जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित पांच दिवसीय प्रसिद्ध जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन कवियित्री अरुंधति सुब्रमण्यम को प्रतिष्ठित कन्हैयालाल सेठिया पुरस्कार-2024 से सम्मानित करने के साथ विभिन्न सत्र आयोजित किए गए जिसमें कई विषयों पर चर्चा की गई।
प्रसिद्ध कवि, शिक्षक, समाज सुधारक, पर्यावरणविद् और स्वतंत्रता सेनानी महाकवि कन्हैयालाल सेठिया को महाकवि कन्हैयालाल सेठिया फाउंडेशन के सहयोग से फेस्टिवल द्वारा प्रस्तुत वार्षिक पुरस्कार के माध्यम से याद किया जाता है। इस अवसर पर अरुंधति ने कहा कि कविता को अवॉर्ड मिलना साहित्य को प्रोत्साहन करने का सबसे नायाब तरीका हैं।
पहले सत्र ओपेन्हाईमर: द अमेरिकन प्रोमिथेउस में केय बर्ड ने अपनी किताब के माध्यम से एटमिक त्रासदी और ओपेन्हाईमर के व्यक्तित्व पर चर्चा की। केय बर्ड की किताब के आधार पर ही क्रिस्टोफर नोलन ने सुपरहिट फिल्म ‘ओपेन्हाईमर’ बनाई है। सत्र संचालक जोनाथन फ्रीडलैंड ने जब केय से पूछा कि क्या नोलन उनकी किताब से न्याय कर पाए, तो उन्होंने कहा कि हां, फिल्म सच में शानदार बनी है और यह पूरी तरह मेरी किताब के साथ न्याय करती है। केय ने कहा कि ओपेन्हाईमर वर्तमान समय में और ज्यादा प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब हम लगातार युद्ध और परमाणु बम की दहशत के साये में जी रहे हैं। रोबर्ट ओपेन्हाईमर की कहानी अमरीका की राजनीति को समझने के लिए ज़रूरी है।
द पेल ब्लू डॉट: चेरिशिंग अवर प्लैनेट सत्र में मिंत्रा और क्योरफिट के संस्थापक मुकेश बंसल, जी20 शेरपा अमिताभ कांत और एक्सिस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री नीलकंठ मिश्रा से एनडीटीवी समूह के कार्यकारी संपादक विष्णु सोम ने संवाद किया। अंतरिक्ष अन्वेषण के बढ़ते उद्योग और इसमें भारत के स्थान के बारे में बोलते हुए अमिताभ कांत ने कहा कि हमें अंतरिक्ष पर्यटन के लिए अंतरिक्ष व्यवसाय में नहीं होना चाहिए बल्कि अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए। पैनल में निजी क्षेत्र और सबसे महत्वपूर्ण बात भारत के युवाओं को अंतरिक्ष अन्वेषण के अनुसंधान में अपनी भूमिका निभाने पर प्रकाश डाला गया। बंसल कहा कि बहुत से युवा उद्यमी सचमुच समझ रहे हैं कि आकाश की सीमा है।
द पावर ऑफ मिथ सत्र में, आनंद नीलकंठन ने सत्यार्थ नायक (द वीक द्वारा प्रस्तुत) के साथ हिंदू ग्रंथों पर चर्चा की। ब्लॉकबस्टर बाहुबली त्रयी के लेखक आनंद नीलकंठन ने ईश्वर के बारे में अपने विचार को समझाया और बताया कि कैसे यह औपनिवेशिक युग के दौरान अंग्रेजों द्वारा विकसित एक ईश्वर, एक हिंदू की अवधारणा से काफी अलग है। सत्र के अंत में नीलकंठन ने अपनी नई रिलीज़ असुर: टेल ऑफ़ द वेंक्विश्ड का उल्लेख किया।
बैन्ड, बर्न्ड एंड सेंसर्ड सत्र में उन किताबों पर चर्चा हुई जिन्हें प्रशासन और समाज ने खतरनाक मानकर प्रतिबंधित किया, जला दिया और सेंसर किया गया। सत्र की शुरुआत में वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग ने अपने उपन्यास चित्तकोबरा पर बात की। चित्तकोबरा का प्रकाशन 1979 में हुआ था और इस उपन्यास की वजह से लेखिका पर अश्लीलता का आरोप लगाकर उन पर पुलिस केस किया गया। मृदुला ने कहा कि पुलिस के मेरे घर आने से मैं और ज़्यादा निडर बनी। नवदीप सूरी ने अपने दादा नानक सिंह की कविता ख़ूनी बैसाख के सन्दर्भ में कहा कि वो लम्बी कविता जलियांवाला हत्याकांड की त्रासदी पर लिखी गई थी और तत्कालीन सरकार ने 1919 में उसकी सारी प्रतियां जला दी थीं, मैं उनकी मौलिक कृति 2019 में ब्रिटिश म्यूजियम में देख पाया।
पारो@40 सत्र में लेखिका नमिता गोखले के उपन्यास पारो और उनके लेखन पर दिलचस्प चर्चा हुई। सन 1984 में जब उन्होंने पारो लिखा था तो इसकी बहुत आलोचना हुई थी। फर्स्ट एडिशन में शिवानी सिब्बल के पहले बहुचर्चित उपन्यास इक्वेशंस के हिन्दी संस्करण सियासत का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण में शिवानी सिब्बल, मृदुला गर्ग, मीता कपूर और प्रभात रंजन शामिल हुए।
द नेम इज़ फ्लेमिंग सत्र में पुरस्कृत जीवनीकार निकोलस शेक्सपियर ने प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक मैथ्यू पार्कर के साथ अपनी किताब इयान फ्लेमिंग: द कम्प्लीट मैन पर चर्चा की। शेक्सपियर ने इयान फ्लेमिंग के जीवन के बारे में अंतरंग विवरण साझा किए, उनके बचपन से लेकर जब उन्होंने आठ साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था और अंततः राष्ट्र संघ में जिनेवा, ऑस्ट्रिया में नौकरी प्राप्त की।
द प्रॉमिस सत्र में बुकर पुरस्कार विजेता डेमन गैलगुट ने अपनी किताब द प्रॉमिस के बारे में बात की, जो रिश्तों में पॉवर के खेल को व्यक्त करती है। किताब के बारे में बात करते हुए गलगुट ने कहा कि यह दक्षिण अफ्रीका में सबसे कठिन दशकों के दौरान उनके मित्र के परिवार में हुई चार अंत्येष्टि के इर्द-गिर्द रची गई थी, जिसमें परिवर्तनकारी परिवर्तन देखे गए।
जस्टिस: द वोइस ऑफ़ द वोइसलेस सत्र की शुरुआत लेखिका और कानून की एसोसिएट प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा ने पिछले 75 वर्षों में सुप्रीमकोर्ट की भूमिका और संरचना में हुए भारी बदलावों के बारे में बोलते हुए की। जस्टिस मुरलीधर ने टिप्पणी की कि आज हमारे पास ऐसी न्यायपालिका नहीं है, जो कार्यपालिका के हस्तक्षेप से पूरी तरह अछूती हो। चंद्रा ने अपनी सह-लिखित पुस्तक कोर्ट ऑन ट्रायल में विषयों पर चर्चा करके बातचीत को आगे बढ़ाया। जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि भारत का संविधान स्वयं सर्वोच्च न्यायालय में आने के लिए पर्याप्त दिशानिर्देश प्रदान करता है; इसलिए उच्चतम न्यायालय को बस इतना करना है कि संविधान जो कहता है उसका पालन करें।