नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने आबकारी नीति कथित घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार के मुकदमे में आरोपी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने सीबीआई का पक्ष रख रहे केंद्रीय जांच एजेंसी के एसपीपी डीपी सिंह और याचिकाकर्ता केजरीवाल का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी सहित अन्य की दलीलें विस्तारपूर्वक सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
एकल पीठ के समक्ष सिंह ने दलील देते हुए कहा कि आरोपी केजरीवाल भ्रष्टाचार के इस मामले ‘सूत्रधार’ हैं। उनके खिलाफ स्पष्ट सबूत हैं। सिंघवी ने केजरीवाल का पक्ष रखते हुए सीबीआई की दलीलों का जोरदार विरोध किया। उन्होंने अपनी पिछली दलील दोहराते हुए कहा कि सीबीआई की ओर से केजरीवाल की गिरफ्तारी पहले से एक ‘तय गिरफ्तारी’ थी।
ईडी ने 21 मार्च और सीबीआई में 26 जून 2024 को आरोपी मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ्तार किया था। सीबीआई ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुकदमे में मार्च से न्यायिक हिरासत में बंद रहने के दौरान आरोपी मुख्यमंत्री केजरीवाल को अदालत की अनुमति के बाद 25 जून को पूछताछ और फिर 26 जून को गिरफ्तार किया था।
विशेष अदालत ने उसी दिन सीबीआई की गुहार पर उन्हें इस केंद्रीय जांच एजेंसी की तीन दिनों की हिरासत में भेज दिया था। उसके बाद वह विशेष अदालत के आदेश पर न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल में बंद हैं।
इस बीच उच्चतम न्यायालय ने 12 जुलाई को आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति कथित घोटाला से जुड़े धनशोधन के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से दर्ज मुकदमे में अंतरिम जमानत मंजूर की थी। उस वक्त वह सीबीआई की ओर से दर्ज मुकदमे के कारण जेल से रिहा नहीं हो पाए।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को अंतरिम राहत संबंधि आदेश पारित किया था। पीठ ने हालांकि उन्हें राहत देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता (केजरीवाल) की ओर से ईडी द्वारा अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका में उठाए गए कुछ कानूनी पहलुओं पर शीर्ष अदालत की बड़ी पीठ द्वारा विचार किए जाने की आवश्यकता है। इसलिए उनकी अंतरिम जमानत याचिका तब तक स्वीकार की जाती है।