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दशकों तक याद रहेगा सदी का दूसरा दशक - Sabguru News
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दशकों तक याद रहेगा सदी का दूसरा दशक

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दशकों तक याद रहेगा सदी का दूसरा दशक
विनीत शर्मा
सदी का दूसरा दशक बस विदा लेने को है और तीसरा दशक दस्तक दे रहा है। जाता हुआ दशक तमाम वजहों से दशकों तक लोगों को याद रहेगा। इन दस सालों में देश में वह सब हुआ जो अब तक कोई सोच भी नहीं सकता था। राजनीतिक बदलाव के साथ ही कई दूसरी वजहों से यह दशक लोगों के जेहन में हमेशा ताजा रहने वाला है।

पहले बात करें कांग्रेस की तो देश के युवाओं को 21वीं सदी का सपना दिखाने वाले राजीव गांधी के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है। आमजन ही नहीं कांग्रेस के कर्ताधर्ताओं ने भी सपने में नहीं सोचा था कि संसद में कभी चार सौ पार की कांग्रेस, जिसने छह दशक तक देश पर शासन किया, वह बीते कुछ सालों में छठी दहाई तक पहुंचने में हांफने लगी है। 136 साल की कांग्रेस संसद के लगातार दो टर्म में कुल मिलाकर 136 सांसदों का आंकड़ा नहीं छू पाई है। कभी देशभर में जिस कांग्रेस का दबदबा था, वह राज्यों तक में अपनी पहचान खो रही है।

आजादी के बाद क्षेत्रीय दलों का उदय प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह हुआ। इन दलों में सत्ता कभी परिवार से बाहर नहीं जा पाई। यह दशक इसलिए भी खास है कि सत्ता के लिए मुगलकाल में अपनाई जाने की तिकड़मों की याद ताजा हो गई। मुलायम वंश के अखिलेश ने जिस तरह से पिता को बेदखल कर पार्टी पर कब्जा जमाया उसने मुगल शासन में शाहजहां और जहांगीर के रिश्तों को दोहरा दिया। समाजवादी पार्टी की अंदरूनी राजनीति में ऐसा भी होगा इसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी।

दशक के आखिरी साल में बहुत कुछ ऐसी ही तस्वीर बिहार में देखने को मिली जब लालू के लाल ने पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने के बाद लालू के चेहरे को चुनाव के पर्चों पर भी जगह नहीं दी। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। चुनाव मेंं शिकस्त के बाद अनुशासन के नाम पर लालू के करीबियों पर जिस तरह से गाज गिरी, उन्हें समझ आ गया कि लालू की पार्टी में लालू के करीबियों के दिन पूरे हो गए हैं। यह बदलाव प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में नई तरह की राजनीति के संकेत दे रहा है।

बात बिहार की चली है तो दूसरे दशक का आखिरी साल एक और वजह से याद किया जाएगा। जेपी यूनिवर्सिटी से निकले चेहरों को यह साल हमेशा सालता रहेगा। बिहार में लंबे अरसे तक जेपी यूनिवर्सिटी से निकले लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और रामविलास पासवान ने चमड़े का सिक्का चलाया है। एक वक्त था जब इनकी मर्जी के बगैर राजनीति की चिडिय़ा अपने पंख भी नहीं फडफ़ड़ाती थी।

रामविलास पासवान के बीमारी से अवसान से जेपी के चेलों के पराभव की शुरुआत हुई। लालू के लाल ने बिहार चुनावों में लालू के जिक्र से भी परहेज बरत कर अपने पिता को बिहार में अप्रासंगिक बना दिया। बिहार के जनादेश ने जेपी आंदोलन के तीसरे चेहरे नीतीश को गठबंधन में हाशिए पर ला दिया तो सुशील मोदी को राज्यसभा में भेजकर भाजपा ने उनके पर कतर दिए। इस घटनाक्रम से साफ हो गया कि अब जेपी आंदोलन की जड़ें भी बिहार में नहीं बची हैं।

पार्टी विद डिफरेंस वाली भाजपा के लिए भी सदी का दूसरा दशक बेहद खास रहा। अपने स्वर्णकाल में कांग्रेस जिस करिश्मे को दोहराती रही, भाजपा ने उसकी बराबरी कर ली। देश में पहली बार किसी एक दल ने अपने बूते देश की सत्ता पर अपना परचम फहराया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस करिश्मे के साथ ही भाजपा ने राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के बाद देश में शुरू हुई गठबंधन राजनीति की अनिवार्यता को नेपथ्य में धकेल दिया।

देश में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी सरकार ने लगातार दूसरी बार जनादेश अपने पक्ष में हासिल किया और पहले से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की। इससे पहले कांग्रेस दो बार इस तरह का करिश्मा कर चुकी है। वर्ष 1957 में दूसरे आम चुनाव में कांग्रेस ने 371 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि इससे पहले 1952 में पार्टी के खाते में 364 सीटें आई थीं। दूसरी बार 1967 में कांग्रेस ने 283 सीटें जीती थीं और उसके बाद 1971 में हुए चुनाव में उसकी सीटें बढक़र 352 हो गई थीं। भाजपा ने 2014 में 273 और 2019 में 303 सीटें जीतकर कांग्रेस के इस करिश्मे को दोहरा दिया।

