हिंदू धर्म में नव संवत्सर का महत्व अनन्य साधारण है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, हिंदुओं के नव वर्ष का आरंभ है। इसी दिन सृष्टि की निर्मिति हुई थी, इसलिए यह केवल हिंदुओं का ही नहीं अपितु अखिल सृष्टि का नव वर्ष आरंभ है। चैत्र शुद्ध प्रतिपदा को वर्ष आरंभ करने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं। इस वर्ष यह 9 अप्रेल को है।
नव संवत्सर तिथि : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
वर्षारंभ : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही क्यों? इसका प्रथम उद्गाता वेद है। वेद अति प्राचीन वांग्मय है। इसके बारे में दो राय नहीं है। द्वादश मासैः संवत्सरः ऐसा वेद में कहा गया है। वेदों ने बताया इसलिए सम्पूर्ण संसार ने मान्यता दी। वर्ष आरंभ का दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है।
नव संवत्सर नैसर्गिक महत्व : यह वसंतॠतु के प्रारंभ का दिन है। सर्व ऋतुओं में बहार लाने वाली ऋतु है, वसंत ऋतु। इस काल में उत्साहवर्धक, आह्लाददायक एवं समशीतोष्ण वायु होती है। शिशिर ऋतु में पेडों के पत्ते झड़ चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडों में कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं। पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं। कोयल की कूक सुनाई देती है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण जी की विभूतिस्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है।
नव संवत्सर का ऐतिहासिक महत्व
राम द्वारा बाली का वध किया जाने वाला दिन : भगवान राम ने इसी दिन बाली का वध किया था।
ब्रह्म ध्वज ऊंचाई पर स्थापित करने का कारण : जिस दिन भगवान राम रावण के वध के बाद अयोध्या वापस लौटे, उस दिन भगवान राम के विजय के प्रतीक स्वरूप एवं लौटने पर आनंद प्रकट करने हर घर में ब्रह्म ध्वज स्थापित किया गया । विजय का प्रतीक ऊंचा होता है इसलिए ब्रह्म ध्वज ऊंचाई पर स्थापित करते हैं।
शालिवाहन शक प्रारंभ होने का दिन : शक राजाओं ने हुणों को पराजित करके विजय इसी दिन प्राप्त की। इस दिन से ही शालिवाहन शक प्रारंभ हुआ क्योंकि इस दिन शालिवाहन ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी।
नव संवत्सर मनाने के पीछे के ऐतिहासिक कारण
नव संवत्सर का आध्यात्मिक महत्व -: यह सृष्टि की निर्मिति अर्थात सतयुग के प्रारंभ का दिन है। ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया अर्थात सतयुग का प्रारंभ इस दिन हुआ। इसलिए इस दिन वर्ष आरंभ किया जाता है। नव संवत्सर चैत्र प्रतिपदा यही पृथ्वी पर वास्तविक वर्षारंंभ दिन है। नव संवत्सर चैत्र प्रतिपदा को प्रारंभ होने वाले नवीन वर्ष का कालचक्र विश्व की उत्पत्ति काल से संबंधित होने से सृष्टि नवचेतना से परिपूर्ण होती है।
नव संवत्सर चैत्र प्रतिपदा के दिन प्रारंभ होने वाले नव वर्ष की तुलना सूर्योदय के समय प्रारंभ होने वाले तेजोमय दिन से कर सकते हैं, प्रकृति नियम के अनुसार की गई बातें, कार्य मानव के लिए पूरक अर्थात लाभदायक होती हैं। इसी तरह उसके विपरीत की हुई बातें मानव के लिए हानिकारक होती हैं। इसलिए नव संवत्सर चैत्र प्रतिपदा के दिन ही नव वर्ष का प्रारंभ मानना हमारे लिए हितकर है।
नव संवत्सर चैत्र प्रतिपदा ; साढे तीन मुहूर्तों में से एक : नव संवत्सर,अक्षय तृतीया, दशहरा एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा आधा। ये साढे तीन मुहूर्त माने जाते हैं। साढे तीन मुहूर्त की विशेषता यह है कि अन्य दिनों में किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त देखना पड़ता है परंतु इन विशेष दिनों में मुहूर्त नहीं देखना पड़ता। इन दिनों कोई भी घटिका शुभ मुहूर्त ही होती है।
प्रत्येक कदम समृद्धि के लिए आगे बढाने की सीख देने वाली चैत्र शुक्ल प्रतिपदा : चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को शुभ संकल्प कर ब्रह्मध्वज स्थापित करना चाहिए। नव संवत्सर संकल्प शक्ति का गूढत्व (गहनता) दर्शाता है। हमारा प्रत्येक कदम हमारी समृद्धि के लिए अब आगे ही बढ़ता रहेगा, ऐसा प्रतिपदा सूचित करती है। इसलिए इस दिन शुभ संकल्प करने पर वह संकल्प हमारे जीवन के लिए फलदायी होता है। इसलिए ही सत्य संकल्परूपी ब्रह्मध्वज की स्थापना की जाती है। – परात्पर गुरु परशुराम माधव पांडे महाराज
नव संवत्सर की शुभकामनाएं
सर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तुनिरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख माप्नुयात्।।
अर्थ : पृथ्वी के सारे जीव सुखी एवं निरामय अर्थात (रोग मुक्त) हों। सभी का कल्याण हो। सबकी एक दूसरे की ओर देखने की दृष्टि शुभ एवं कल्याणमयी हो एवं किसी को भी दुख प्राप्त न हो।
अतः ऊपर वर्णन किए गए अनुसार इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सत्य संकल्प कर वह प्रत्यक्ष में साध्य हो, इसलिए कृतिशील भक्ति के लिए मूर्त स्वरूप ध्वज की स्थापना आनंद पूर्वक करके कहें – ऊँ शांति शांति शांति!
संदर्भ : सनातन संस्था का ग्रंथ त्यौहार, धार्मिक उत्सव, एवं व्रत