नयी दिल्ली । देश में इस समय 35़ 5 करोड़ महिलाएं तथा लड़कियां माहवारी की आयु में हैं लेकिन आज भी यह विषय पर खुलकर बातचीत के लिए वर्जित माना जा रहा है जिसकी वजह से कम उम्र की लड़कियों में इसको लेकर अनेक भ्रांतियां हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव वंदना गुरनानी ने सोमवार को यहां एसोचैम की ओर से आयोजित कार्यक्रम“ मेंस्ट्रूएल हाइजिन, नीड टू ब्रेक द साइलेंस एंड बिल्ड अवेयरनेस” में शिरकत करते हुए कहा कि मासिक धर्म एक बहुत ही सामान्य प्रकिया है लेकिन इसे लेकर आज भी अनेक भ्रांतियां है और कोई भी महिलाओं की इस सामान्य शारीरिक प्रकिया के बारे में खुल कर बातचीत नहीं करना चाहता है। इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि माहवारी के दौरान शहरी क्षेत्रों की 78 प्रतिशत महिलाओं ने साफ-सफाई के तरीके अपनाने की बात स्वीकार की है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 48 प्रतिशत रहा।
उन्होंने कहा कि केरल, दिल्ली, सिक्किम और हरियाणा की 90 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि वे सेनेटरी पैड्स इस्तेमाल करती हैं लेकिन बिहार में यह आंकड़ा 30 प्रतिशत ही पाया गया जो यह दर्शाता है कि अशिक्षा और जागरुकता की कमी तथा आर्थिक कारणों से महिलाएं इन पैड्स का इस्तेमाल नहीं कर पाई हैं। उत्तर प्रदेश में भी लगभग यही हाल है, जहां ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं इस विषय को लेकर चुप्पी साधना बेहतर मानती हैं।
उन्होंने कहा कि सेनेटरी पैड्स की कीमतें अधिक होने की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं इनका उपयोग नहीं कर पा रही हैं और आज भी वे पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं जिसकी वजह से उन्हें कई बीमारियांं घेर लेती हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के पैड्स बनाने वाली कंपनियों को इनकी कीमतें कम रखनी चाहिए ताकि ये हर किसी की पहुंच में रहेे। सेनेटरी पैड्स को लेकर अधिक से अधिक महिलाओं तथा लड़कियों को जागरूक किए जाने की आवश्यकता है।
गाैरतलब है कि 28 मई को पूरी दुनिया में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों को माहवारी के दौरान स्वच्छ रहने और साफ-सफाई के तरीके अपनाने के लिए जानकारी देना है। इस बार इसकी थीम “ इट्स टाइम फाॅर एक्शन” है।
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ सुनील गुप्ता ने इस कार्यक्रम में कहा कि माहवारी के दौरान महिलाओं में 70 प्रतिशत संक्रमण साफ-सफाई के उचित तरीके नहीं अपनाने से होता है क्योंकि माहवारी के दौरान जननांग मार्ग में हारमोनल बदलाव आने से कुछ परिवर्तन होते हैं और पुराने कपड़ों का इस्तेमाल इस संक्रमण में कईं गुना इजाफा कर देता है। यौनांगों की साफ-सफाई नहीं होने से महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) कैंसर के मामले भी देखे जा रहे है और यह ह्यूमन पेपिलोमा वायरस से होता है।
गुप्ता ने बताया कि देश की अधिकतर जनसंख्या महंगे सेनेटरी पैड्स नहीं खरीद सकती हैं, अत: सरकार को इन्हें सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने की नीति पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा स्कूली छात्राओं को स्कूल में माहवारी के बारे में जानकारी देने की पहल की जानी जरूरी है और यह एक ऐसा विषय है जहां पिता और भाई को भी बेटियों के साथ इस विषय पर बात करनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय महिला शोध केन्द्र (आईसीआरडब्लयू) की उप क्षेत्रीय निदेशक सुबहालक्ष्मी नंदी ने कहा कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के दौरान महिलाओं को रसोई घर में घुसने और पूजा कार्यों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाती है जबकि माहवारी शरीर की एक सामान्य प्रकिया है। इसे पवित्रता और अपवित्रता के दायरे में बांध दिया गया है और इस विषय पर अधिक से अधिक जागरुकता लाए जाने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों की कम उम्र की बालिकाओं को अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है और ऐसे में अचानक माहवारी होने से खून देखकर कई बार बालिकायें घबरा जाती हैं। इस तरह के विषय पर सभी को खुलकर बात करने की जरूरत है और इसे सामाजिक वर्जना नहीं बनाना चाहिए क्योंकि चाहे लड़का हो या लड़की उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी उन्हें दी जानी जरूरी है। इस दौरान बालिकाओं को व्यक्तिगत साफ-सफाई के उचित तरीकों के बारे में बताया जाना आवश्यक है और स्कूलों में टायलेट तथा साफ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए।
कार्यक्रम में यूनीसेफ भारत की उप प्रतिनिधि फोराेग फोयोजत ने कहा कि मासिक धर्म को मैनेज करने के तौर तरीकोें के बारे में लडकियों को जागरूक किया जाना जरूरी है और यूनीसेफ सेनेटरी पैड्स की गुणवत्ता को लेकर गंभीर है। इस दौरान रक्त अधिक बहने से उनके शरीर में कमजाेरी आ जाती है और उन्हें पोषण संबंधी अनियमितताओं के बारे में बताना जरूरी है। सबसे अधिक जरूरी लोगों की सोच में बदलाव करना है क्याेंकि आज भी माहवारी होते ही इसे पवित्रता और शुचिता के दायरे में शामिल कर लिया जाता है। इस दौरान ऑस्कर विजेता फिल्म ‘पीरियड-एंड ऑफ सेन्टेन्स’ में काम करने वाली हापुड़, उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाएं सुमन और स्नेह भी मौजूद थीं।