जयपुर। दुनिया के सबसे बड़े साहित्यिक उत्सव जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल-2024 राजस्थान की राजधानी जयपुर में गुरुवार को शुरु हुआ जिसमें प्रसिद्ध शायर गुलजार, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी अजय जड़ेजा, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और लेखक एस वाई क़ुरैशी, ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री माल्कोल्म टर्नबुल और लेखक एवं भूतपूर्व राजनयिक नवदीप सूरी सहित कई हस्तियों ने विभिन्न सत्रों में भाग लिया और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
फेस्टिवल के शुरुआत में इतिहासकार, लेखक और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के फाउंडर एवं को-डायरेक्टर विलियम डेलरिम्पल ने कहा कि लिटरेचर फेस्टिवल एशिया महाद्वीप पर एक बड़े मूवमेंट के रूप में उभरे हैं लेकिन इन सबकी शुरुआत यहां से हुई थी। हर साल की तरह इस साल भी साहित्य प्रेमियों के लिए दुनिया की श्रेष्ठ प्रतिभाओं को लाया गया हैं|
‘बाल ओ पर’ सत्र की शुरुआत में हरदिल अजीज़ शायर गुलज़ार साहब ने अपने नए काव्य-संग्रह के बारे में कहा कि ये उनकी अप्रकाशित रचनाओं का संकलन है और अभी भी उनकी इतनी सारी रचनाएं अप्रकाशित हैं कि उनसे इतनी ही बड़ी एक और किताब बन सकती है। सत्र में अनुवाद की कला, उसकी चुनौतियों और लेखक एवं अनुवादक के रिश्ते पर भी बात हुई। गुलज़ार साहब की कई अन्य रचनाओं का अनुवाद कर चुके पवन के वर्मा ने बताया कि कविता का अनुवाद सबसे जटिल कार्यों में से एक है। गुलज़ार साहब ने अनुवाद पर कहा कि मानता हूं कि परफ्यूम की मात्रा थोड़ी कम ज़रूर हो जाती है लेकिन खुशबू कम नहीं होती।
‘सोंग्स ऑफ़ मिलारेपा’ सत्र गुरु मिलारेपा को समर्पित रहा। सत्र में प्रसिद्ध अकादमिक और लेखक एंड्रू क्विंटमैन ने अभिनेता और लेखक केली दोरजी से संवाद किया। दोरजी ने कहा कि मिलारेपा अपने लोगों से गैर-पारम्परिक ढंग से बात करते थे। वे बिलकुल उनके अपने थे, शायद यही वजह है कि उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा है। सत्र में मिलारेपा के कठिन जीवन की भी बात हुई और उन्होंने बताया कि वास्तव में मिलारेपा ने तंत्र-मंत्र अपने परिवार से बदला लेने के लिए सीखा था लेकिन फिर उनका ह्रदय परिवर्तित हुआ और उन्होंने खुद को समाज के लिए समर्पित कर दिया। इस सत्र में नमिता गोखले की किताब ‘मिस्टिक एंड सेप्टिक्स’ के हिन्दी अनुवाद, ‘हिमालय एक खोज’ का लोकार्पण भी हुआ। इस किताब में गुरु मिलारेपा पर एंड्रू क्विंटमैन का लेख भी शामिल है।
इसी तरह ‘फिलोसफी, फेंटेसी एंड फ्रीडम’ सत्र में तमिल और मलयालम लेखक बी. जेयामोहन के विस्तृत और विविध लेखन पर चर्चा हुई। जेयामोहन ने कई तमिल फिल्मों की पटकथा लिखी है, जिनमें हाल ही में रिलीज हुई फिल्म, पोन्नी सेल्वन भी शामिल है। अपने लेखकीय सफ़र पर जेयामोहन ने कहा कि मैंने ये सोचकर लिखना नहीं शुरू किया था कि मुझे बड़ा लेखक बनना था। मैंने लिखना एक आध्यात्मिक अभ्यास के तौर शुरू किया था… जब मैं 24 साल का था, तो मेरे माता-पिता आत्महत्या कर ली थी, और उस सदमे से बाहर आने के लिए मैंने लिखना शुरू किया। उन्होंने कहा कि एक अच्छे लेखक के लिए उसका मूल और दर्शन बहुत ज़रूरी होते हैं। सत्र में उनके साथ लेखिका और अनुवादक सुचित्रा रामचंद्रन और लेखिका अंजुम हसन भी मौजूद थे।
