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संत परंपरा में संतों को ध्यान मुद्रा में दी जाती है भू-समाधि - Sabguru News
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संत परंपरा में संतों को ध्यान मुद्रा में दी जाती है भू-समाधि

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संत परंपरा में संतों को ध्यान मुद्रा में दी जाती है भू-समाधि

प्रयागराज। संत परंपरा के तहत संतों और महात्माओं के पार्थिव शरीर को ध्यान मुद्रा में रखकर भू-समाधि दी जाती है।

ब्रह्मलीन संतों को तिरोधान के बाद संत की प्रतिष्ठा-परंपरानुसार जल या भू समाधि दी जाती है। भारत में कई संतों ने भू-समाधि ली है। माना जाता है कि यह परंपरा 1200 साल से भी ज्यादा पुरानी है।

आदिगुरु शंकराचार्य ने भी भू-समाधि ली थी और उनकी समाधि केदारनाथ में आज भी मौजूद बताई जाती है। संतों को भू-समाधि देने के पीछे संत- महात्माओं का तर्क है कि कालांतर में उनके अनुयायी अपने आराध्य का दर्शन और अनुभव उस स्थान पर जाकर कर सकें।

सनातन मत के अनुसार संत परंपरा में तीन तरह से संस्कार होते हैं। दाह संस्कार, भू-समाधि और जल समाधि शामिल है। जल एवं भू-समाधि देने का विधान है। जल समाधि देने के लिए पार्थिव शरीर किसी पवित्र नदी की बीच धारा में विसर्जित किया जाता है।

इस दौरान पार्थिव शरीर से कुछ वजनी वस्तु बांध गंगा या किसी गहरे जलाशय में डाल दिया जाता है जिससे जल के अन्दर रहने वाले जलचर शरीर का भक्षण कर अपनी क्षुधा को शांत कर सकें। भू-समाधि में पार्थिव शरीर को पांच फीट से अधिक जमीन के अंदर गाड़ा जाता है।

उत्तराखंड सरकार ने साधु-संतों को भू-समाधि के लिए हरिद्वार कुंभ से पहले जमीन देने के प्रस्ताव को मंजूरी देकर साधु-संतों की वर्षों से चली आ रही मांग पूरा कर दिया। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का आभार व्यक्त किया था।

हरिद्वार में भू-समाधि के लिए जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण साधु-संतों के शरीर त्यागने के बाद उन्हें सिर्फ जल समाधि दी जाती थी। यह जल प्रदूषण का भी एक कारण था। इस पर विचार करते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत कैबिनेट ने भू-समाधि के लिए पांच जमीन देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। उत्तराखंड सरकार ने सिंचाई विभाग की पांच हेक्टेयर जमीन साधु-संतों के नाम कर दी है।

अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने उत्तराखंड सरकार से पांच एकड़ जमीन भू-समाधि के लिए मिलने के बाद कहा था कि इस जमीन की देखभाल भी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही करेगा।

इसके साथ ही उन्होंने संत समाज से अपील किया था कि भू-समाधि के लिए जमीन मिल जाने के बाद अब जल समाधि पूरी तरीके से बंद कर दें जिससे गंगा जल प्रदूषित न हो और गंगा का प्रवाह भी अविरल और निर्मल बना रहे।