विजय सिंह मौर्य
जयपुर/भोपाल। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपनी सत्ता वाले मध्य प्रदेश तथा सत्ता में वापसी की संभावना वाले राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी चुनावी नतीजों के बाद बड़े बदलाव कर सकती है। इस बदलाव में मुख्यमंत्री कौन होगा यह सवाल सबसे यक्ष प्रश्न बना हुआ है। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पैनी निगाहें अनुषांगिक राजनीतिक संगठन भाजपा पर लगी हुई है। नेतृत्व किसको सौंपा जाएगा इसकी पटकथा भी लिखी जा चुकी है।
क्या मध्यप्रदेश में शिवराज चौहान की होगी सम्मानपूर्वक विदाई
मध्यप्रदेश में सरकार में होने के बावजूद भाजपा ने अन्य राज्यों की तरह मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया। भविष्य की रणनीति के मद्देनजर पार्टी नए नेतृत्व को उभारने की कवायद में है। कुछ ऐसा ही चुनौती भरे राजस्थान को लेकर भी फैसला लिया जाना तय हो चुका है। हालांकि 3 दिसंबर को चुनाव के नतीजे भी इस पर असर डालेंगे। भावी फैसले में सामाजिक समीकरणों के साथ राजनीतिक हालात भी अहम भूमिका निभाएंगे।
मध्य प्रदेश में भाजपा सवा साल छोड़कर बीते दो दशकों से सत्ता में रही है। लेकिन नेतृत्व ओबीसी वर्ग के पास ही रहा। शिवराज सिंह चौहान को आगे कर येन केन प्रकारेण राज्य में सरकार को बचाए रखने के जतन में ही पांच साल निकल गए। इस बीच भाजपा अपने तय लक्ष्यों से काफी पीछे छूट गई। सत्ता वापसी की उम्मीदों के बीच चुनाव परिणामों के तत्काल बाद से मुख्यमंत्री पद पाने की होड मचना स्वाभाविक है। शिवराज अगले मुख्यमंत्री होंगे यह संभावना झीण होती जा रही है।
क्या राजस्थान में राजे अध्याय हमेशा के लिए बंद होगा
राजस्थान में हालात भले ही ‘एक बार भाजपा तथा एक बार कांग्रेस’ वाले रहे हों। यह परंपरा बदलने के लिए विचार बन चुका है। जानकारों की माने तो इसी विचार के तहत ‘हर बार भाजपा’ की नीति पर काम हो रहा है। इसके लिए वसुंधरा राजे जैसी प्रभावशाली नेता को दरकिनार करने तक का जोखिम उठाया गया। इससे साफ झलक रहा है कि राजे का अध्याय हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा। पार्टी को व्यक्ति केन्द्रीत की बजाय विचारधारा पर केन्द्रीत करने का निर्णय अमल में लाए जाने की आहट सुनाई देने लगी है। लोकसभा चुनावों से पहले विकास को लक्ष्य बनाकर जनता का विश्वास जीतना भी चुनौती से कम नहीं। ऐसे में मुख्यमंत्री की रेस में शामिल हस्तियों को बडा झटका लग सकता है।
क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हाथ में लेगा कमान
केन्द्र की मोदी सरकार को जिस तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वरदहस्त प्राप्त हो रहा है उससे लगता है कि संघ का मोदी और उनकी नीतियों पर भरोसा बरकरार है। साल 2024 के होने वाले लोकसभा चुनावों में केन्द्र में भाजपा की सत्ता वापसी में भी संघ को संदेह नहीं। लेकिन राज्यों के चुनावों में हर बार भाजपा को भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह मतदाताओं को लुभाना पड रहा है। विचारधारा और नीतियों के बूते जीत का लक्ष्य तय नहीं हो पा रहा। मोदी की तर्ज पर विकास का कोई एजेंडा धरातल पर उतरता नहीं दिख रहा। राज्यों में स्थानीय मुद्दे जीत हार का कारण बन रहे हैं। विकास का स्वप्न साकार रूप लेता नहीं दिख रहा। ऐसे में संघ का वरदहस्त राज्य स्तरीय भाजपा को नेता को मिलेगा इसके संदेह है। लक्ष्य हासिल करने के लिए आसाम, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, हरियाणा में शासन चलाने के तौर तरीकों को राजस्थान और मध्यप्रदेश में लागू करने के लिए संघ अपने स्तर पर पूर्णकालिक कार्यकर्ता (प्रचारक) को भी कमान सौंप सकता है।