न्यूयॉर्क। ऐसी महिलाएं, जो गर्भावस्था के दौरान विटामिन-डी की कमी से पीड़ित होती हैं, उनके बच्चों में जन्मजात और वयस्क होने पर मोटापा बढ़ने की अधिक संभावना रहती है। एक शोध में यह पता चला है।
ऐसी मां की कोख से जन्म लेने वाले बच्चे, जिनमें विटामिन-डी का स्तर बहुत कम है, उनकी कमर चौड़ी होने या छह साल की आयु में मोटा होने की संभावना अधिक होती है।
इन बच्चों में शुरुआती दौर में पर्याप्त विटामिन-डी लेने वाली मां के बच्चों की तुलना में दो प्रतिशत अधिक वसा होती है।
अमरीका में दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर वइया लिदा चाटझी ने कहा कि ये बढ़ोतरी बहुत ज्यादा नहीं दिखती, लेकिन हम वयस्कों के बारे में बात नहीं कर रहे, जिनके शरीर में 30 प्रतिशत वसा होती है।
विटामिन-डी की कमी को ‘सनशाइन विटामिन’ के रूप में भी जाना जाता है। इसे हृदय रोग, कैंसर, मल्टीपल स्केलेरोसिस और टाइप 1 मधुमेह के खतरे से जोड़ा जाता है।
चाटझी ने कहा कि आपके शरीर में उत्पादित विटामिन-डी का लगभग 95 प्रतिशत धूप से आता है। शेष पांच प्रतिशत अंडे, वसा वाली मछली, फिश लिवर ऑयल, दूध, पनीर, दही और अनाज जैसे खाद्य पदार्थो से मिलता है।
पत्रिका ‘पेडिएट्रिक ओबेसिटी’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक टीम ने 532 मां-बच्चों के जोड़े की जांच की, जिसमें बच्चे के जन्म से पहले मां में विटामिन-डी को मापा गया। परिणाम बताते हैं कि लगभग 66 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में पहले त्रैमासिक में विटामिन-डी अपर्याप्त थी।
चाटझी ने कहा कि गर्भावस्था में ओपटिमल विटामिन-डी का स्तर बचपन के मोटापे से बचा सकता है, लेकिन हमारे शोध को सुनिश्चित करने के लिए अधिक शोध आवश्यक है। गर्भावस्था के प्रारंभिक दिनों में विटामिन-डी की खुराक लेते रहना भावी पीढ़ियों को ठीक रखने का अच्छा उपाय है।