सबगुरु न्यूज। प्रकृति बसन्त ऋतु का श्रृंगार कर पूर्ण यौवना दुल्हन की तरह सज जाती है और पुरूष रूपी उत्तरायण का सूर्य प्रचंड होकर अपनी ऊर्जा के विशाल पुंज को प्रकृति पर फैला देता है। प्रकृति ओर पुरूष का यह मिलन ऐसा लगता है कि गौरी और शंकर का मिलन सजे धजे ईसर व गणगौर के रूप में दिखाई देता है। प्रकृति का यह राजसी स्वरूप ईसर ओर गणगौर के वैभवशाली रूप को दर्शाता है।
गणगौर पर्व शिव व पार्वती के अमर प्रेम का प्रतीक है। महामाया ने शिव को प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की और सती के रूप में खुद को बलिदान किया, फिर हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया, उन्होंने अपनी तपस्या जारी रखी।
भाद्रप्रद मास की तृतीया तिथि के दिन पार्वती जी ने शिव से विवाह कर लिया इसलिए भाद्रपद मास की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जातीं हैं। गणगौर शिव व पार्वती के सम्मान में मनाई जाती है।
ईसर और गौरा या शिव और पार्वती के बीच असीम प्यार को आदिवासी समुदाय के पुरुषों और महिलाओं को भी उपलब्ध कराने और उनके साथ बातचीत करने का मौका मिलता है और इस समय के दौरान वे भागीदारों का चयन करते हैं और शादी करने के लिए भाग जाते हैं।
यह त्यौहार महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, जो पूजा व उपवास करती हैं और प्रार्थना करती हैं, जो विवाहिता हैं, उनके पतियों के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं और अविवाहित लड़कियां अपनी पसंद के एक अच्छे वर के लिए प्रार्थना करती है कि उन्हें मनोवांछित फल मिले।
इस अवसर के लिए पार्वती की छवियां विशेष रूप से तैयार की जाती है उन्हें गहने और बेहतरीन पोशाक से तथा शिव को तलवार और ढाल से सजाया जाता है। शिव व पार्वती को ईसर व गणगौर के रूप में शहर में बैंड बाजे व घोडे की पालकी में बैठाकर घुमाया जाता है और बाद में पानी में विसर्जन किया जाता है।
प्रतिमा बनाने का एक अन्य तरीका है। नदी के किनारे से कीचड़ लेना और होली जलने के बाद उसकी राख को मिला दिया जाता है, उन्हें कपड़े से बांध, सजाया जाता है और पूजा की जाती हैं। चैत्र शुक्ला तृतीय को पानी में विसर्जित किया जाता हैं।
शिव ओर पार्वती के असीम प्रेम ओर हरतालिका तीज पर दोनों का विवाह हुआ। विवाह के बाद पार्वती पहले फाल्गुन में अपने पीहर चली जाती है। होली के बाद शिव पार्वती को लेने अपने ससुराल जाते हैं और चैत्र मास के सत्रह दिन निकलने तक शिव व पार्वती को ससुराल में पूजा जाता है और जया तिथि तृतीया को दोनों का इसी अमर प्रेम की यादगार मे शिव को ईसर और पार्वती को गणगौर के रूप मे सजा धजा कर गाजे बाजे के साथ सवारी निकाली जाती है।
चैत्र मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से गणगौर का पूजन शुरू हो जाता है तथा चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की की सप्तमी के दिन गणगौर की प्रतिमा बना कर उसे चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा पूजा की जाती है और चैत्र शुक्ल द्वितीया को गणगौर के सिंजारा अर्पण किया जाता है। चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन पार्वती को श्रृंगार करा कर भोग अर्पण किया जाता है तथा ‘गणगौर’ का पर्व मनाया जाता है तथा शिव को भी दूल्हा ‘ईसर’ के रूप में बनाकर नगर भ्रमण कराया जाता है। शिव और पार्वती के असीम प्रेम का प्रतीक है यह गणगौर उत्सव।
सौजन्य : भंवरलाल