राजीव नगर आवासीय योजना घोटालाः विधायक देवासी ने दी आपात बैठक की इजाजत

राजीव नगर आवासीय योजना

सबगुरु न्यूज-सिरोही। जिला मुख्यालय पर सबसे बडे जमीन घोटाले में आम जनता को चूना लगाने की गंभीरता को समझते हुए विधायक ओटाराम देवासी ने सिरोही सभापति को नगर परिषद की आपात बैठक बुलवाने की सहमति दे दी हैं। वर्तमान में विधानसभा सत्र चल रहा है, ऐसे में नियमानुसार जिला परिषद, पंचायत समितियों, नगर निकायों की बैठकें आहूत नहीं की जा सकती हैं।

विधायक इन निकायों के सदस्य होते हैं ऐसे में यदि आपात स्थिति में बैठक आयोजित करनी जरूरत पडे तो विधायक की अनुमति लेकर ही आहूत की जा सकती है। राजीव नगर आवासीय योजना की आम जनता के हित वाली जमीन को नगर परिषद के आयुक्त योगेश आचार्य ने अनियमितता बरतते हुए खतरे में डालने का काम कर दिया। ऐसे में मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए विधायक ने बैठक आहूत करनेक अनुमति दी है।
-बाहर आया योगेश आचार्य का लिखा पत्र
सबगुरू न्यूज को योगेश आचार्य के द्वारा नगर परिषद के सुप्रीम कोर्ट में वकील को लिखा पत्र प्राप्त हुआ है। इस पत्र की इबारत में जो तारीखें सामने आई है। उससे ये स्पष्ट है कि इसमें सिर्फ योगेश आचार्य ही नहीं अन्य आयुक्त भी शामिल थे। योगेश आचार्य ने तो इस जमीन को खुर्दबुर्द करने की अंतिम कील मारी थी। योगेश आचार्य ने अपने पत्र में छह बिंदु के इस पत्र की भाषा बता रही है कि योगेश आचार्य ने ये पत्र सिरोही की जनता, नगर परिषद और राज्य सरकार के हित की बजाय पूरी तरह से दूसरे पक्ष की पैरवी की है। ये काम  सिर्फ अनुसूचित जाति के परिवादी के हित के लिए तो नहीं ही किया होगा। इतना ही नहीं इस पत्र के माध्यम से इस घोटाले के पूरे ईकोसिस्टम में शामिल स्थानीय नेताओं और अधिकारियों का पर्दाफाश हो सकता है।
– प्रशासनिक समिति को ये सब अधिकार ही नहीं
दरअसल, लालसिंह राणावत के बाद योगेश आचार्य ने भी अपने पत्र के बिंदु संख्या तीन में सिरोही नगर परिषद के 03 अक्टूबर 2013 को लिए गए निर्णय का जिक्र किया गया है जिसमें नगर परिषद के द्वारा अनुसूचित जाति के परिवादी के पक्ष में जमीन पर अपना दावा छोडने की बात लिखी है। नगर परिषद का मतलब होता है नगर परिषद बोर्ड। जबकि इस दिन नगर परिषद बोर्ड के द्वारा ऐसा कोई निर्णय नहीं किया गया थां। दरअसल, जयश्री राठौड के सभापति रहते हुए 2013 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले जयश्री राठौड ने हाईकोर्ट मे इस केस में नगर परिषद के अधिवक्ता को एकल हस्ताक्षर युक्त पत्र लिखकर मामले को विड्रा करने लिखा था।

इसमें हवाला दिया गया था कि 03 अक्टूबर 2013 को प्रशासनिक समिति ने निर्णय लेकर राजीव नगर आवासीय योजना की भूमि का हक त्याग करने का निर्णय लेने का हवाला दिया था। सबगुरू न्यूज ने 2016 में इस संबंध में प्रकाशित खबर में प्रशासनिक समिति के सभी सदस्यों से बात करके ये खुलासा किया था कि ऐसा कोई निर्णय प्रशासनिक समिति ने किया ही नहीं था। यही नही जयश्री राठौड के द्वारा जारी किए गए पत्र का खुलासा होने पर प्रशासनिक समिति की बैठक के रजिस्टर मे ंइसकी प्रोसेडिंग भी ढूंढी गई, लेकिन, नहीं मिली।

