बेंगलूरु। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक, नाटककार, अभिनेता एवं फिल्म निर्देशक गिरीश कर्नाड का सोमवार सुबह निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे और लंबे समय से श्वास संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे।
कर्नाड एक समकालीन लेखक थे जिन्होंने कन्नड़ भाषा और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। साहित्य, रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया।
गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में कोंकणी परिवार में हुआ था। बचपन के दिनों से गिरीश कर्नाड का रूझान अभिनय की ओर था। स्कूल के दिनों से ही गिरीश कर्नाड रंगमंच से जुड़ गए। जब वह 14 वर्ष के थे, तब अपने परिवार के साथ कर्नाटक के धारवाड़ जिले में आ गए।
कर्नाड ने कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई आ गये। इसी बीच उन्हें प्रतिष्ठित रोड्स छात्रवृत्ति मिल गई और वह इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। उनका पूरा नाम गिरीश रघुनाथ कर्नाड था।
कर्नाड ने कई फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया। इनमें ‘निशांत’ ,‘मंथन’, ‘स्वामी’, ‘पुकार’ ,‘इकबाल’, ‘डोर’, ‘आशाएं’, ‘एक था टाइगर’ और ‘टाइगर जिंदा है’ प्रमुख हैं। वह प्रसिद्ध टीवी शो मालगुडी डेज में स्वामी के पिता के किरदार में भी नजर आए थे।
उनकी अंतिम फिल्म कन्नड़ भाषा में बनी ‘अपना देश’ थी। उनकी आखिरी हिंदी फ़िल्म ‘टाइगर ज़िंदा है’ थी जिसमें उन्होंने डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था। उनकी मशहूर कन्नड़ फिल्मों में ‘तब्बालियू मगाने’, ‘ओंदानोंदु कलादाली’, ‘चेलुवी’, ‘कादु और कन्नुड़ु हेगादिती’ रहीं।
गिरीश कर्नाड बहुचर्चित रचनात्मक लेखकों एवं कलाकारों में से एक थे। नाटककार, अभिनेता, फ़िल्म निर्देशक, लेखक, पत्रकार, इन सभी भूमिकाओं को उन्होंने बख़ूबी एक साथ निभाया है। उनकी हिंदी के साथ-साथ कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी।
उन्हें 1974 में पद्मश्री और वर्ष 1992 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कन्नड़ साहित्य के सृजनात्मक लेखन के लिए उन्हें वर्ष 1998 में भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
कर्नाड ‘संगीत नाटक अकादमी’ के अध्यक्ष पद पर भी रहे। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, कालिदास सम्मान, टाटा लिटरेचर लाइव लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार और सिनेमा के क्षेत्र में भी कई पुरस्कार और सम्मान मिले। उन्होंने अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर भी काम किया।
उनके प्रसिद्ध नाटकों में ययाति, तुगलक, हयवदन, अंजु मल्लिगे, अग्निमतु माले, ‘अग्नि और बरखा’ तथा नागमंडल आदि शामिल हैं। उनके ‘तुगलक’ नाटक का अंग्रेजी समेत विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया।
देश के जाने-माने रंगकर्मियों और रंगसमीक्षकों ने कर्नाड के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक अभिनेता रामगोपाल बजाज, अनुराधा कपूर, देवेंद्र राज अंकुर, वर्तमान निदेशक सुरेश शर्मा प्रसिद्ध रंगकर्मी एम के रैना प्रसन्ना, अरविंद गौड़ और उषा गांगुली ने इसे भारतीय रंगमंच के लिए अपूरणीय क्षति बताया है और कहा है कि ‘ययाति’, ‘तुगलक’ और ‘नागमंडल’ जैसे नाटकों ने रंगमंच को एक नई ऊंचाई दी। विजय तेंदुलकर, बादल सरकार और कर्नाड की तिकड़ी ने भारतीय रंगमंच को राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।