प्रयागराज। उच्चतम न्यायालय के तलाक के बाद ‘शौहर से गुजारा भत्ता’ पाने के अधिकार के निर्णय का मुस्लिम महिलाओं ने स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक फैसला करार दिया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की अधिवक्ता और नामचीन सामाजिक कार्यकर्ता नाजिया नफीस ने 10 जुलाई के उच्चतम न्यायालय का तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को उनके शौहर से गुजारा भत्ता का अधिकार देने के फैसले का स्वागत करते हुए राहत और मानवीय संवेदनाओं वाला बताया है।
उन्होंने कहा कि न्यायालय के फैसले से मुस्लिम महिलाओं को उनका वाजिब अधिकार मिलेगा वहीं दूसरी तरफ उनकी इज्जत कमतर आंकने वाले मुस्लिम पुरूषों में एक डर का माहौल बनेगा कि तलाक के बाद महिला न्यायालय का सहारा लेकर उससे भरण-पोषण ले लेगी। इसके अलावा एक फीसदी परिवार टूटने की आशंका में भी कमी आ सकती है।
अधिवक्ता ने रविवार को बातचीत में कहा कि न्यायालय का यह फैसला सराहनीय है लेकिन यह फैसला और पहले आना चाहिए था। उनका कहना है तलाकशुदा महिलाओं की जिम्मेदारी से मां-बाप और भाई-भाभी सभी बचना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यह फैसला उनके लिए अंधेरे में उजाले की एक किरण बनी है। तलाकशुदा पत्नी का शौहर उसे आसानी से गुजारा भत्ता नहीं देगा जब तक वह दोबारा न्यायालय का सहारा नहीं लेती है।
सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि तलाकशुदा महिलाओं को इतना सम्बल तो मिला है कि अगर वह अदालत का दरवाजा खटखटाएगी तो गुजारा भत्ता शौहर को देना पडेगा। उनका कहना है कि महिला और पुरूष दोनों को सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि इस्लाम में महिलाओं को ऊंचा मुकाम हासिल है। महिलाओं की रजामंदी को महत्ता दी गई है। निकाह में भी महिला की रजामंदी को तरजीह दी गई है। पहले महिला का निकाह पढाया जाता है उसके बाद ही पुरूष का निकाह होता है। मौलवी द्वारा महिला का निकाह पढने के बाद तीन बार कबूल बोलने पर ही वह सफल माना जाता है।
उन्होंने बताया कि इस्लाम में तीन तलाक को कभी मान्यता दी ही नहीं गई। लोग धर्म काे अपने हिसाब से परिभाषित कर इस्तेमाल करते हैं। न्यायालय द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया गया। न्यायालय के फैसले के बाद केन्द्र सरकार ने 19 सितंबर 2018 कानून बनाते हुए एक साथ ‘तलाक-तलाक-तलाक’ बोलकर निकाह खत्म करने को अपराध की श्रेणी में लाया। इस अपराध के लिए अधिकतम तीन साल कैद की सजा का प्रावधान बनाया।
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी के बयान पर उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को समाज में उसका सम्मान मिलने लगे, पुरूष उनको उनका सम्मान और अधिकार दे तो उन्हें कोर्ट- कचहरी जाने की जरूरत क्या है। वह तो मजबूरी में ही अदालत की सहारा लेती है। उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय के इस महत्वपूर्ण फैसले का ऐसी महिलाएं जो खुद रिश्ते में रहना पसंद नहीं करती हैं दुरूपयोग कर पुरूषों को ब्लैकमेल कर सकती हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड गुजारा भत्ते पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का करेगा विरोध