अजमेर। राजनतिक पार्टियों और नेताओं पर चुनाव आयोग आचार संहिता का चाबुक भले ही प्रभावी तरीके से ना चला पाता हो, लेकिन चुनावी कानूनी कायदों की आड में पुलिस व प्रशासन आमजन को हैरान परेशान करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोडता। इसकी बानगी गुरुवार को अजमेर शहर में नजर आई। बहुतेरे लोग विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी कामों से कलेक्ट्रेट व समीपवर्ती अन्य विभागों तक पहुंचने में नाकाम रहे।
बतादें कि नामांकन प्रकिया शुरू होते ही कलेक्ट्रेट परिसर की किलेबंदी कर दी गई है। मुख्य द्वार से लेकर भीतर तक ऐसी बेरिकेटिंग कर दी गई जैसे की किसी आक्रमण, आपदा या आपातकालीन हालात में सुरक्षा के लिए की जाती हो। हद तो तब हो गई जब बस स्टेंड, अजमेर क्लब चौराहा तथा पुलिस लाइन की ओर से कलेक्ट्रेट तक आने वाले रास्तों को तक को बंद कर दिया गया। खाकी वर्दी के साथ ही ट्रेफिक पुलिस के सिपाहियों की पूरी फौज आमजन को खदेडने के लिए सडक पर उतार दी गई।
यातायात पुलिस की समझ को सलाम
चुनाव आयोग के निर्देशों की आड में यातायात पुलिस ने बाकायदा प्रेस नोट जारी कर कहा है कि 28 मार्च से 4 अप्रेल तक लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के नामांकन भरने का समय सुबह 11 बजे से अपराहन 3 बजे तक रहेगा। चूंकि ये नामांकन पत्र जिला निर्वाचन अधिकारी कलक्टर अजमेर के कार्यालय में प्रस्तुत किए जाएंगे इसलिए यातायात व्यवस्था में डायवर्जन किया जा रहा है।
लोहाखान पुलिस लाइन की ओर से आने वाले सभी प्रकार के वाहनों को पुलिस लाइन पहले चौराहे से ही कोर्ट व बस स्टेंड की ओर से शहर के भीतर प्रवेश की अनुमति होगी। इसी तरह वैशाली नगर, सावित्री चौराहा की तरफ से आने वाले वाहन अजमेर क्लब से पटेल मैदान राजहंस वाटिका हाते हुए जा सकेंगे। जयपुर रोड बस स्टेंड की तरफ से आने वाले वाहन अम्बेडकर सर्किल से डाक बंगला होते हुए कलेक्ट्रेट से पीछे से जा सकेंगे। इतना ही नहीं बल्कि पुलिस लाइन पहले चौराहे से एसपी आफिस तक, अंबेडकर सर्किल से अजमेर क्लब चौराहे तथा अजमेर क्लब चौराहे से अंबेडकर सर्किल तक सभी प्रकार के वाहनों का प्रवेश निषेध कर दिया गया।
चुनाव आयोग की आड में अफसरशाही की मौज
दीगर बात यह है कि पुलिस लाइन के पहले चौराहे से कलेक्ट्रेट मार्ग पर करीब 300 मीटर के बीच वाणिज्यकर विभाग, राजस्व मंडल, अजमेर विकास प्राधिकरण, सार्वजनिक निर्माण विभाग समेत कई महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय स्थित हैं। स्टेट बैंक की मुख्य शाखा कलक्ट्रेट के ठीक सामने है। इन सब विभागों से आमजन का प्रतिदिन काम पडता है। ऐसे में जब जरूरतमंद अपने कामों से विभागों तक ही नहीं पहुंच पाए तो अफसरशाही और कर्मचारियों की मौज हो गई। वे पंखों और कूलर की शीतल हवा के झोंकों का आनंद लेते रहे।
पुलिस से उलझता है, काटो इसका चालान
चुनाव आयोग के निर्देशों की आड में खाकी वर्दी पूरे तेवर दिखा रही थी और वाहनों चालकों से आ बैल मुझे मार की तर्ज पर भिडंत को उतावली नजर आई। पुलिस की जुबां पर एक ही जुमला था ये चुनाव आयोग का निर्देश है। यहां 100 मीटर की परिधि में कोई नहीं आएगा। पुलिसिया रुआब के चलते अनेक मीडियाकर्मियों तक को कवरेज करने के लिए वाहन समेत कलक्ट्रेट तक पहुंचने के लिए मिन्नते करनी पडी। मुख्य निर्वाचन अधिकारी और पुलिस कप्तान तक ने प्रत्यक्ष आकर ना तो हालात को समझने की कोशिश की और ना ही आमजन को हो रही परेशानी से कोई वास्ता रखा। हां, पुलिस ने बहस और उलझने वाले वाहन चालकों का चालान काटकर उन्हें नसीहत रूपी इनाम जरूर थमा दिया। अजमेर क्लब चौराहे पर तैनात खाकी वर्दी ने तो बीमार, असहाय, बुजूर्गो तक को धकिया दिया मानों ऐसा करने से चुनाव आयोग उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित करेगा।
एक बुजूर्ग ने सुझाया सारी समस्या का समाधान
कलेक्ट्रेट के आसपास के रास्तों पर वाहनों के आगमन रोकने से गुस्साए एक बुजूर्ग ने तो बडी सहजता से इस समस्या का समाधान बता दिया। उन्होंने कहा कि शहर से बाहर विश्राम स्थली में निर्वाचक अधिकारी का अस्थाई कार्यालय बना दों। सारा चुनाव कार्य वहीं से संचालित करों। शहर में शांति से रहने दो। हम बूढो पर रहम खाओ। एक युवा ने कहा कि एक तरफ चुनाव आयोग स्वीप कार्यक्रम के जरिए मतदान बढाने के लिए अपील करता है वहीं दूसरी तरफ वोटर की इस तरह बेकद्री की जाती है। सिर्फ एक निर्वाचन अधिकारी की सुविधा के लिए शहर परेशान क्यों हो?
नेताओं के काफिले को बडे अदब से गुजारा, सलूट ठोंका
कलेक्ट्रेट के सामने, बस स्टेंड व अजमेर क्ल्ब चौराहे पर तैनात खाकी वर्दी जहां एक तरफ चुनाव आयोग के निर्देश देकर आमजन को कानून का पाठ पढा रही थी। वहीं समीप ही सिविल लाइन में भाजपा प्रत्याशी भागीरथ चौधरी के मुख्य चुनाव कार्यालय के उदघाटन में आए मंत्रियों व बडे नेताओं के वाहन और काफिले को कलेक्ट्रेट के दोनों तरफ बस स्टेंड और अजमेर क्लब चौराहे के बैरिकेटिंग खिसकाकर उसी रास्ते से बडे अदब से गुजारा बल्कि सलूट भी ठोके। यह बात अलग है कि किसी नेता ने रूक कर जनता का हाल नहीं जाना।