नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निजी क्षेत्र के चौथे बड़े बैंक येस बैंक के जमाकर्ताओं को उनकी धनराशि सुरक्षित होने का आश्वासन देते हुए शुक्रवार को कहा कि यह बैंक अगस्त 2017 से रिजर्व बैंक की निगरानी में था और हितधारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए बैंक पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया है।
सीतारमण ने संवाददाताओं से कहा कि रिजर्व बैंक 30 दिन के भीतर ही इस बैंक के पुनर्गठन के काम को पूरा करेगा और प्रशासक के स्थान पर निदेशक मंडल नियुक्त किया जाएगा।
जमाकर्ताओं की पूरी राशि सुरक्षित होने का भरोसा दिलाते हुए उन्होंने कहा कि एक वर्ष तक बैंक के कर्मचारियों के वेतन भत्ते की व्यवस्था की जाएगी। जमाकर्ता और देयता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। निकासी के लिए निर्धारित सीमा अस्थायी है। निकासी को सीमित किए जाने से ग्राहकों को हो रही कठिनाइयाें के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह इससे अवगत हैं और इन्हें दूर करने के उपाय किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस बैंक में क्या खामियां हुई थीं इसके बारे में विस्तृत रिपोर्ट केन्द्रीय बैंक से मांगी गई है। इसमें किस-किस व्यक्ति की भूमिका है यह भी बताने के लिए कहा गया है। जांच एजेंसियों ने इस बैंक में अनियमितताएं पाईं हैं और अब सेबी ने भी भेदिया कारोबार की जांच शुरू कर दी है।
वित्त मंत्री ने कहा कि यह आज या कल का मामला नही है। अगस्त 2017 से रिजर्व बैंक और मई 2019 से वह स्वयं इस बैंक पर नजर रख रही थीं। कई तरह की खामियां पाने जाने और नियमों का अनुपालन नहीं होने के बाद इस पर निरागनी शुरू की गई थी और सितंबर 2018 में इस पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना भी किया गया था। बैंक के प्रशसन में खामियां पाई गई, अनुपालन बहुत कमजोर पाया गया और गलत संपदा वर्गीकरण किया गया। पिछले छह महीने से दैनिक आधार पर बैंक की निगरानी की जा रही थी।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2004 में इस बैंक की स्थापना के बाद से प्रवर्तकों का ही प्रबंधन पर दबदबा रहा और सितंबर 2018 में रिजर्व बैंक के निर्देश पर प्रवर्तक इससे बाहर हुए तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं मुख्य वित्त अधिकारी की नियुक्ति की गई। इसके निदेशक मंडल में रिजर्व बैंक के एक पूर्व डिप्टी गवर्नर को नियुक्त किया गया। वित्त मंत्री ने कहा कि इस बैंक में कई बार पूंजी निवेश करने की कोशिश की गई, लेकिन नवंबर 2019 में यह साफ हो गया कि इसमें नया पूंजी निवेश नहीं हो पा रहा है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से पहले इस बैंक ने अधिक जोखिम वाली कंपनियों जैसे अनिल अंबानी ग्रुप, एस्सेल ग्रुप, डीएचएफएल, आईएलएफएस और वोडाफोन को ऋण दिया गया था।