नसीराबाद चुनाव : किसको मिलेगा पार्टी टिकट, कौन बनेगा सेनापति

नसीराबाद। विधानसभा चुनाव की आहट से पहले ही सुर्खियों में आई नसीराबाद विधानसभा सीट को लेकर राजनीतिक समीकरण पल पल बदल रहे हैं। परंपरागत रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच ही यहां मुख्य मुकाबला होता आया है। लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस से टिकट पाने की रेस थमने का नाम नहीं ले रही। कौनसा चेहरा सामने आएगा ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।

कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे गोविंद गुर्जर ने यहां कांग्रेस का परचम फहराए रखा। उनके बाद कांग्रेस की विरासत को सहेजते हुए महेन्द्र सिंह और रामनारायण गुर्जर ने भी विधायकी का सुख भोगा। हालांकि गत ​चुनावों में भाजपा ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली और रामस्वरूप लांबा विजयी हुए।

आमजन की राय में सामने आया कि जीत के बाद रामस्वरूप लांबा अपने पिता पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री स्व सांवरलाल जाट जैसा राजनीतिक कौशल नहीं दिखा पाए। उनकी छवि सीमित दायरे में सिमट कर रह गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि विधायक लांबा ने ग्रामीण क्षेत्रों में पिता की तरह वर्चस्व कायम रखा। लेकिन संपूर्ण विधानसभा क्षेत्र में उनकी बेरुखी पार्टी कार्यकर्ताओं को अखर रही है। लांबा केवल आयोजनों के समय ही भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ नजर आए।

पार्टी की बैठकों तथा सार्वजनिक मौकों पर कई बार गैर मौजूदगी इस बार लांबा को भारी पड सकती है। अंदरखाने लांबा की जगह लेने को उतावले छुटभैये नेताओं की फेहरिस्त भी बढ रही है। गत दिनों सौराष्ट्र के लाठी से विधायक जनक भाई पटेल यहां पहुंचे और क्षेत्र की स्थिति का जायजा लिया। नसीराबाद विधानसभा प्रभारी अशोक तनईचा के समक्ष लांबा की कारसेवा करने वालों ने मौके का पूरा फायदा उठाया।

इस सबके बावजूद भाजपा एक बार फिर लांबा पर दांव खेल सकती है। ऐसा नहीं है कि पार्टी लांबा को अजेय प्रत्याशी मान रही है, असल मजबूरी यह है कि नसीराबाद में भाजपा को कांग्रेस को टक्कर देने के लिए दूसरा कोई विकल्प खोजे नहीं मिल रहा। हालांकि टिकट पाने की चाहत में केसरपुरा सरपंच शक्तिसिंह रावत, पूर्व जिला प्रमुख सरिता गैना, ओम भडाणा, गोपाल गुर्जर भी दावेदार के रूप में मीडिया की बदौलत सुर्खियां बटोरने में पीछे नहीं हैं।

गहलोत और पायलट की गुटबाजी में उलझी कांग्रेस

उधर, कांग्रेस का हाल जुबान पर ताला जडा होने सरीखा हो रखा है। गहलोत और पायलट गुट के नाम पर नासूर की तरह पनप रही धडेबाजी के चलते पार्टी कार्यकर्ता चुनावी जंग सामने होने के बाद भी खुलकर सामने नहीं बोल रहे तथा खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। माना जा रहा है कि पूर्व विधायक महेन्द्र गुर्जर या रामनारायण गुर्जर में से किसी एक को कांग्रेस की नैया पार लगाने की जिम्मेदारी मिल सकती है।

गुटबाजी के चलते इन नामों पर सहमति ना बनी तो श्रीनगर प्रधान कमलेश गुर्जर का नाम भी तुरुप के पत्ते की तरह आगे किया जा सकता है।कांग्रेस की तरफ से गुरु दायल गुर्जर, शिव प्रकाश गुर्जर खम ठोंक रहे हैं। बाहरी होने से इनका दावा कितना मजबूत साबित होगा यह भविष्य के गर्त में छिपा है। इस बीच नांदला पंचायत से दो बार लगातार जीत हासिल कर सरपंच बने मानसिंह रावत भी विधायक बनने का सपना संजों रहे हैं।

बहरहाल भाजपा और कांग्रेस आलाकमान के सामने बदली राजनीति परिस्थितियां, स्थानीयवाद के ज्वलंत मुद्दे के तोड तथा सर्वमान्य प्रत्याशी की तलाश प्राथमिकता बन गई है। ऐसे में दावेदारों की लंबी होती जा रही लिस्ट ठहरे हुए पानी में कंकड मारकर लहर उठाने से अधिक असरकारक साबित नहीं होगी। टिकट का कोई भी दावेदार बगावत का झंडा बुलंद करने का साहस जुटा ले तो मुकाबला जरूर रोचक हो सकता है।