कतर की राजधानी दोहा से शनिवार को आई एक खबर ने विश्व के तमाम देशों ने ध्यान खींचा। दुनिया के तमाम देशों के लिए सरदर्द बना आतंकवादी संगठन तालिबान ने आखिरकार शांति बहाली की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए अमेरिका से समझौता कर लिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और भारत समेत कई अन्य विदेशी राजनयिकों की मौजूदगी में अमेरिका ने दोहा में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
इस समझौते के बाद दुनिया अमेरिका की हार के रूप में देख रही है। तालिबान और अमेरिका के बीच हुए इस समझौते से पाकिस्तान को लग रहा है कि उसको ज्यादा फायदा हुआ है। इसलिए पाक इस डील पर खुश नजर आ रहा है। तालिबान और अमेरिका के बीच हुए शांति समझौते के अंतर्गत अमेरिका 14 माह के भीतर अफगानिस्तान से अपने सारे सैनिकों को वापस बुला लेगा। इस समझौते में अफगान सरकार शामिल नहीं है।
यहां हम आपको बता दें कि तालिबान और अमेरिका के बीच शांति समझौते के लिए काफी समय से कई देशों की निगाहें लगी हुई थी। इन दोनों देशों की शनिवार को कतर में हुई डील के वक्त भारत के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे। यहां हम आपको बता दें कि अमेरिका और तालिबान में हुए समझौते के बाद अब उम्मीद की जानी चाहिए कि तालिबान ओ और अफगानिस्तान सरकार के बीच 18 साल से जारी टकराव खत्म हो सकेगा।
शांति समझौते पर सवाल खड़े हो गए हैं
अफगानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच जो शांति समझौता हुआ है उसने कई सवाल खड़े किए हैं, भारत के लिहाज से कतर में हुए समझौते में कुछ भी नहीं है। शांति समझौता अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जालमे खलीलजाद और तालिबान के कमांडर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के बीच हुआ है। इसमें तालिबान की तरफ से जो बयान दिए गए वह भारत के लिए चिंताजनक हैं।
अब्दुल गनी बरादर को पाकिस्तान का समर्थक और भारत का विरोधी माना जाता है। दूसरी ओर भारत सरकार के कई कार्यक्रम और बड़े प्रोजेक्ट इन दिनों अफगानिस्तान में चल रहे हैं। भारत के चलाए जा रहे हो जब तो पर तालिबान कई बार अपना विरोध भी दर्ज करा चुका है। हालांकि अभी तक तालिबान की धमकियों के आगे भारत ने कोई महत्व नहीं दिया।
भारत ने कहा हम अफगानिस्तान के साथ हैं
अमेरिका और तालिबान के बाद भारत संतुष्ट नहीं नजर आया। एक सरकारी प्रतिनिधि ने बताया कि हम अफगानिस्तान के साथ हैं। वहीं तालिबान के प्रतिनिधि अब्दुल बरादर ने समझौते में मदद के लिए पाकिस्तान का नाम तो लिया, लेकिन भारत का कोई जिक्र नहीं था। तालिबान के साथ हुए समझौते के मुताबिक अमेरिका अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या घटाकर 8,600 करने के लिये प्रतिबद्ध है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि अगर अफगान पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में नाकाम रहता है तो अमेरिका अपने सैनिकों की वापसी के लिये बाध्य नहीं है।
युद्ध प्रभावित रहे अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए अपने प्रयासों और तालिबान के साथ समझौते पर किए गए हस्ताक्षर के तहत अमेरिका अफगानिस्तान में अपने बलों की संख्या शुरू में ही घटाकर 8,600 सैनिकों तक करने के लिए प्रतिबद्ध है। अफगानिस्तान में अभी करीब 13,000 अमेरिकी सैनिक हैं।
तालिबानाें के साथ शांति समझौते में हो सकता है फेरबदल : डोनाल्ड ट्रंप
अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर चेतावनी भरे लहजे से कहा है कि यह कोई डील अंतिम नहीं है इसमें जरूरत पड़ती है तो फिर जल्दी किया जा सकता है। अगर तालिबान आगे कोई बड़ी गलती करता है तो उसे परिणाम भी भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। वहीं तालिबान विश्व के सबसे बड़े ताकतवर देश से समझौता करने के बाद गदगद नजर आ रहा है।
आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत दौरे के दौरान तालिबान के साथ शांति समझौते का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी से किया था, जिस पर भारत ने सहमति जताई थी। लेकिन इस डील से हिंदुस्तान की चिंता बढ़ गई है। इस समझौते के बाद भारत की चिंता भारत के विदेशी सहायता कार्यक्रम को लेकर है, जिसका बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान है। दूसरी चिंता पाकिस्तान को लेकर है क्योंकि पाकिस्तान तालिबानी आतंकियों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार