अजमेर। देश में सबसे बडे राजनीतिक परिवर्तन के साथ सत्ता पर काबिज होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए एक साल पहले पुलिस, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस को छोड़कर अफसरों की ‘लाल बत्ती’ उतरवा दी थी।
सालभर बीत गया लेकिन अजमेर के कुछ अफसरों के दिलोदिमाग से ‘बत्ती’ का मोह नहीं छूटा। वे हमेशा इस कवायद में लगे ही रहे कि ‘बत्ती’ कैसे हासिल की जाए। उनकी कवायद रंग लाई और प्रशासनिक पद के साथ साथ मजिस्ट्रेट पावर रखने वालों के वाहनों पर बत्ती जगमगाने लगी है। यह बात अलग है कि अजमेर कलक्टर आरती डोगरा की कार पर ‘बत्ती’ अब तक नहीं लगी। लेकिन उनके मातहत सिटी मजिस्ट्रेट, उपखंड अधिकारी, तहसीलदार साहब की गाडी पर बत्ती नजर आने लगी है।
कलेक्ट्रेट परिसर में विराजित चार अफसरों के वाहनों पर शोभीत हो रही ‘बत्ती’ का बस कलर बदल गया। पहले इनकी कारों पर लाल बत्ती हुआ करती थी अब पुलिस वाहनों की तरह बहुरंगी बत्ती से संतोष करना पड रहा है। बतादें कि ये बत्तियां आधिकारिक रूप से कलेक्टर, कमिश्नर और कार्यपालक मजिस्ट्रेट के नाम पर मंजूर की जा रहीं हैं।
इन बत्तियों को हासिल करने के लिए 14 जुलाई 2017 को केन्द्र सरकार की ओर से गजट में जारी निर्देशों की आड ली गई है। गृह विभाग को तर्क दिया गया है कि बड़े आंदोलन, प्रदर्शन अथवा रात्रिकालीन गश्त के मद्देनजर कमिश्नर, कलेक्टर और कार्यपालक मजिस्ट्रेट आदि को बत्ती नहीं होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गृहविभाग ने भी दरियादिली दिखाते हुए स्टेटस सिंबल बनी ‘बत्ती’ की हसरत को पूरा कर दिया।
असल में नियम तो ये है
किसी तरह के बडे आंदोलन अथवा अन्य कानून व्यवस्था से जुड़े मामले अथवा गश्त के लिए कमिश्नर, कलेक्टर या कार्यपालक मजिस्ट्रेट को जाना है तो वे पुलिस अधीक्षक की गाड़ी में जाएं। लाल, नीली व सफेद रंग की बहुरंगी बत्ती लगाने की इजाजत पुलिस, रक्षा बल व अर्द्ध-सैनिक बलों के वाहनों को दी गई थी। 14 जुलाई 2017 को जारी निर्देश के अनुसार बत्ती का उपयोग कानून व्यवस्था वाली स्थिति के समय होना चाहिए। यह बात अलग है कि अजमेर कलक्ट्री परिसर में खडे रहने के दौरान, सरकारी दौरों, घर से आने और जाने के समय भी इन चार वाहनों पर बत्ती स्थाईरूप से लगी नजर आती है।
31 बत्तियों की डिमांड, मिली सिर्फ 4
सूत्रों के अनुसार अजमेर जिला प्रशासन की मांग पर अजमेर पूल ने गृह विभाग से 31 बत्तियों की जरूरत बताई थी। इसकी मंजूरी भी मिल गई लेकिन अजमेर पूल को जयपुर से कुल चार बत्तियां ही मिल सकी। 31 की जगह 4 बत्तियां ही मिलने के कारण अजमेर प्रशासन में हालत एक अनार सौ बीमार वाली हो गई। ऐसे में कानून व्यवस्था के नाम पर अपनी मजिस्ट्रेट पावर का इस्तेमाल कर उपखंड अधिकारी, तहसीलदार, सिटी मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त कलेक्टर साहब बाजी मार गए। यह बात अलग है कि बत्ती का सबसे अधिक हक रखने वाली अजमेर की कलेक्टर आरती डोगरा ने सादगी अपनाई हुई है। वे अब भी बिना बत्ती लगी कार का ही इस्तेमाल कर रही हैं।