राजीव नगर योजना: आयुक्त का पत्र सरकार और जनता से धोखा, प्रतिद्वंद्वी का लाभ!

 

नगर परिषद के पूर्व आयुक्त योगेश आचार्य द्वारा सुप्रीम कोर्ट में नगर परिषद के अधिवक्ता को लिखा गया पत्र।
नगर परिषद के पूर्व आयुक्त योगेश आचार्य द्वारा सुप्रीम कोर्ट में नगर परिषद के अधिवक्ता को लिखा गया पत्र।

सबगुरु न्युज – सिरोही। राजीवनगर आवासीय योजना की जमीन पर सिरोही के मध्यम, निम्न मध्यम और गरीब लोगों को बेदखल करने के लिए डेढ़ दशक से एक संगठित समूह काम कर रहा है।

इसमें कई लोगो की भूमिका समय समय पर सामने आई है।
प्रशासन के इन लोगों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाने के कारण इनके हौसले टूट नहीं रहे हैं। ये बात अलग है कि एक ही तरह के मामले में बार बार मुंह की खाने के बाद भी किसी संशोधित प्लान की जगह उसी प्लान की पुनरावृत्ति भी कर रहे हैं। सबगुरु न्युज के पास वो ताजा पत्र भी आ चुका है जिसे लेकर वर्तमान में बवाल मचा हुआ है।
इस पत्र की ताबीर और इसमें इस्तेमाल कानूनी शब्दावली स्पष्ट बता रही है कि इस पत्र पर हस्ताक्षर भर आयुक्त के हैं, इसकी जुबान किसी कानून के जानकार की है। अब ये कानून का जानकर नगर परिषद से ही जुड़ा हुआ है या बाहर का है ये जांच का विषय है। वैसे लोगों को सबसे ज्यादा संदिग्ध उन नेताओ की चुप्पी लग रही है जो नगर परिषद में हवा भी चल जाए तो उसकी सूचना तुरंत सोशल मीडिया पर डाल देते हैं, लेकिन सबगुरु न्युज द्वारा 20 जुलाई को इस मामले के खुलासे से पहले आठ महीने से इस मुद्दे पर चूं तक नहीं की।
– नगर परिषद के अधिवक्ता को ये लिखा था
नगर परिषद के तत्कालीन आयुक्त योगेश आचार्य के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में राजीव नगर आवासीय परियोजना के नगर परिषद के अधिवक्ता को केस विड्रा करने के लिए जो पत्र लिखा उसमे 6 बिंदु थे। इस पत्र में बिंदुवार लिखा कि
1. राजीव नगर आवासीय योजना की एसएलपी वाली भूमि को इकरारनामा दिनांक 16.11.1989 एवं संलग्न विक्रय विलेख 253/1989 (निष्पादन दिनांक 27.03.1989 एवं पंजीयन दिनांक 06.05.1989) के जरिये पूर्व में नगर पालिका की योजना के लिए ली गई थी। लेकिन एससी से गैर एससी / संस्था के इस सौदे में कानूनी प्रावधानों के उल्लघंन के कारण आज भी इस भूमि में एससी खातेदार कायम रहा है। राजस्व रिकार्ड के ऑनलाईन जमाबंदी में भी एससी पक्षकार का नाम ही कायम है। खातेदारी विवाद होने पर रकम वापस लौटाने की विक्रय, पेरा 4 में शर्त थी एवं योजना व उसके आवेदन वगैरह भी प्रभावी नहीं रहे है।

2. यह कि उक्त कृषि भूमि को राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 42ख व उसके संशोधन दिनांक 01.05.1964 के विपरित जाकर तत्कालीन नगर पालिका सिरोही संस्था के नाम खरीदने से एससी से गैर एससी का सौदा व संबंधित समस्त दस्तावेजात प्रारम्भ से विधि शून्य रहे है। जिसको किसी न्यायालय से शुन्य की घोषणा कराने की आवश्यकता नहीं है। जो न्यायालय संबंधित प्रभारी तत्कालीन प्रभावी उपखंड अधिकारी सिरोही के एक विधि स्पष्टीकरण पत्र क्रमांक रीडर/रिट/2008/189 दिनांक 31.10.2008 में स्पष्ट किया गया है। साथ ही राज्य सरकार के राजस्व ग्रुप-6 के द्वारा दिशा-निर्देश पत्रादेश दिनांक 13.11.2006 जारी करके नगर परिषद् नाम के सभी भूमि नामांतरण निरस्त करा दिये थे। एससी की इस कृषि भूमि में पूर्ववत् एससी को ही कायम रखकर इस भूमि प्रकरण को एससी के पक्ष में सरकार ने पुर्णतयाः निस्तारण कर दिया था।

3. यह कि उक्तानुसार उक्त कृषि भूमि के सौदे व दस्तावेजों की महत्ता विधि शून्य हो जाने, राज्यादेश परिपत्र/कानूनी प्रावधान / न्यायिक निर्णय सबकुछ एससी के पक्ष में होने से नगर परिषद् सिरोही ने दिनांक 03.10.2013 को एससी पक्ष में प्रस्ताव पारित किया है। जिसमें एससी पक्ष को स्वतंत्र हक देने के लिए इस भूमि से हक त्याग करने एवं एससी पक्षकार से पूर्व की संपूर्ण विक्रय प्रतिफल राशि व ब्याज पुनः लेकर सौदे संबंधित सभी दस्तावेजों को निरस्त करने, सभी वाद विवादों, अपील वगैरह विड्रो/समाप्त करने, अतिक्रमण हटाने व प्रकरण का पुर्णतया निस्तारण किये जाने इत्यादि जैसे सभी आवश्यक व महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विस्तृत निर्णय पारित किये है।

