नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने बुधवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से संबंधित एक विवाद पर सुनवाई करते हुए इस बात पर जोर दिया कि किसी को भी जानबूझकर न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या करने का अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने राकांपा (शरद पवार) की याचिका पर उनके भतीजे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार समूह से पूछा कि क्या उसने ‘शरद पवार’ के नाम और राकांपा की ‘घड़ी’ चिह्न का उपयोग करते हुए यह उद्घोषणा जोड़ने के न्यायालय के आदेश का पालन किया था कि (इस चुनाव चिह्न का) इसका आवंटन न्यायालय के विचाराधीन है।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले अजित पवार गुट को प्रचार सामग्री में एक उद्घोषणा जोड़ने का निर्देश दिया था कि ‘घड़ी’ चुनाव चिह्न का आवंटन न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है। पीठ ने टिप्पणी की कि किसी के पास जानबूझकर उसके आदेश की गलत व्याख्या करने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने अपने आदेश के अनुपालन में समाचार पत्रों में प्रकाशित विज्ञापनों का विवरण रिकॉर्ड पर लाने का निर्देश दिया।
पीठ ने अजित पवार गुट की ओर से पेश अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि आप निर्देश प्राप्त कर सकते हैं कि इस आदेश के बाद कितने विज्ञापन जारी किए गए। यदि वह (अजित पवार) इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, तो हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता हो सकती है। किसी को भी हमारे आदेश को जानबूझकर गलत समझने का अधिकार नहीं है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने शरद पवार गुट का पक्ष रखते हुए आरोप लगाया कि वह (अजित पवार गुट) 19 मार्च को शीर्ष अदालत द्वारा पारित आदेश का पालन नहीं कर रहा है।पीठ ने कहा कि आदेश सरल भाषा में था और इसकी गलत व्याख्या की कोई गुंजाइश नहीं है।
इस पर सिंघवी ने दलील दी कि अदालत ने 19 मार्च को विस्तृत आदेश पारित किया था, लेकिन अजित पवार गुट की ओर से इसका अनुपालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि दूसरे पक्ष की ओर से इस आदेश में ढील देने के लिए आवेदन दिया गया है, जिसका मतलब है कि दूसरा पक्ष आदेश की समीक्षा की मांग कर रहा है।
उन्होंने कहा कि चूंकि चुनाव जल्द ही शुरू होने वाले हैं, इसलिए अदालत को इस तरह की समीक्षा पर विचार नहीं करनी चाहिए। रोहतगी ने अपनी ओर से कुछ विज्ञापनों (जिसमें आवश्यक उद्घोषणा जोड़ी गई थी) के माध्यम से पीठ के समक्ष अजित गुट का बचाव करने की कोशिश की। शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को करेगी।