लंदन। भारत के भारी विरोध और उसके मित्र देशों के दबाव के कारण नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ यूरोपीय संसद में पेश प्रस्ताव पर मतदान मार्च तक टल गया है। इस प्रस्ताव पर संसद के दो मार्च को शुरू हो रहे सत्र में मतदान होगा। पहले इस प्रस्ताव पर गुरुवार को मतदान होना था जो टल गया।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि यूरोपीय संसद में भारत के दोस्त पाकिस्तान के दोस्तों पर हावी रहें। ब्रिटिश सांसद शफ़ाक़ मोहम्मद के प्रयासों के कारण यूरोपीय संसद ने भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था। यूरोपीय संसद इस मामले में मतदान से पहले भारत में उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित मुकदमों पर सुनवाई का इंतजार करेगी।
भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है और इसे लोकतांत्रिक साधनों के माध्यम से एक उचित प्रक्रिया के तहत लागू किया गया है। सरकार के सूत्रों ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि इस मामले में हमारे दृष्टिकोण को यूरोपीय संसद के सभी उद्देश्य और निष्पक्ष विचारकों द्वारा समझा जाएगा।
इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार को यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखकर सीएए के खिलाफ प्रस्ताव का विरोध किया था। सूत्रों के मुताबिक बिरला ने अपने पत्र में कहा कि अंतर संसदीय संघ के सदस्यों के रूप में सभी सदस्यों को साथी संसदों की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।
यूरोपीय संसद में क्रिश्चियन डेमोक्रेट से लेकर वामपंथियों के छह संसदीय दलों ने एक साझा प्रस्ताव में भारत में नए नागरिकता कानून की आलोचना की। दिसंबर में पारित इस कानून को ‘खतरनाक रूप से विभाजनकारी’ और ‘भेदभावपूर्ण’ बताया गया।
भारत का नागरिकता संशोधन कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भागकर आये हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों की रक्षा करता है, लेकिन वहां से आने वाले मुसलमानों की नहीं। यूरोपीय संघ का कहना है कि इस वजह से नया कानून, जिस पर भारत में भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं, भारतीय संविधान का उल्लंघन करता है जिसके अनुसार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।