4. यह कि एससी की कृषि भूमि संस्था भी नहीं ले सकती है, जिसके लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय की एसएलपी संख्या अस्था भी नहीं ले सकती है, जिसके लिए बनाम अण्जनेय ऑर्गेनिक हर्बल प्रा. लिमिटेड या 6741-6742/2012 (राजस्थान राज्य सामन्या का हवाला देते हुए राज्य सरकार के राजस्वाति निर्णय दिनांक 20.000२ परिपत्र क्रमांक 37 राज-7/2010 दिनांक 05.02.2013 पुजारीद्वारा स्पष्टीकरणात राज्य सरकार के राजस्व ग्रुप-8 द्वारा भी एससी पक्ष को कानूनी प्रावधानों, जारी राजकीय परिपत्रों-राज्यादेशों पर न्यायिक निर्णयों का हवाला देते हुए एससी की कृषि भूमि एससी के पास ही कानूनी तौर पर कायम कराने / कायम रखने के लिए राज्यादेश क्रमांक प.6 (54) राज-6/2001 दिनांक 30.05.2022 (संलग्न) में सभी निर्देश जारी किया है। साथ ही सरकार भी रा.का.अधि. की धारा 175 में एससी की कृषि भूमि आवंटन रूल्स-1970, धारा 6 (3) में भी स्पष्ट किया गया है.

5. यह कि उपरोक्तानुसार कानूनी प्रावधानों, राजकीय आदेशों व पारित प्रस्ताव की पालना करके एससी पक्षकार से रकम वापस लेने का तब नगर परिषद् ने सुचना मांग-पत्र क्रमांक नपसि/5288 दिनांक 31.12.2013 को जारी किया था, जिस पर एससी पक्षकार द्वारा दिनांक 06.01.2023 को जमा कराई गई पूर्व सौदे की मुल विक्रय प्रतिफल राशि रूपये 7 लाख 39 हजार 200 को नगर परिषद् ने प्राप्त कर ली है। साथ ही हाल में इस मुल विक्रय प्रतिफल राशि को 34 वर्षों तक नहीं चुकाये जाने का प्रस्तावानुसार ब्याज 9% दर से रूपये 22 लाख 62 हजार 000 का नगर परिषद् सिरोही द्वारा जारी मांग पत्र क्रमांक 5575 दिनांक 17.11.2023 का भुगतान भी एससी पक्षकार से चैक (कैनरा बैंक) द्वारा नगर परिषद् सिरोही ने प्रस्तावानुसार प्रकरण निस्तारण हेतु आपसी करार दिनांक 26.11.2023 को निष्पादित करके दिनांक 27.11.2023 को नोटेरी करा दिया है।

6. यह कि 34 वर्ष में एससी की कृषि भूमि किसी भी तरह गैर एससी / संस्था के नाम नहीं हो सकी। इस भूमि के दस्तावेज / प्रकरण निरस्तीकरण व निस्तारण से नगर परिषद् को बकायदा आर्थिक फायदे/आय भी अत्यधिक होगी। उक्त करार एवं पारित प्रस्ताव दिनांक 03.10.2013 के अनुसार एससी की इस भूमि का एससी के हक में ही निस्तारण कराने का है। जिसके लिए प्रार्थी पक्षकार नगर परिषद् के द्वारा आप अधिवक्ता को सभी संलग्न उक्त दस्तावेज व प्रपत्र भेजकर लेख है कि उक्त एसएलपी का विड्रो/निस्तारण हेतु इस अभ्यावेदन एवं संलग्नक दस्तावेजों को माननीय सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर अग्रीम कार्यवाही व औपचारिकताएँ पूर्ण कराने का श्रम करावे, ताकि माननीय न्यायालय से प्रकरण का उचित निस्तारण किया जा सके।
– कार्यालय की रक्षित प्रति की बजाय दी प्रतिद्वंदी को प्रतिलिपी

पत्र की भाषा स्पष्ट रुप से बता रही है कि उनकी मंशा सिरोही के लोगों को ही नहीं राजस्थान सरकार को भी धोखा देने की रही। इसमें सरकार के पक्ष के किसी भी बिंदु का जिक्र नहीं किया गया। यही नहीं इस पत्र में की है एक हरकत तो स्पष्ट बता रही है। कि आयुक्त ने इस काम को प्रतिवादी के हित का हित साधने के लिए किया है।

इस पत्र को उच्चतम न्यायलय में नगर परिषद के अधिवक्ता को लिखा गया था। ये आधिकारिक अंतर विभागीय पत्र था। लेकिन, इसकी प्रतिलिपि प्रतिवादी को दी भी दी गई थी। ये पत्र के अंत में लिखा हुआ है। लेकिन इसकी कार्यालय को रक्षित प्रतिलिपि का जिक्र नहीं है। इसका मतलब नियमानुसार जो सबसे जरूरी था वो कार्यालय प्रतिलिपि रखी नहीं गई जो आयुक्त की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहा है।

 

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