यही नहीं इस पत्र का खुलासा होने पर तत्कालीन आयुक्त शिवपालसिंह और समिति सदस्यों ने नोट ऑफ डिसेंट भी बनाकर डीएलबी को और न्यायालय को भेजा था। ये तो एक पक्ष हुआ। दूसरा पक्ष ये है कि जिस प्रशासनिक समिति की बैठक में राजीव नगर आवासीय योजना की भूमि पर नगर परिषद का हक त्याग करने का निर्णय होना बताया जा रहा है उसे इस तरह के अधिकार है ही नहीं। प्रशासनिक समिति का अधिकार नगर परिषद के कार्यों की मॉनीटरिंग करना, नगर परिषद मे आवश्यक पोस्टों की संस्तुति करने का है। रेवेन्यू के संबंध में उसे किसी तरह का अधिकार नहीं है। पूर्व गठित प्रशासनिक समिति में पूर्व नेता प्रतिपक्ष सुरेश सगरवंशी, भगवती व्यास, जितेन्द्र सिंघी, ईश्वरसिंह, प्रकाश प्रजापत, मोहन मेघवाल सदस्य थे। इससे संबंधित खबर लिंक में हैं https://www.sabguru.com/news/state-government-officers-issued-letter-to-release-rajiv-nagar/
– ‘कूटरचित था दस्तावेज’
योगेश आचार्य ने अक्टूबर 2023 के जिस निर्णय का हवाला दिया था उसके संबंध में तत्कालीन प्रशासनिक समिति के सदस्य और पूर्व नेता प्रतिपक्ष सुरेश सगरवंशी ने बताया कि उस समय एक कूट रचित दस्तावेज तैयार किया गया था। उन्होंने बताया कि बैठक हुई थी। उसमें कोई निर्णय नहीं हुआ, लेकिन बैठक में उपस्थित होने वाले सदस्यों के नाम बैठक रजिस्टर में लिखा जाता है। उन्होंने बताया कि बाद में इन्हीं हस्तक्षरों को इस्तेमाल करके हस्ताक्षरों के नीचे ये प्रस्ताव लिखकर एक कूटरचित दस्तावेज तैयार किया गया था। ये जानकारी सामने आने पर समिति के सभी सदस्य तत्कालीन आयुक्त शिवपालसिंह से मिले तो उन्होंने भी कहा था कि प्रस्ताव पर उनके हस्ताक्षर ही नहीं है तो ऐसे प्रस्ताव का सवाल नहीं उठता।

बाद में तत्कालीन उपखण्ड अधिकारी कालूराम खौड के समक्ष उपस्थित होकर सौ रुपये के स्टाम्प पेपर पर इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं लिए जाने का शपथ पत्र सभी सदस्यों ने उपखण्ड अधिकारी को दिया। बाद में कार्यवाहक आयुक्त का चार्ज उनके पास आने पर उन्होने हाईकोर्ट में इस प्रस्ताव को कूटरचित बताते हुए तत्कालीन समभापति के एकल हस्ताक्षर से जारी किए गए पत्र को अवैधानिक बताया था।

तत्कालीन कार्यवाहक आयुक्त कालूराम खौड़ ने फरवरी 2014 को तत्कालीन सभापति को जारी नोटिस में भी ये स्पष्ट लिखा था कि केस विड्रॉ के लिए नगर परिषद के द्वारा प्रस्ताव लिया जाना होता है। इसी के आधार पर राजस्थान हाइकोर्ट में शपथ पत्र प्रस्तुत किया था।

इनका कहना है….
ये गंभीर मामला है। इसलिए मैने इसके लिए नगर परिषद को तुरंत बैठक बुलवाकर इसके संबंध में निर्णय लेने पर सहमति जताई है।
ओटाराम देवासी
पंचायतराज राज्यमंत्री एवं विधायक सिरोही।

 

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