अजमेर। सिन्ध इतिहास एवं साहित्य शोध संस्थान की ओर सिंध स्मृति दिवस व भारत सरकार की ओर से विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की पूर्व संध्या पर ‘बंटवारे में सिंध का त्याग‘ विषयक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसे देशभर के लोगों ने ऑनलाइन देखा। इस संगोष्ठी में प्रो. लक्ष्मी ठाकुर, पूर्व निदेशक, सिंधु शोध पीठ, चिंतक, लेखक व पत्रकार गिरधर तेजवाणी, भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेन्द्र कुमार तीर्थाणी, संस्थान के अध्यक्ष कंवल प्रकाश किशनानी के साथ वार्ता की गई।
सिंध इतिहास एवं साहित्य शोध संस्थान के अध्यक्ष किशनानी ने कहा कि बंटवारे के समय राजनीतिक जागरूकता कम होने के कारण सिंध का वह भू-भाग और ना ही कोई भी हिस्सा हिंद में मिल पाया। हमारे पूर्वजों को हिन्दुत्व की रक्षा के लिए अपनी जमीन, जायदाद, व्यापार और मातृभूमि को त्याग कर देश के विभिन्न प्रान्तों में स्थापित होना पड़ा। आज हम आर्थिक व अन्य क्षेत्रों में विदेशों तक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
प्रो. लक्ष्मी ठाकुर ने कहा कि उस समय के हालात बहुत कठिन थे। हर परिवार आजीविका के लिए संघर्ष कर रहा था। शिक्षा के क्षेत्र में समाज ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे स्थापित होने में कठिनाइयां कम आई। वर्तमान शिक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रोत्साहन व राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के कारण सिंधी समाज को उचित स्थान नहीं मिल पाया, हमें आगे इस ओर विशेष ध्यान देना होगा।
गिरधर तेजवाणी ने कहा कि बंटवारे के 77 वर्ष बाद नई पीढ़ी को व्यापार के अलावा राजनीतिक, प्रशासनिक व साहित्य के क्षेत्र में आगे आना चाहिए। वर्तमान में राजनीति में भागीदारी कम रखने की वजह से हम प्रत्येक क्षेत्र में पिछड़ गए। नई पीढ़ी को जानकारी देनी होगी कि हमारे बडे़ सिंध से विस्थापित होकर जब आए तो कई तकलीफों का सामना करना पड़ा व आज समाज उंचाईयों की तरफ अपना स्थान बनाया है।
महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहा कि सिंध ने महाराजा दाहरसेन के कालखंड से 1947 तक के कई दंश झेले हैं, परन्तु संसार का कोई सिरमौर है तो वह सिंध है। हमें प्रयास करना चाहिए कि सिंधी समाज को भूमिहीन राज्य होने की वजह से राज्य सभा, लोकसभा, विधानपरिषद व स्थानीय निकायों में भारत सरकार को प्रतिनिधित्व देना चाहिए। हम स्वंतत्रता दिवस की तैयारी कर देशभक्ति के कार्यक्रम कर रहे हैं परन्तु सिंध के अलग होने के कारण सिंध स्मृति दिवस के रूप में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आनलाइन संगोष्ठी का संचालन हरी चन्दनानी ने किया, आभार शंकर बदलानी ने दिया।