आज के दौर में किसानों की हालत सुधारने का दावा तो बहुत होता रहा है, लेकिन वास्तविक धरातल पर खेती के हालात में कोई खास फर्क नहीं पड़ा। लेकिन इधर खेती को मुनाफे का सौदा बनाने को लेकर शुरू हुए स्टार्ट-अप की वजह से कृषि की तस्वीर बदल रही है, और किसानों ने स्टार्ट-अप के परामर्श और सहयोग से सरकारी दावे को हकीकत में बदलते हुए ‘लागत कम, उपज में बढ़त’ की सोच को संभव कर दिखाया है।
ऐसे ही एक किसान हैं विष्णुजी, जिन्होंने खेती को न सिर्फ अपने जीवन के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिये भी लाभदायक बनाया। लेकिन किसान ऐसा कर कैसे रहे हैं? जवाब मिट्टी में छिपा है। जी हाँ, स्टार्ट-अप के सहयोग से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जाती है, जिससे खेत फसल-दर-फसल, और पीढ़ी-दर-पीढ़ी उपजाऊ बने रहते हैं। इंदौर जिले के बिरगोदा गाँव के किसान विष्णु ठाकुर भी इसी राह पर चले और उन्होंने अपनी खेती को लाभ का सौदा बना लिया। तो आइए देखते हैं कि अपनी खेती को लाभदायक बनाने के लिए विष्णु जी ने क्या-क्या किया।
कृषि को लाभदायक बनाने का सपना देखने वाले किसानों में से एक, विष्णु जी ने स्थितियों से समझौता करने के बजाय, उससे मुकाबला करने की ठानी। आज खुशहाल जीवन जी रहे विष्णु जी को यह बात तो बिल्कुल समझ में आ गई थी कि आज के तकनीकी दौर में पूरी तरह से परंपरागत खेती पर निर्भर रहना कहीं से भी समझदारी का काम नहीं है। जीवन के हर क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के बढ़ते हस्तक्षेप उनको साफ दिख रहे थे।
उन्होंने भी कृषि टेक्नोलॉजी ग्रामोफोन का सहारा लिया, और अपनी 20 बीघा जमीन में गेहूँ की खेती की और 41.20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इस तरह उन्होंने 658,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमाया, जो बिना तकनीकी सहायता के उसी जमीन पर की गई खेती से 192,000 रुपये अधिक है। इसमें दिलचस्प बात यह रही कि तकनीकी सहायता से खेती करने में लागत भी कम आई, और उपज में काफी बढ़ोतरी हुई। पहले जो लागत 207 रुपये प्रति क्विंटल थी, वह घटकर 172 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। गेहूँ की खेती में मिली सफलता से प्रेरित होकर विष्णुजी ने डॉलर चने, सोयाबीन, लहसुन की खेती में भी यही प्रक्रिया अपनाई, और लाभ में क्रमशरू 65.52 प्रतिशत, 94.87 प्रतिशत, 105.56 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
सवाल उठता है कि कृषि संकट के इस दौर में विष्णुजी ने किस प्रक्रिया को अपनाते हुए यह लाभ हासिल किया। विष्णुजी बताते हैं कि “मैंने कृषि आधारित स्टार्ट-अप, ग्रामोफोन द्वारा दी गई रिसर्च आधारित सलाह का पालन करना शुरू किया। जहां मुझे सबसे पहले अच्छी उपज के लिए शुध्द प्रमाणित बीज उगाने की सलाह दी गई. खेतों की बुआई से पहले व बाद, दोनों स्थितियों को बारे में बताया गया. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नाइट्रोजन का इस्तेमाल, फास्फोरस तथा पोटाश का प्रयोग, मशीन न मिलने की स्थिति में उर्वरकों का छिड़काव आदि जैसी जरुरी बातों के बारे में भी विस्तार से बताया गया।
सिंचाई के माध्यमों का भी खास ख्याल रखा, पहली सिंचाई मुख्य जड बनते समय, दूसरी सिंचाई गांठ बनते समय, तीसरी सिंचाई बालियां निकलने तथा चैथी सिंचाई दानों में दूध पडते समय करने की सलाह मिली और इसी हिसाब से सिंचाई को अंजाम भी दिया। इन्ही सलाहों पर चलते हुए यूरिया उर्वरक की मात्रा में 25 प्रतिशत की कमी की और पानी के साथ इसका मिश्रण (300 ग्राम प्रति बीघा) बनाकर छिड़काव किया। इसके बाद पोटाश का उपयोग किया, जिससे गेहूं की गुणवत्ता में वृद्धि हुई, और दानें मोटे हुए और चमक बढ़ गई। कुल मिलाकर मुझे इस बार गेहूँ का रेट ज्यादा मिला।”
विष्णु जी ने कदम दर कदम सावधानी बरती, और चाहे वह गेहूँ की खेती हो, या डॉलर चने, सोयाबीन या लहसुन की खेती हो, बीजों के ट्रीटमेंट पर खास ध्यान दिया, और जहां जिस खेती में जैसी जरूरत रही, वैसे रसायनों का प्रयोग किया, जैसे सल्फर, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स आदि। अपनी सफलता के लिए अपनी नई सोच और मेहनत के अलावा विष्णु जी डिजिटल टेक्नोलॉजी का खेती में अनुप्रयोग करने वाली कंपनी, ग्रामोफोन को भी याद करते हैं, जिसके तकनीकी परामर्श से उनके लिए कम लागत पर उपज में बढ़त हासिल करना संभव हुआ है।