‘ए बिगर पिक्चर’ सत्र में ऑस्ट्रेलिया के भूतपूर्व प्रधानमंत्री माल्कोल्म टर्नबुल और लेखक और भूतपूर्व राजनयिक नवदीप सूरी ने अपने कार्यकाल को याद किया। जब माल्कोल्म ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री थे, तब सूरी ऑस्ट्रेलिया में भारत के राजदूत थे। वर्तमान हालात पर बात करते हुए माल्कोल्म ने कहा कि हमारा बड़ा खज़ाना ज़मीन के नीचे नहीं है, वो उसके ऊपर चल रहा है। इसीलिए हमें किसी भी तरह की ‘हेट स्पीच’ के लिए सजग रहना चाहिए। उसके लिए जीरो टोलरेंस होना चाहिए। उन लोगों के प्रति जीरो टोलरेंस होना चाहिए, जो किसी भी तरह के भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों पर भी बात की उन्होंने ‘बोलने की स्वतंत्रता’ और ‘मीडिया की अभिव्यक्ति’ में संतुलन होने पर बात की। उन्होंने कहा कि बोलने की आज़ादी होनी चाहिए लेकिन सही इनफार्मेशन होना उससे भी ज़्यादा जरूरी है।
फेस्टिवल में 2023 के बुकर प्राइज से सम्मानित लेखक पॉल लिंच ने बताया कि वह पहली बार भारत आने पर काफी रोमांचित हैं। भारत की बहुरंगी ख़ूबसूरती की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इसके सामने आयरलैंड में उनका होमटाउन लिमेरिक तो एक रंग का ही है। उनका उपन्यास, ‘प्रोफेट सोंग’ हाशिये पर खड़े समाज का एक उत्तेजक, प्रेरक और टकरावपूर्ण वर्णन है। एक महिला द्वारा अपने परिवार को बचाने की इस कहानी में आयरलैंड के पितृसत्तात्मक और तानाशाह समाज की झलक है।
संवाद के दौरान उन्होंने अपने लेखकीय सफ़र और प्रेरणा की भी बात की। लिंच ने कहा कि मुझे एहसास हुआ कि कुछ और बेहतर मेरा इंतजार कर रहा है और मुझे कुछ सहज ज्ञान हुआ। मैंने बैठकर अपनी आंखें बंद कर लीं और फिर इंतजार करने लगा और फिर मैंने लिखना शुरू कर दिया। उस पल मुझे नहीं पता था कि किताब का स्वरुप क्या होगा, मुझे ये भी नहीं पता था कि ये पूरी भी होगी या नहीं। अगर मुझे पता होता तो शायद मैंने लिखना बंद कर दिया होता।
पर्यावरण को समर्पित सत्र ‘इंटरटाइडल’ में वक्ताओं ने प्रकृति से जुड़े अपने अनुभवों पर बात की। लेखक और प्रकृतिवादी युवान आवेस की नई किताब, ‘इंटरटाइडल: ए कोस्ट एंड मार्श डायरी’, दो साल और तीन मानसून में फैली हुई, तट और आर्द्रभूमि, जलवायु और स्वयं की गहरी टिप्पणियों की एक डायरी है। आवेस ने अपने बचपन और मां को याद करते हुए बताया कि कैसे प्रकृति के साथ उनके अभिन्न संबंध थे। प्रकृति के साथ उनका रिश्ता कैसे विकसित हुआ के बारे में युवान ने कहा कि प्रकृति ही वह तरीका है जिससे मैंने दुखों को फिर से आकार दिया है। एक स्थान और उपस्थिति के संपर्क में रहना जो किसी के सिकुड़े हुए स्वार्थ से परे है जो किसी को पीड़ा पहुंचाता है और पीड़ा में बदल देता है।