अब तक शुचिता की राजनीति का दावा करने वाली भाजपा ने जाते हुए साल के आखिरी दिनों में अरुणाचल में जो किया उसने नई तरह की राजनीति की संभावनाएं खोल दीं। राजस्थान के बाद देश ने देखा कि सत्ताधारी भाजपा ने अपने ही सहयोगी जेडीयू के विधायकों से पाला बदलवा लिया। हालांकि राजनीति के तिकड़मी अशोक गहलोत कुछ वर्ष पहले यही खेल बसपा के साथ खेल चुके थे। महाराष्ट्र ने चुनाव पूर्व गठबंधन के औचित्य पर सवाल खड़े कर दिए।

सदी के पहले दशक में गुजरात का मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी को खारिज कर चुके अमरीका को दूसरा दशक खत्म होते-होते मोदी की अहमियत समझ आ गई। जिस मोदी को अमरीकी प्रशासन वीजा तक देने को तैयार नहीं था उसने अमरीका में उसी मोदी के लिए हाउडी मोदी का आयोजन करा दिया। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका और अमरीका ने अपना सबसे बड़ा अवार्ड लीजन ऑफ मेरिट भी मोदी को दे दिया। कांग्रेस और चीन के रिश्तों पर भी सवाल उठे जिनका जवाब देना नेतृत्व के लिए खासा मुश्किलभरा रहा।

दूसरी सदी इसलिए भी खास रहेगी कि पहली बार पाकिस्तान को उसकी हरकतों का वाजिब जवाब मिला। मोदी सरकार ने एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान को बैकफुट पर ला दिया। पहली बार पाकिस्तान दबाव में आया और पाक सेना के हैलीकॉप्टर का पीछा करते हुए गिरफ्त में आए अभिनंदन को सकुशल वापस भेजना पड़ा। भाजपा पहली बार जम्मू-कश्मीर में सत्ता का हिस्सा बनी। धारा 370 जो जम्मू-कश्मीर के गले की फांस बनी हुई थी, वह तो हटी ही, लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा भी मिल गया। यह वहां रह रहे लोगों की दशकों पुरानी मांग थी, जो अब जाकर पूरी हुई।

जम्मू-कश्मीर में पहली बार जिला पंचायत चुनाव हुए। त्रिपुरा में पहली बार वामकिला ढहा और भाजपा ने परचम लहराया। पश्चिम बंगाल के बाद त्रिपुरा में हुए इस चुनावी बदलाव ने देशभर में वामदलों की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर दिए। यह भी पहली बार हुआ कि पूरे नॉर्थ ईस्ट में जो कभी कांग्रेस की मजबूत दीवार था, भाजपा ने कांग्रेस को दरकिनार कर दिया।

आजादी के बाद देश में पैदा हुए लोगों ने महामारी का सिर्फ नाम ही सुना था। उनके लिए जाता हुआ साल बेहद खौफनाक अनुभव देकर जा रहा है। कोरोना संक्रमण ने पूरे देश की ही नहीं दुनिया के विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को भी जमीन पर ला दिया। स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में पहली पांत के देशों में कोरोना को लेकर अफरा-तफरी मची और सबसे ज्यादा नुकसान भी उन्हें ही उठाना पड़ा। कोरोना के चलते चीन को दुनियाभर की आलोचना झेलनी पड़ी। कोरोना के कारण हुए लोगों के पलायन ने भारत-पाक विभाजन की याद ताजा कर दी।

लॉकडाउन में साधन नहीं मिला तो लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर पैदल सफर कर घर तक पहुंचे। कई ने रास्ते में दम तोड़ दिया। भारत के लिए वैश्विक स्तर पर यह संक्रमण भी संभावनाओं के कई दरवाजे खोल गया है। सीएए और किसान बिलों को लेकर हुआ विरोध भी लोगों को बरसों तक याद रहने वाला है। यह दशक इसलिए भी खास है कि सदियों से अनसुलझे राम मंदिर का विवाद शीर्ष अदालत के एक फैसले ने सुलझा दिया। जो काम अंग्रेजी हुकूमत नहीं कर पाई, जिसे कांग्रेस नहीं सुलझा पाई वह मोदी सरकार के कार्यकाल में हल हो गया।

कुल मिलाकर सदी के इस दूसरे दशक में बहुत कुछ पहली बार हुआ है। पहली बार हुए यह अनुभव उन्हें जिंदगीभर याद रहने वाले हैं। नया दशक देहरी तक आ चुका है और दस्तक दे रहा है। जिस तरह के हालात हैं सदी का तीसरा दशक भी कई अहम घटनाओं का गवाह रहने वाला है। इस दशक में एशिया का भूगोल बदलेगा और राजनीति के तौर-तरीके भी। तकनीक आदमी पर हावी हो जाएगी। दिमाग सुन्न न हो जाए इसलिए उसे लगातार इस्तेमाल करते रहना होगा।