परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। राजस्थान के प्रमुख पहाडी पर्यटन स्थल माउण्ट आबू में अर्से से अटकी साल गांव बांध परियोजना को 42 महीने में पूरा करना था, लेकिन वर्कआर्डर दिए जाने के एक साल बाद तक इसकी नींव तक नहीं रखी गई है। इसे लेकर माउण्ट आबू के होटल एसोसिशनों और प्रमुख संस्थाओं ने समय समय पर राज्य सरकार का ध्यानार्कण भी करवाया है।
मुख्य सचिव के लिखे अपने पत्र में होटल ऐसोसिएशन के अध्यक्ष ने बताया कि इस बांध के बन जाने से अगले 100 साल तक माउण्ट आबू में पेयजल की समस्या का निराकरण हो जाएगा। इसके बनने से पेयजल किल्लत की स्थिति में नक्की झील से पेयजल वितरण की समस्या का निराकरण भी हो जाएगा।
इस पत्र में उन्होेंने बताया कि माउण्ट आबू में आजादी के बाद बनने वाला यह पहला बांध है जिसका टेंडर होकर वर्क आर्डर मई 2024 में ही जारी हो गया था। लेकिन, इसका निर्माण षुरू नहीं हुआ है। इसका शीघ्रातीशीघ्र निर्माण शुरू करवाने का अनुरोध किया गया है।
-2071 की जनसंख्या को आधार मानकर बनना था
जो हाल भारत के मासिनराम का है वही हाल राजस्थान के माउण्ट आबू का है। एक में देश की दूसरी जगह राजस्थान की सबसे ज्यादा बारिश रेकाॅर्ड की जाती है। लेकिन, यहां पर पानी एकत्रीकरण की समुचित व्यवस्था नहीं होने से बारिश के छह महीने बाद ही पानी की किल्लत से स्थानीय लोगों और यहां आने वाले लाखों पर्यटकों को जूझना पडता है।
सरकार ने 44 साल से लंबित सालगांव परियोजना को वित्तीय मंजूरी दे दी थी। अभी माउंट आबू शहर की आबादी 42 हजार है और 2071 की आबादी को आधार मानकर इस पेयजल परियोजना को तैयार किया गया है। सालगांव से करीब 3 किलोमीटर दूर 250 करोड़ की लागत से बनने वाले इस बांध की भराव क्षमता 155 एमसीएफटी है और ये बांध परियोजना सिर्फ माउंट आबू को पीने का पानी मुहैया कराने के लिए ही बनाया गया है।
27 जनवरी 2023 में इसका 111 करोड 11 लाख 11 हजार 786 का टेंडर कोटा की मैसर्स मोहम्मद कंस्ट्रक्षन के नाम खुला था। इसे 26 मई 2023 को शुरू करके 42 महीने में पूरा करना था। लेकिन, इसकी एक ईंट तक नहीं रखी गई है।
-अंग्रेजों के बनाए बांध का आसरा
माउंट आबू में अभी अपर कोदरा व लोअर कोदरा बांध से पीने का पानी मिल रहा है। गर्मियों में जब ये दोनों बांध सूख जाते हैं तो इमरजेंसी में नक्की झील से भी शहर में जलापूर्ति की जाती है। पीएचईडी मंत्री बीडी कल्ला की अध्यक्षता में गत 14 फरवरी को हुई पीपीसी की बैठक में सालगांव बांध परियोजना को प्रशासनिक स्वीकृति दी गई थी। 16 मई 2023 को इसका वर्क आर्डर दे दिया गया था।
-कई बार निरस्त हुई
1977 में शुरू हुई सालगांव बांध परियोजना की स्कीम कई बार बनी और कई बार निरस्त हुई। 1979 में तकनीकी टिप्पणी की वजह से निरस्त निरस्त कर दी गई थी। तब इस योजना की लागत सिर्फ 27 लाख आंकी गई थी। 1980 में यह फिर से शुरू हुई, लेकिन उसके बाद यह 16 वर्ष ठंडे बस्ते में पड़ी रही। 1996 में इस परियोजना को पुनर्जीवित किया गया और कई सालों तक इसकी मशक्कत चली।
2010 में कैचमेंट एरिया पर बांध की मूल लागत से कई गुणा अधिक व्यय आने से इसे अव्यावहारिक बताकर दूसरी बार निरस्त कर दिया। 2012 में संसदीय कमेटी के मौका निरीक्षण के बाद फिर योजना का प्रारूप बना। 2016 में मुख्यमंत्री आपके द्वार कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने ये मामला उठा।
इसकी तकनीकी खामी बताने के बाद माउण्ट आबू के तत्कालीन डीएफओ केसी श्रीवास्तव और तत्कालीन उपखण्ड अधिरी अरविंद पोसवाल को लगातार बैठक करके सात दिन में इसके जमीन संबंधित खामी को दूर करने को कहा। दोनों ने सबमर्ज एरिया की जमीन को बाहर निकालकर सिर्फ कैचमेट एरिया की जमीन को षामिल करते हुए कुल भूमि का माप राज्य सरकार को भेज दिया।
2016 में राज्य वाइल्ड लाइफ बोर्ड और 2017 में नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने परियोजा को सैद्धांतिक स्वीकृति दी। अगले ही वर्ष 2018 में करीब 250 करोड़ की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) संबंधित विभाग की ओर से सचिव मंडल को भेजी गई। 31.67 लाख रुपए में डीपीआर तैयार हुई। प्रशासनिक स्वीकृति के बाद अब वित्तीय स्वीकृति भी मिल गई।
अषोक गहलोत सरकार में पीएचईडी मंत्री बीडी कल्ला की अध्यक्षता में 14 फरवरी को हुई पीपीसी की बैठक में 250 करोड़ की सालगांव बांध परियोजना को प्रशासनिक स्वीकृति दी थी। इसके बाद 22 जुलाई को हुई बैठक में वित्तीय स्वीकृति भी मिल गई। जनवरी 2023 में टेंडर होकर इसका वर्क आॅर्डर भी हो गया। इसके बाद अब भी इस पर काम नहीं हुआ है।
-पर्यटन उद्योग प्रमुख
माउण्ट आबू सिरोही जिले में पर्यटन का प्रमुख क्षेत्र है। इसकी वजह से आबूरोड में भी पर्यटन क्षेत्र से जुडी गतिविधियां बढने से अर्थव्यवस्था को गति मिल रही है। अषोक गहलोत सरकार के द्वारा माउण्ट आबू के मास्टर प्लान के एनजीटी के आदेशानुसार अपडेशन को अटकाने से वैसे ही यहां भवन निर्माण रूका हुआ है।
जिससे यहां की पर्यटन से जुडे व्यवसाय के अटकने से राज्य सरकार यहां की पर्यटन संभावना से समुचित आय नहीं कर पा रही है। ऐसे में सालगांव बांध के भी लंबित होने से स्थापित पर्यटन गतिविधियां भी प्रभावित होने की आशंका है।