जयपुर। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांत संयोजकों और सह संयोजकों की दो दिवसीय बैठक 25 दिसंबर से जयपुर में होगी।
न्यास के राष्ट्रीय सहसंयोजक और मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक अशोक कड़ेल ने आज यहां बताया कि बैठक में 25 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति उपस्थित रहेंगे। उन्होंने बताया कि 24 दिसंबर को संचालक मंडल की बैठक होगी वहीं 25 और 26 दिसंबर को प्रांत संयोजकों, सह संयोजकों और प्रमुख कार्यकर्ताओं की बैठक होगी।
उन्होंने बताया कि 26 दिसंबर को शाम पांच बजे अग्रवाल पीजी कॉलेज में शिक्षा में भारतीयता और व्यवस्था परिवर्तन विषय पर एक प्रबुद्धजन गोष्ठी का भी आयोजन किया जाएगा। गोष्ठी के मुख्य वक्ता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव अतुल भाई कोठारी होंगे वहीं संगोष्ठी की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले करेंगे जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी होंगे।
कड़ेल ने कहा न्यास वर्तमान में 16 विषयों को लेकर काम कर रहा है। हमारे लिए खुशी की बात है 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित हुई। बहुत लंबे समय के बाद में भारत केंद्रित और समग्र शिक्षा नीति आई। इसमें भारतीय परंपरागत ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान का समन्वय है। उन्होंने कहा कि न्यास ने 2011 में ही शिक्षा में परिवर्तन क्या होने चाहिए, इस दिशा में काम प्रारंभ किया था। न्यास के कई सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल किए गए।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश में किस तरह से और अच्छे से लागू हो, इस पर सेमिनार और संगोष्ठियां आयोजित कर रहे हैं। शिक्षा नीति नीचे विद्यालयों और महाविद्यालयों तक उतरे ताकि इसका लाभ छात्रों को मिले, इसके लिए एक अभियान न्यास ने शुरू किया है। बैठक में शिक्षा से आत्मनिर्भर भारत विषय पर भी चर्चा होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्म निर्भर भारत का कांस्टेप्ट देश के सामने रखा है। इस दिशा में सार्थक प्रयास भी हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी और युवा किस तरह से आत्मनिर्भर बन सकते हैं, ऐसे प्रयास शिक्षण संस्थानों के माध्यम से शुरू किए है। युवा नौकरी के पीछे भागने वाला ही नहीं बने बल्कि वह रोजगार देने वाला बनें, इस दिशा में भी काम शुरू किया है।
उल्लेखनीय है कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का कार्य 2004 में शिक्षा बचाओं आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था। उस समय ध्यान में आया था कि शिक्षा में कुछ बातें जानबूझकर यहां की संस्कृति, सभ्यता और देवी- देवताओं के लिए गलत तरीके फैलाई जा रही है। इन्हीं बातों को ठीक करने के लिए शिक्षा बचाओं आंदोलन प्रारंभ हुआ था।