अगरतला। त्रिपुरा के मनोनीत मुख्यमंत्री बिप्लब कुमारदेब 15 साल से अधिक अवधि तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की शिक्षा-दीक्षा में गढ़े कार्यकर्ता हैं।
त्रिपुरा के सबसे युवा मुख्यमंत्री मनोनीत होने वाले 48 वर्षीय देब की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में 25 वर्ष के मार्क्सवादी कम्युनस्टि पार्टी के शासन को उखाड़ फेंका है और पूर्वोत्तर के इस आदिवासी बहुल राज्य में पार्टी को पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया है।
देब के नेतृत्व में 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने अपने दम पर ही शून्य से शिखर का सफर तय करते हुए 35 सीटें हासिल की हैं। भाजपा ने अपने सहयोगी इंडीजीनिस पीपुल्स फ्रंट आॅफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ कुल 43 सीटें जीती हैं।
बिप्लब देब त्रिपुरा के नए मुख्यमंत्री, शपथग्रहण समारोह 9 को
राज्य के उदयपुर में जन्में देब त्रिपुरा के दसवें मुख्यमंत्री होंगे। वर्ष 1999 में त्रिपुरा विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद देब दिल्ली चले गए और गोबिंद आचार्य और कृष्णगोपाल शर्मा जैसे आरएसएस के महारथी प्रचारकों की देखरेख में तपे।
आरएसएस के लंबे सान्निध्य के बाद त्रिपुरा लौटे देब को 2015 में भाजपा की सेन्ट्रल जनसंपर्क प्रमुख का प्रभारी बनाया गया। इसके कुछ माह बाद ही सात जनवरी 2016 को उन्हें सुधीन्द्र दासगुप्ता के स्थान पर भाजपा की प्रदेश इकाई की कमान सौंपी गई और दो वर्ष में ही उन्होंने पार्टी के लिए विजयगाथा की पटकथा लिख डाली।
वह नौ मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। उनकी पत्नी नीति नई दिल्ली के संसद मार्ग स्थित देश के सबसे बड़े वाणिज्यिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक में डिप्टी मैनेजर हैं। उनके एक पुत्र और एक पुत्री है।
मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे मृदुभाषी देब के पिता हरधन देब जनसंघ के स्थानीय नेता थे। देब ने मुख्यमंत्री मनोनीत होने के बाद त्रिपुरा की जनता के प्रति समर्पित होने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि राज्य की जनता मेरी दाल रोटी है। बनमालीपुर से विधायक बनने और राज्य में पार्टी की सरकार बनने की तस्वीर पर देब ने कहा था कि मैं जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूं और किसी भी जिम्मेदारी को निभाने के लिए पीछे हटने वाला नहीं हूं।
देब को उम्मीद है कि उनके शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री शामिल होंगे। देब की अगुवाई में भाजपा ने त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 25 साल के वर्चस्व को तोड़ा है और उसने 60 सदस्यीय विधानसभा में अकेले 35 सीटें हासिल कीं।
पार्टी ने विधानसभा का चुनाव आईपीएफटी के साथ मिलकर लड़ा था और उसके गठबंधन को कुल 43 सीटें मिली हैं जबकि पिछले 25 साल से सत्तारुढ माकपा को 16 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। एक सीट पर चुनाव स्थगित हो गया था।