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एडवोकेट प्रशांत भूषण का 1 रुपए जुर्माना उनके अधिवक्ता ने भरा - Sabguru News
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एडवोकेट प्रशांत भूषण का 1 रुपए जुर्माना उनके अधिवक्ता ने भरा

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एडवोकेट प्रशांत भूषण का 1 रुपए जुर्माना उनके अधिवक्ता ने भरा

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय से सोमवार को न्यायालय के खिलाफ टिप्पणी करने पर एक रुपये जुर्माने की राशि का योगदान जाने माने वकील प्रशांत भूषण के अधिवक्ता ने किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। उच्चतम न्यायालय के इस मामले में फैसला देने के बाद भूषण ने ट्वीट कर स्वंय इसकी जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि मेरे अधिवक्ता और वरिष्ठ सहयोगी राजीव धवन ने मेरे खिलाफ मानहानि मामले में आदेश के फौरन बाद एक रुपए का योगदान दिया जिसे मैंने ससम्मान स्वीकार कर लिया।

इससे पहले न्यायाधीश अरुण मिश्रा की पीठ ने आज प्रशांत भूषण अवमानना मामले पर यह आदेश दिया, जिसमें उनपर एक रुपये का जुर्माना लगाया गया था और दंड की राशि अदा नहीं करने पर उन पर तीन वर्ष वकालत पर रोक लगाने और तीन माह की सजा शामिल थी।

अधिवक्ता न्यायपालिका के खिलाफ ट्वीट करने के लिए दोषी ठहराए गए थे। न्यायाधीश मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने 25 अगस्त को प्रशांत भूषण के अपने ट्वीट्स के लिए माफी मांगने से मना करने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।

पीठ ने प्रशांत भूषण के ट्वीट के लिए माफी मांगने से मना करने का उल्लेख करते हुए कहा कि माफी मांगने में क्या गलत है? क्या यह शब्द इतना खराब है? सुनवाई के दौरान पीठ ने प्रशांत भूषण को ट्वीट पर खेद व्यक्त नहीं करने के लिए अपने रुख पर विचार करने के लिए 30 मिनट का समय भी दिया था।

इस बीच भूषण ने कहा कि वह उन पूर्व न्यायाधीशों, वकीलों, कार्यकर्ताओं और मित्रों के आभारी हैं, जिन्होंने उन्हें उनके ईमान और विवेक के प्रति दृढ़ और सच्चा रहने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने कहा कि बहुत खुशी की बात है कि यह मामला अभिव्यक्ति की आजादी के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बन गया है और लगता है कि इससे कई लोग समाज में अन्याय के खिलाफ खड़े होने और बोलने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

भूषण ने कहा कि वह न्यायालय में दर्ज अपने पहले बयान में कह चुके हैं कि वह यहां किसी भी दंड के लिए खुशी से पेश हैं जो न्यायालय ने निर्धारित किया है और जो उन्हें एक नागरिक का सर्वाेच्च कर्तव्य प्रतीत होता है।

भूषण ने कहा कि उनकी नजरों में उच्चतम न्यायालय का बहुत सम्मान है। उन्होंने हमेशा यह माना है कि यह उम्मीद का आखिरी गढ़ है। खासतौर पर कमजोर और पीड़ितों के लिए जो अक्सर एक शक्तिशाली इंसान या शक्तिशाली अधिकारी के खिलाफ अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए इस दरवाजे पर दस्तक देते हैं।

उन्होंने कहा कि उनके ट्वीट का मकसद किसी भी तरह से उच्चतम न्यायालय या न्यायपालिका का अनादर करना नहीं था। उनका मकसद केवल अपनी पीड़ा व्यक्त करना था।

भूषण ने कहा यह मुद्दा उनके बनाम न्यायाधीशों के बारे में कभी नहीं था। उच्चतम न्यायालय की जीत प्रत्येक भारतीय की जीत है। प्रत्येक भारतीय एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका चाहता है। जाहिर है अगर न्यायालय कमजोर होंगे तो वे गणतंत्र को कमजोर करेंगे, जिसका नुकसान प्रत्येक नागरिक को होगा।