परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। राजस्थान में लोकसभा चुनावों की तिथि निर्धारित हो गई है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों के पास सबसे बड़ी चुनौति जिताऊ उम्मीदवारों का चयन है। जालोर-सिरोही लोकसभा सीट पर भी ऐसे ही हालात हैं। यह सीट लगातार तीन बार से भाजपा के पास है।
इसके पीछे प्रमुख कारण जातीय समीकरण हैं। लेकिन, सिरोही और रानीवाड़ा विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद उपजे हालातो में सोशल मीडिया पर चल रही पोस्टें इन समीकरणों में बड़ी सेंधमारी की ओर इशारा कर रही है। यह तय है कि इस बार जालोर लोकसभा क्षेत्र में एक सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव सिरोही और रानीवाड़ा विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव परिणामों का पड़ेगा।
-पहले समझें जातीय समीकरण
जालोर लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता अनुसूचित जाति के हैं। इसके बाद कलबी चौधरी व देवासी आते हैं। ब्राह्मण, राजपूत व ओबीसी की अन्य जातियां भी प्रभावी हैं। लेकिन, यहां बात दूसरे नम्बर की दो प्रमुख जातियों की है।
-यूं डालेगा रानीवाड़ा और सिरोही का परिणाम प्रभाव
हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में रानीवाड़ा विधानसभा सीट पर रतन देवासी और सिरोही विधानसभा में भाजपा के ओटाराम देवासी को हार मिली। सोशल मीडिया पर चली पोस्टों और इस समाज के नेताओं और सामान्य लोगों पर ध्यान दें तो इसके पीछे वह प्रमुख कारण संख्या में दूसरे नम्बर की दूसरी जाति का मान रहे हैं।
जालोर और सिरोही में अपने भाषणों में रानीवाड़ा विधायक ने सांसद पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाते हुए सीधे तौर पर यह जता दिया कि उनका स्टैण्ड क्या होगा। हालात यह हैं कि इस सीट पर फिलहाल दूसरे नम्बर की दो प्रमुख जातियों के बीच राजनीतिक वर्चस्व के लिए तलवारें खिंची हुई है।
ऐसे में इन दोनों जातियों के व्यक्ति का टिकिट के लिए चयन करना और नहीं करना दोनों ही किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए संकट का विषय बनने वाला है। इन हालातों में सर्वमान्य नेता को चुनकर जालोर-सिरोही से टिकिट देना दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के लिए सबसे बड़ी चुनौति होगी।