मथुरा। उत्तर प्रदेश में कान्हानगरी मथुरा के वृन्दावन में स्थित सप्त देवालयों में व्यंजन द्वादशी से ठाकुर की शीतकालीन सेवा में तेजी आ जाती है। इस बार व्यंजन द्वादशी 26 दिसम्बर को है।
वृन्दावन के सप्त देवालयों में यशोदा भाव से सेवा होती है जिस प्रकार मां यशोदा ने कान्हा का पालन पोषण किया था,उसी प्रकार से सप्त देवालयों में मौसम के अनुसार ठाकुर सेवा होती है। इस सेवा के पीछे भाव यह होता है कि ठाकुर को किसी प्रकार की परेशानी नही होनी चाहिए। इन मन्दिरों के विगृह स्वयं प्राकट्य हैं।
अपनी शुचिता एवं पवि़त्रता के लिए मशहूर राधारमण मंदिर के सेवायत आचार्य एवं प्रबंन्ध समिति के सचिव पद्मनाभ गोस्वामी ने बताया कि राधारमण मन्दिर में व्यंजन द्वादशी से खिचड़ी महोत्सव शुरू हो जाता है। इस खिचड़ी में मेवा और केशर का समावेश होता है। इसके साथ ही अचार, पकौड़े ठाकुर को अरोगने के लिए और शामिल किए जाते है। केशरयुक्त दूध इसका प्रमुख भाग है। सुबह शाम ठाकुर को हिना या केशर का इत्र लगाया जाता है क्योंकि यह इत्र गर्म होते हैं।
ठाकुर की पोशाक में दस्ताने और मोजे का प्रयोग भी व्यंजन द्वादशी से शुरू हो जाता है तथा गर्भगृह में अंगीठी रखी जाती है। एक महीने के लिए ठाकुर के चरण दर्शन नहीं होते हैं तथा गर्म जल से ठाकुर का स्नान शुरू हो जाता है। वैसे जाड़ा शुरू होते ही ठाकुर को गुनगुने पानी से स्नान, सूखे मेवा एवं केशर का उपयोग ठाकुर के व्यंजन में शुरू हो जाते है। मन्दिर में जाड़े की सेवा बसन्त पंचमी तक चलती रहती है। भाव यह है कि ठाकुर को किसी प्रकार से ठंड न लग जाए।
सप्त देवालयों के अन्य गोपीनाथ मन्दिर में द्वापर और कलियुग की सेवा का समिश्रण होता है। मन्दिर के सेवायत आचार्य राजा गोस्वामी ने बताया कि मन्दिर में दास्य भाव से सेवा होती है वास्तव में जीव और भगवान का संबंध ही इस मन्दिर की सेवा का प्रमुख अंग है।
इस मन्दिर में पौष माह की शुरूवात से खिचड़ी महोत्सव शुरू होता है। खिचड़ी मेवा के साथ साथ बाजरे, मटर, मंूग, अरहर और चावल की होती है। इसमें भाजे, और पाप़ड़ को और शामिल किया जाता है। गर्म होने के कारण मूंगफली या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है। ठाकुर की खीर और दूध में केशर का उपयोग होता है।
उन्होंने बताया कि पौष माह की शुरूआत से ही ठाकुर के बाल भोग में माखन मिश्री के साथ साथ मेवे का भोग भी मंगला आरती में रखा जाता है तथा ठाकुर की अरोगने की सामग्री में पकौड़े का समिश्रण और कर दिया जाता है। इस मन्दिर में भी पौष माह में ठाकुर के चरण दर्शन नहीं होते तथा गर्म कपड़ों के साथ ठाकुर को दस्ताने और मोजे धारण कराए जाते हैं और गर्भ गृह को गर्म बनाए रखने के लिए अंगीठी रखी जाती है।
सप्त देवालयों में भाव प्रधान सेवा के लिए अपनी अलग पहचान बना चुके राधाश्यामसुन्दर मन्दिर में इस मास की शुरूआत से ही ठाकुर को मेवा के पकौड़े बनाकर भोग सामग्री विशेषकर बालभोग में रखते हैं।
मंदिर के सेवायत आचार्य कृष्ण गोपालानन्द प्रभुपाद ने बताया कि मंदिर में वैसे तो शीतकालीन सेवा कार्तिक पूर्णिमा के बाद से ही शुरू हो जाती है तथा ठाकुर को गुनगुने पानी से स्नान कराना शुरू हो जाता है और ठाकुर को हल्की शाल ओढ़ाई जाती है पर गौड़ीय सम्प्रदाय के सप्त देवालयों की परंपरा के अनुरूप राधाश्यामसुन्दर मन्दिर मे मुख्य शीतकालीन सेवा व्यंजन द्वादशी से ही शुरू होती है तथा ठाकुर के खान पान में ऐसी चीजों का उपयोग किया जाता है जो गर्म होती हैं इनमें खिचड़ी प्रमुख है।
एक प्रकार से व्यंजन द्वादसी के बाद जो भोग ठाकुर को अर्पित किया जाता है वह मिनी अन्नकूट होता है। उनका कहना था कि जाड़े में चन्दन श्रंगार की जगह पीले श्रंगार का उपयोग किया जाता है तथा ठाकुर को ऐसे गर्म वस़्त्र धारण कराए जाते हैं जिनसे ठाकुर को ठंड न लगे।
सप्त देवालयों में राधा दामोदर मन्दिर, राधाबल्लभ मन्दिर में भी जाड़े की सेवा व्यंजन द्वादसी से ही शुरू होती है कुल मिलाकर व्यंजन द्वादसी से सप्त देवालयों में ठाकुर को शीत से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाने की होड़ सी लग जाती है।