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जब इस महामारी ने जिंदगी में लगाई तमाम बंदिशें, तब याद आए गांव - Sabguru News
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जब इस महामारी ने जिंदगी में लगाई तमाम बंदिशें, तब याद आए गांव

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जब इस महामारी ने जिंदगी में लगाई तमाम बंदिशें, तब याद आए गांव
When this epidemic imposed many restrictions in life, people remembered the village
When this epidemic imposed many restrictions in life, people remembered the village
When this epidemic imposed many restrictions in life, people remembered the village

हमारे देश में पलायन एक बहुत बड़ी समस्या रही है। आजादी के बाद से ही देशवासियों का पलायन करने का सिलसिला ऐसे शुरू हुआ कि अभी कुछ दिनों पहले तक तक जारी रहा।

पलायन का अर्थ है कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना। जब-जब पलायन की बात चलती है तो सीधे ही दिमाग पर बात आ जाती है कि गांवों से शहरों की ओर, छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर पलायन। लोगों का पलायन केंद्र और राज्य सरकारों के लिए वर्षों से बड़ी मुसीबत रही है, यही नहीं लोगों के पलायन करने से आज देश भर में हजारों की संख्या में गांव उजड़ गए या वीरान पड़े हुए हैं। हालांकि अधिकांश लोगों का रोजगार के अभाव में शहरों की ओर पलायन करना मजबूरी भी कही जा सकती है।

इस समय देश-दुनिया में कोरोना वायरस महामारी फैली हुई है। मौजूदा समय में इस जानलेवा वायरस से विशेष तौर पर छोटे और बड़े शहरों में भय का माहौल बना हुआ है, लॉकडाउन होने से और शासन-प्रशासन की बंदिशों से लोगों का दम घुट रहा है। शहरी लोग न स्वतंत्र होकर बाहर निकल पा रहे हैं, न गांव की शुद्ध ताजी हवा उनको मिल पा रही है। देश में लॉकडाउन हुए लगभग 50 दिन पूरे हो चुके हैं, ऐसे में शहरी लोगों की जिंदगी घरों में ही सिमट कर रह गई है।

अभी तक गांवों में कोरोना का नहीं है भय

जैसे कोरोना वायरस का बड़े शहर हो या छोटे सभी में इस महामारी को लेकर जबरदस्त दहशत भरी हुई है वैसा अभी तक गांव में इसका कोई खास असरदेखने को नहीं मिल रहा है लोग खूब आ जा रहे हैं। यहां के लोग घर और घर से खेत तक ही सीमित है। इस महामारी से गांव के लोग भी बहुत सचेत और जागरूक हो गए हैं। सामाजिक दूरीकरण का पालन बहुत ज्यादा तो नहीं हो पा रहा है पर गांव में बाहर से किसी को भी प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है।

आज जो लोग अपने-अपने गांवों को छोड़कर शहर में रोजगार की खातिर जम गए थे, इस संकट के दौर में लोगों को अब अपने गांव की याद सताने लगी है। लॉकडाउन से पहले जो लोग स्थितियां को पूरी तरह जान गए थे वे लोग तो अपने गांव लौट लौट आया और बहुत ही सुकून और राहत महसूस कर रहे हैं, लेकिन जो लोग इंतजार ही करते रहे वह आज बहुत ही पछता रहे हैं। शहरों और राज्यों की सीमा में पुलिस का पहरा और बॉर्डर सील होने वैसे अब लोग अपने गांव भी नहीं आ पा रहे हैं।

लॉकडाउन के चलते शहरों में पसरा है सन्नाटा

एक ओर कोरोना वायरस की दहशत दूसरी ओर लॉकडाउन होने में बड़े-बड़े शहरों में सन्नाटा पसरा हुआ है। शहर से गांव तक पूरा परिवेश बदला हुआ नजर आ रहा है। लॉकडाउन जो अब तीसरे चरण में पहुंच गया है। वहीं दूसरी ओर गांव गुलजार हो गए है। कोरोना संकट और उसके बाद हुए लॉकडाउन के चलते रोजगार छीनने के कारण बड़ी संख्या में शहर की तरफ से गांव की ओर गांव की ओर पलायन हुआ है।

रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन करने वाली एक बड़ी आबादी अब फिर गांवों की ओर लौटी है। यही नहीं आज इस महामारी की वजह से लोगों में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। गांव से शहरों की ओर पलायन कर गए लाखों की संख्या में लोग सुकून की तलाश में अपने गांव आना चाहते हैं।

गांवों में एक बार फिर लौट आई है रौनक

कई गांवों में अधिकांश लोग शहरों की ओर रोजगार की खातिर चले गए थे आज उनमें से अधिकांश लोगों के लौटने से गांवों में एक बार फिर से रौनक लौट आई है। अब पहले की तरह गांव में फिर चौपाल सजने लगी हैं, चबूतरे चहकने लगे हैं और चौसर की चाले शहरों की भागमभाग को दांव पर लगा रही हैं। चौपालों में भविष्य की चिंता की बैठकें और राय मशविरे फिर होने लगे हैं। शहरों से गांव में लौटे लोग अब गांव में ही रोजगार तलाश रहे हैं या उत्पन्न कर रहे हैं।

गांव का किसान अपने खेतों में पैदा होने वाली फल, फूल, सब्जियां अब शहरों की मंडियों में न ले जाकर खुद इन्हें आस पास के इलाकों में जाकर बेच रहा हैं। वहीं बड़ी गांव में मजदूर बड़े पैमाने पर मनरेगा के काम में लग गए हैं। आज शहर हो या गांव हो लोग शहरी जीवन और ग्रामीण जीवन का आकलन करने में लगे हुए हैं, आने वाले समय और बेहतरीन जीवन के लिए भागदौड़ भरी या सुकून भरी जिंदगी, कौन सी बेहतर हो सकती है । इस महामारी और दहशत भरे जीवन में लोग इसका आकलन जरूर कर रहे होंगे।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार

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