महाराणा प्रताप जयंती की पूर्व संध्या पर कार्यक्रम
अजमेर। महाराणा प्रताप जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने महापुरुषों के संघर्ष एवं बलिदान की गाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की बात कही।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयंती की पूर्व संध्या पर कार्यक्रम का आयोजन महाराणा प्रताप समारोह समिति, भारतीय इतिहास संकलन समिति, अजमेर विकास प्राधिकरण, नगर निगम अजमेर, राजस्थान क्षत्रिय महासभा, भारत विकास परिषद तथा पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को पुष्कर घाटी स्थित महाराणा प्रताप स्मारक पर किया गया।
नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि भारतीय संस्कृति के तीन मूल मंत्र हैं। इनमें भूतकाल में किए गए अच्छे कार्यों की जानकारी देकर अगली पीढ़ी में राष्ट्र और समाज के प्रति गौरव का भाव जगाना। पूर्व में की गई त्रुटियों की पुनरावृत्ति रोकने का प्रयास करना। भारतवर्ष के महाराणा प्रताप सहित समस्त राजाओं ने जनकल्याण और संघर्ष का कार्य एक साथ किया। चोल वंश के वैभवशाली साम्राज्य की जानकारी देश को जीवट देती है।
उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मूल भारतीय शिक्षा पद्धति को माना था। इस कारण मैकाले के द्वारा गुरुकुल बंद करवाकर नई शिक्षा पद्धति आरंभ की गई। हमारे पूर्वजों ने मातृभूमि की अस्मिता, सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष तथा बलिदान दिया। इसकी जानकारी नई पीढ़ी को दी जानी चाहिए। पृथ्वीराज चौहान, महारानी लक्ष्मीबाई, महाराजा सूरजमल छत्रपति शिवाजी महाराज आदि के विकृत किए गए इतिहास को ठीक कर नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाना चाहिए।
देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए नई पीढ़ी को हमारे गौरवशाली इतिहास की जानकारी देना आवश्यक है। वीर महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लें। उनके स्वप्न के अनुसार सुदृढ़ राष्ट्र बनाने में जी जान से लग जाएं। बालक की प्रथम गुरु माता होती है। वह गर्भ से ही बालक को शिवाजी, अभिमन्यु और महाराणा प्रताप बनाने की क्षमता रखती है। हमें अपने बच्चों को विकृत इतिहास से दूर रखना चाहिए।
विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि उदयपुर में बनाए गए महाराणा प्रताप गौरव स्थल का सभी को भ्रमण करना चाहिए। भारत वीरों की भूमि रही है। इस भूमि का सपूत महाराणा प्रताप महान है। उनके व्यक्तित्व, शौर्य, त्याग, चरित्र, स्वाभिमान और समर्पण को पूरा स्थान मिलना चाहिए। वे सही मायने में जन राजा थे। उन्हें कोई भी महलों वाले राजा नहीं कह सकते। महाराणा प्रताप ने वंचित एवं दलित समाज को साथ में लेकर देश में को नई दिशा दी थी।
वर्तमान में जातिवाद के जहर को दूर करने में उनकी परंपरा को अपनाने की आवश्यकता है। उनका घोड़ा चेतक भी हमें स्वामीभक्ति की सीख देता है। राष्ट्र एवं समाज के प्रति कर्तव्य का पालन ईमानदारी से करना चाहिए। राष्ट्र को प्रथम मानकर समाज और व्यक्ति को उसके बाद स्थान देना चाहिए। नई पीढ़ी को हमारे राष्ट्रभक्ति के गौरवमय इतिहास की जानकारी दी जानी चाहिए। राष्ट्र रहेगा तो हम रहेंगे। यह महाराणा प्रताप स्मारक प्रत्येक देशवासी को प्रेरणा देता है। शौर्य कभी सो जाए तो राणा प्रताप को पढ़ लेना।
