नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आम आदमी पार्टी को नई दिल्ली के राउज एवेन्यू स्थित कार्यालय परिसर खाली करने के लिए दी गई समय सीमा 15 जून को आगे बढ़ाने का अंतिम अवसर के तौर पर सोमवार को आगामी 10 अगस्त तक कर दी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की अवकाशकालीन पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलों पर विचार के बाद यह आदेश पारित किया। पीठ ने दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आप की इस दलील को ठुकरा दिया कि उसका वर्तमान कार्यकाल परिसर खाली करना राष्ट्रीय राजनीतिक दल को वैकल्पिक कार्यालय स्थान आवंटित किए जाने की व्यवस्था के अधीन होना चाहिए।दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी आप ने शीर्ष अदालत द्वारा गत 4 मार्च के पिछले आदेश में संशोधन करने की मांग की थी।
दिल्ली की अदालतों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से पेश हुए अधिवक्ता के परमेश्वर ने कहा कि यह स्थान 2020 से ही उसे (अदालत परिसर के विस्तार के लिए) आवंटित किया गया था। उन्होंने कहा कि हमें पिछले चार साल से स्थान का कब्जा नहीं मिला है। यदि न्यायालय (उच्चतम न्यायालय) समय बढ़ा रहा है तो यह अंतिम अवसर होना चाहिए। हम आवेदक पक्ष (आप) और केंद्र सरकार के बीच झगड़े के कारण पीड़ित नहीं होना चाहते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि गत 04 मार्च को इस न्यायालय ने ‘आप’ को 15 जून तक विचाराधीन परिसर खाली करने का निर्देश दिया था। परमेश्वर ने शीर्ष अदालत के समक्ष कहा कहा कि आवंटित जमीन नहीं मिलने के कारण दिल्ली के राउज एवेन्यू (अदालत परिसर) का विस्तार रुका हुआ है।
पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अंतिम अवसर के तौर पर हम रजिस्ट्री के समक्ष आवेदक की वचनबद्धता के साथ 10 अगस्त तक परिसर खाली करने के लिए समय बढ़ाते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 5 जून को ‘आप’ की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें केंद्र सरकार को राष्ट्रीय पार्टी (आप) को अस्थायी आधार पर अपने कार्यालय के रूप में एक आवास स्थान का उपयोग करने की अनुमति देने का आदेश देने की मांग की गई थी। यह स्थान दिल्ली के एक मंत्री के कब्जे में है।
हालांकि, न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने इस मामले में केंद्र सरकार को छह सप्ताह के भीतर पार्टी (आप) के अनुरोध पर विचार करने का निर्देश देने के साथ कहा था कि आप एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र से एक विस्तृत आदेश पारित करके यह निर्णय लेने के लिए भी कहा था कि जब अन्य सभी राजनीतिक दलों को इस उद्देश्य (कार्यालय) के लिए समान आवास मिले हुए हैं तो सामान्य पूल से एक भी आवास इकाई उसे (आवेदनकर्ता को) क्यों नहीं आवंटित की जा सकती है।