।
औघड़ संतों द्वारा प्राचीन काल से चलाई जा रहीं इस परंपरा का दायरा बढ़ रहा है। अब आम शिवभक्त भी इस खास प्रकार की होली का हिस्सा बनकर गर्व की अनुभूति कर करते हैं। इस धार्मिक आयोजन को देखने वाले कई देशी-विदेशी श्रद्धालु भी चिताभस्म लगाते हैं।
होली शुरु होने से पहले विधिविधान के साथ पूजा अर्चना के बाद श्मशानेश्वर महादेव मंदिर में बाबा भोले के प्रिये भांग एवं गांजा आदि के विशेष भोग लगाए गए। इसके बाद ‘हर-हर महादेव’ की गगनभेदी जयकारों और डमरु, ढोल, मजीरें आदि बाबा के प्रिय वाद्यंत्रों की धुन पर त्रिशूल संग भक्तों ने जमकर नृत्य किए। शरीर में चिताभस्म लगाया और गुलाल की तरह उसे हवा में उड़ाकर जश्न बनाया।
वर्षों से इस होली में शरीक होने वाले स्थानीय निवासी राम सेवक पांडेय समेत कई लोगों ने बताया कि इस पारंपरिक होली में शामिल होने श्रद्धालुओं की संख्या साल-दर-साल बढ़ी है।