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परीक्षित मिश्रा
सिरोही। आबूरोड में तलहटी से लेकर आमथला बनास पुलिया तक सडक का दोहरीकरण और सौंदर्यीकरण होना था। इसके लिए वर्तमान सडक के दोनो तरफ करीब दो से तीन मीटर की चौडाई बढाने का काम शुरू किया गया।
इसके लिए ठेकेदार ने डामरीकृत सडक के लिए डब्ल्यूबीएम यानि की डामरीकरण से पहले का बेस बिछा दिया था। इसके बाद दो महीने से ये काम छोडकर कहीं और काम करने चला गया। इस बीच बारिश हुई तो इस सडक का माॅर्डन इंसुलेटर के साइड के डब्ल्यूबीएम को बरसाती पानी बहा ले गया। पानी का इस तरह से डब्ल्यूबीएम और बेस को उडा ले जाना ही आबूरोड यूआईटी की कार्यप्रणाली और डिजायनिंग पर सवाल खडा कर रहा है।
बरसाती नाला था तो उसे बनाया क्यों नहीं?
इस सडक के लिए बिछाया गया डब्ल्यूबीएम यहां से गुजर रहे बरसाती नाले ने बहा दिया। अब सवाल ये है कि यदि सडक के किनारे राजस्व रेकर्ड में बरसाती नाला आ रहा है तो फिर इसे पहले पक्का करके सडक को सुरक्षित क्यों नहीं किया गया। इस बरसाती नाले का पानी माउण्ट आबू की पहाडियों से उतरकर आता है।
इसकी रफ्तार और पानी की मात्रा दोनों ही बहुत ज्यादा होती है। वर्तमान में जो नालेनुमा कच्ची संरचना दिख रही है उससे तो ये पानी बंध नहीं सकता है। ऐसे में यूआईटी ने राजस्व रेकर्ड में बरसाती नाला होने के बावजूद इसे नहीं बनाया है तो फिर ये जनता के धन की बर्बादी का सबसे बडा मामला होगा।
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नाला था तो पेड कैसे?
यूआईटी के द्वारा तलहटी से आमथला के बीच जिस सडक पर चौडीकरण और सौंदयीकरण का काम किया जा रहा है, उस सडक के दक्षिण पूर्व तरफ माॅर्डन इंसूलेटर के गेट से शुरू होकर ये नाला उसकी दीवार के सहारे आगे बढता नजर आ रहा। जिस मार्ग से माउण्ट आबू से उतरने वाला तेज बहाव वाला पानी इस कच्चे नाले से बहता हुआ नजर आ रहा है उस मार्ग पर नाले में ही ही बडे बडे पेड दिखाई दे रहे हैं।
यदि स्थाई रूप से सालों से इस बरसाती नाले का पानी इसी मार्ग से बह रहा है तो नाले के बीचों बीच ये पेड उगने लगभग असंभव थे। क्योंकि हर साल बारिश में इसी मार्ग से ये पानी बहता तो जो पेड अभी दिख रहे हैं वो शैशवावस्था में पौधे बनते ही अगले साल होने वाली बारिश में बह जाते। लेकिन, नाले के रास्ते में ही बडे बडे पेड होना इस बात का स्पष्ट इशारा कर रहा है कि ये मार्ग नाले का स्थाई मार्ग नहीं है। किसी बरसाती नाले का प्राकृतिक मार्ग बंद करके इसे अस्थाई मार्ग को बनाया गया है।
इस मार्ग पर तेज पानी बहने से ये पानी इन पेड़ों की जड़ों की मिट्टी को काटकर उन्हें कमजोर कर रहा है। हाल ही में इसी कारण एक पेड़ भी गिर गया है। इस मार्ग पर लगातार यात्री वाहनों की आवाजाही रहती है। यदि इस प्रथम दृष्टया कृत्रिम रूप से बनाए गए बरसाती नाले के कारण कमजोर हुए पेड़ किसी चलते हुए यात्री वाहन पर गिर गए तो कइयों की जान पर बन सकती है।

ये निशान बता रहे हैं कि नाला अस्थाई
इस सडक पर निकलने पर माॅर्डन इंसुलेटर के गेट से आमथला तक मिट्टी के ढेर लगे हुए हैं। ये ढेर यह बता रहे हैं कि इस नाले को जेसीबी या किसी मानव श्रम के द्वारा बनाया गया है। किसी बरसाती नाले के मूल स्वरूप को बिगाडकर इस तरफ मोडा गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मानसून की पहली बारिश के दौरान जेसीबी के द्वारा ये नाला बनाकर मिट्टी के ढेर यहां लगाए गए हैं। इस ढेर से माउण्ट आबू से उतर रहे बरसाती पानी को बांधने की कोशिश की गई है।
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लेकिन, ये बहाव इतना तेज होता है कि इसे मिट्टी की दीवार से रोक पाना असंभव है। गुगल मैप की दो महीने पुरानी वाली सेटेलाइट इमेजेस में पानी का भाव का रास्ता तो दिख रहा है। लेकिन, हाल ही में बरसाती पानी के प्रथम दृष्टया कृत्रिम मार्ग के किनारे बनाई मिट्टी की मेढ़ नहीं दिखाई दे रही है। इससे स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि इस कृत्रिम नाले को बारिश के दौरान फिर से खोदकर गहरा किया गया है।
इसी कारण माउण्ट आबू में तेज बारिश होने से ये पूरा मार्ग तेज बहने वाली नदी में बदल जाता है। ये पानी खेतों और यहां बने भवनों की नींव में एकत्रित होकर उन्हें बर्बाद कर रह है। इसके बावजूद यूआईटी के द्वारा इसे नजरअंदाज करना निकट भविष्य में जान और माल दोनों के लिए हानिकारक होने वाला है।