देवनानी ने अजमेर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को महाराणा प्रताप स्मारक पर अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए। इसमें पार्किंग स्थल में टॉयलेट की सुविधा, पानी के लिए बोरवेल तथा लेजर शो को पुनः आरंभ करने के लिए कहा गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नगर संघ चालक खाजू लाल चौहान ने कहा कि इतिहास में गौरवशाली परंपराओं को स्थान मिलना चाहिए। विश्व में भारत ही ऎसा अकेला राष्ट्र है जिसने हजारों वर्षों तक संघर्ष कर अपने आप को अक्षुण्ण रखा। यहां की मिट्टी साहस, शौर्य और पराक्रम की उर्वरा भूमि है। महाराणा प्रताप के भाले, कवच और तलवार का वजन 208 किलो था। यह उनकी क्षमताओं को समझने के लिए पर्याप्त है। विकृत इतिहास और कविताओं से दूर रहना चाहिए। हमारा व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्र चरित्र उत्तम हो यह प्रयास करें। महाराणा प्रताप के द्वारा ली गई प्रतिज्ञा को केंद्र में रखकर प्रत्येक नागरिक को प्रतिज्ञा लेनी चाहिए।
चित्रकूट धाम के उपासक पाठक जी महाराज ने कहा कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जागृत रहकर राष्ट्र धर्म का पालन प्रथमतः करना चाहिए। राष्ट्र निर्माण में लगे अदृष्ट व्यक्तियों का सम्मान करना आवश्यक है। राष्ट्रभक्ति का सर्वाेत्कृष्ट उदाहरण महाराणा प्रताप है। उन्होंने महाराणा प्रताप स्मारक की स्थापना में तत्कालीन यूआईटी अध्यक्ष धर्मेश जैन के योगदान की सराहना भी की। महेंद्र सिंह रावत ने कहा कि महाराणा प्रताप ने भारतीय संस्कृति और सम्मान को बचाए रखने के लिए सर्वाेच्च कार्य किया।
निर्मल आश्रम के स्वामी डॉ. रामेश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि भूतकाल को बदला नहीं जा सकता। वर्तमान को बदलने का प्रयास करना सभी का कर्तव्य है। इससे भविष्य स्वतः ही बदल जाएगा। भारत भूमि पर जन्म लेने वाले सभी क्षत्रिय बनकर धर्म रक्षा का कार्य हाथ में लें। राष्ट्र के प्रति मोह रखें और मंच, माला तथा माइक से दूर रहकर जमीनी स्तर पर कार्य करें। समस्त युवाओं का धर्म अग्निवीर के रूप में सेवा देने का है। इससे देश सुदृढ़ होगा। राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान का आकलन स्वयं व्यक्ति को ही करना होगा।
धर्म जागरण मंच के क्षेत्रीय प्रचारक ललित शर्मा ने महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, राणा रतन सिंह, रानी पद्मिनी, मीराबाई एवं महाराणा सांगा के आपसी रिश्तों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। साथ ही महाराणा प्रताप के पास दो तलवार रखने का रहस्य भी बताया। हिंदवी सूरज के नाम से जाने जाने के बारे में भी जानकारी दी। महाराणा प्रताप के सिद्धांतों को जीवन में उतारने का आवाह्व किया। नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने महाराणा प्रताप स्मारक के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी।
विभिन्न प्रतियोगिताओं क विजताओं का बांटे पुरूस्कार
महाराणा प्रताप जयंती के कार्यक्रमों की श्रृंखला में विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया था। इनके विजेताओं को समारोह में सम्मानित किया गया। महाराणा प्रताप को जानें लिखित प्रतियोगिता के प्रथम विद्यार्थी वर्ग में हेमंत शर्मा प्रथम, नितिन पाबूवाल तथा अनमोल रुणवाल द्वितीय एवं गौरांग सोनी, निशा रावत तथा सुरेश उदय तृतीय स्थान पर रहे। इस प्रतियोगिता के द्वितीय वर्ग में प्रथम स्थान पर दिव्यांश सक्सैना, द्वितीय स्थान पर निमिषा गोयल तथा कुनिका बारिया एवं तृतीय स्थान पर साकेत मेहरा रहे।
इसी प्रकार महाराणा प्रताप लेख प्रतियोगिता के विद्यार्थी वर्ग में अनुभूति पचारिया प्रथम, दीपक गुर्जर और प्रेरणा मील द्वितीय तथा आयुष बंजारा और रोशनी माइकल तृतीय एवं द्वितीय वर्ग में सत्तार खान कायमखानी प्रथम, अलका शर्मा द्वितीय तथा गीता देवी और प्रवीण जाट तृतीय रहे। क्षत्रणी बनो प्रतियोगिता में वीर क्षत्रणी के रूप में कई वीरांगनाओं ने भाग लिया। इनमें प्रथम नीलम तंवर, द्वितीय बबीता चौहान, तृतीय विनोद कंवर एवं सरिता शेखावत रही। सांत्वना पुरस्कार रेणु सारस्वत एवं सीमा सुतैल को मिला। महाराणा प्रताप बनो प्रतियोगिता में सुखद सारस्वत विजेता रहे।