कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर में दुस्साहिक वारदात को अंजाम देने वाला विकास दुबे जुर्म की काली दुनिया का वह शातिर है जो राजनीतिक संरक्षण के बूते उत्तर प्रदेश के टाप मोस्ट अपराधियों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने की तमन्ना रखता है।
पुलिस गुरूवार रात हत्या के एक मामले में उसे गिरफ्तार करने चौबेपुर के विकरू दुबे गई थी जहां बदमाशों ने पुलिस टीम को घेरकर छतों से गोलीबारी शुरू कर दी। अप्रत्याशित रूप से हुए इस हमले में पुलिस क्षेत्राधिकारी समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए और सात अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
हत्या, रंगदारी, डकैती जैसे करीब पांच दर्जन संगीन मामलों में वांछित विकास ग्राम प्रधान और जिला पंचायत सदस्य जैसे पदों पर भी काबिज रहा है। कानपुर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्दांत अपराधी का सिक्का चलता है। बात बात पर गोली चलाना उसका शगल बन चुका है। आतंक और दहशत के बूते जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बनने की उसकी सनक इस कदर थी कि आम से खास तक को धमकाने में वह तनिक भी गुरेज नहीं करता है।
शातिर हिस्ट्रीशीटर पर वर्ष 2001 में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या का आरोप है। दरअसल, चौबेपुर विधानसभा क्षेत्र से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और संतोष शुक्ला 1996 में चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव विजयी घोषित हुए थे। विजय जुलूस निकाले जाने के दौरान दोनों प्रत्याशियों के बीच विवाद हो गया था। जिसमें विकास दुबे का नाम भी आया था। उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इसी रंजिश के चलते 11 नवंबर 2001 को उसने हत्या की दुस्साहिक वारदात को अंजाम दिया।
इस मामले में आरोपी विकास दुबे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। अदालत में हत्या का मुकदमा विचाराधीन था, इस दौरान विकास द्वारा वादी और गवाहों के धमाकाए जाने की शिकायतें पुलिस तक पहुंच रही थीं। बताया गया है कि अदालत में काफी लंबा ट्रायल हुआ लेकिन साक्ष्यों के अभाव और गवाहों के मुकर जाने से विकास दुबे पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके और उसे बरी कर दिया गया था।
क्षेत्रीय लोगों के अनुसार शातिर दिमाग का विकास बचपन से ही अपराध की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहता था। विकरू गांव के निवासी शातिर के पास अपराधियों की फौज है। अपराध की वारदातों को अंजाम देने के दौरान विकास कई बार गिरफ्तार हुआ।
कानपुर में एक रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड में इसको उम्र कैद हुई थी। वह जमानत पर बाहर आ गया था। पंचायत और निकाय चुनावों में इसने कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए। राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में एंट्री की और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत गया था।
जिले के शिवली क्षेत्र में ही 2000 में रामबाबू यादव की हत्याकांड में जेल के भीतर रह कर साजिश रचने का आरोप है। इसके अलावा 2004 में हुई केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे आरोपी है। विकास दुबे ने 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला बोला था। उसने जेल में रहकर पूरी साजिश रची थी। जेल रहकर ही चचेरे भाई की हत्या करा दी। इसके बाद अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराया था।
2002 में बसपा सरकार के दौरान इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में खौफ था। इस दौरान विकास दुबे ने जमीनों पर कई अवैध कब्जे किए। इसके अलावा जेल में रहते हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने शिवराजपुर से नगर पंचयात भी लड़ा था और जीता भी था।
इतना ही नहीं बिकरू समेत आसपास के दस से ज्यादा गांवों में विकास की दहशत कायम है, जिसके चलते आलम यह रहा कि विकास जिसे समर्थन देते, गांववाले उसे ही वोट देते थे। इसी वजह से इन गांवों में वोट पाने के लिए चुनाव के समय सपा, बसपा और भाजपा के भी कुछ नेता उससे संपर्क में रहते थे।
दहशत के चलते विकास ने 15 वर्ष जिला पंचायत सदस्य पद पर कब्जा कर रखा है। पहले विकास खुद जिला पंचायत सदस्य रहे, फिर चचेरे भाई अनुराग दुबे को बनवाया और मौजूदा समय में विकास की पत्नी ऋचा घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य हैं।
कांशीराम नवादा, डिब्बा नेवादा नेवादा, कंजती, देवकली भीठी समेत दस गांवों में विकास के ही इशारे पर प्रधान चुने जाते थे। इन गांवों में कई बार प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए, वहीं बिकरू में 15 वर्ष निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना जाता रहा है।