फेस्टिवल में ‘क्रिकेट: द स्प्रिट ऑफ़ द गेम’ सत्र क्रिकेट को समर्पित रहा। क्रिकेट सही मायनों में भारतीयों का धर्म है। इस सत्र में लेखक, टिप्पणीकार, कोच और पूर्व क्रिकेटर, वेंकट सुंदरम की नई किताब, ‘इंडियन क्रिकेट: देन एंड नाउ’ के माध्यम से बीते सालों में खेल की भावना और अभ्यास में आये बदलाव पर चर्चा हुई। इंडिया के हरफनमौला बल्लेबाज रहे अजय जड़ेजा ने खेल के दिनों के कई मज़ेदार किस्से भी साझा किए। आज के माहौल पर उन्होंने कहा कि बदकिस्मती से हम अब गलतियों को बर्दाश्त नहीं करते, आप चाहते हैं कि आपके खिलाड़ी हमेशा अच्छा ही खेलें, इसीलिए उसी खिलाड़ी को एक समय में पांच कोच के निर्देश सुनने पड़ते हैं।
‘लेसन इन कैमिस्ट्री’ सत्र की शुरुआत में अमरीकी लेखिका और कॉपीराइटर, बोनी गार्मुस बताती हैं कि उन्हें अपनी किताब लिखने की प्रेरणा मेल-डोमिनेटेड वर्कप्लेस में एक बुरे दिन से मिली। लेखन पर गार्मुस ने कहा कि मुझे लगता है कि लेखन सबसे मुश्किल काम है। खाली पन्ने को घूरने से बुरा कुछ नहीं है। उनका उपन्यास, ‘लेसंस इन कैमिस्ट्री’ एक हताश कैमिस्ट के गिर्द घूमता है, जब वो अचानक खुद को एक कुकिंग शो में पाती है, जो 1960 के दशक के अमरीका में क्रान्ति की चिंगारी लगा देता है।
‘ब्रेकिंग द मोल्ड’ सत्र में रघुराम राजन ने रोहित लाम्बा के साथ सह-लेखन में लिखी, ‘ब्रेकिंग द मोल्ड: रीइमेजनिंग द इकोनोमिक फ्यूचर’ पर बात की। सत्र में नौशाद ने उनसे पूछा कि ‘आप किन सांचों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इस पर राजन ने कहा कि सांचा एक मायने में विकास के वो तरीके हैं, जिनका इस्तेमाल आज तक अधिकांश देश कर रहे हैं। इस दौरान दोनों वक्ताओं ने जोर दिया कि भारत के विकास के लिए नए तरीके भी हैं, जैसे मानव-पूंजी में निवेश करके, उच्च-दक्षता सर्विस में विस्तार करके, और तकनीक से जुड़े नए उत्पादों के माध्यम से।
‘द ग्रेट एक्सपेरिमेंट’ सत्र में वक्ताओं ने भारत में लोकतांत्रिकता पर बात की। इसे ‘एक्सपेरिमेंट’ कहे जाने पर, भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने कहा कि जब हमने लोकतंत्र को चुना था, तो यह वास्तव में एक प्रयोग ही था। सबको लगा था कि यह गलत कदम साबित होगा, क्योंकि हमारी 70 प्रतिशत से अधिक आबादी निरक्षर थी। ये सच में एक एक्सपेरिमेंट ही था। सत्र में जोर दिया गया एक वोट या एक पल देश में राजनैतिक पॉवर को सुनिश्चित नहीं कर सकता, लेकिन लोकतंत्र लोगों को अपना मन बदलने का अवसर देता है| यस्चा ने कहा कि जब राजनेता कहते हैं की ‘मैं ही जनता का सच्चा प्रतिनिधि हूं’ तो मेरे हिसाब से वे सिस्टम को धोखा दे रहे हैं।
इससे पहले राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने फेस्टिवल उद्घाटन किया और इस अवसर पर कहा कि जयपुर और फेस्टिवल एक-दूसरे के पर्याय हैं। आपने इस फेस्टिवल के माध्यम से जयपुर को वर्ल्डमैप पर हाईलाइट कर दिया है। साहित्य आज के समय की मांग है और इस फेस्टिवल ने सिर्फ साहित्य को ही नहीं, जयपुर के पर्यटन को भी बहुत सहयोग किया है।
लेखिका और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की फाउंडर एवं को-डायरेक्टर नमिता गोखले ने कहा कि हर साल मैं फेस्टिवल के लिए एक उपमा चुनती हूं और इस बार मैं फिर से कथासरित्सागर पर लौटती हूं। ये फेस्टिवल हमारी बदलती दुनिया को समझने का प्रयास है। हम विचार और संवाद का इंद्रधनुष पेश करेंगे।