नई पीढ़ी को सिंध सभ्यता से परिचित करवाना हमारी मुख्य जिम्मेदारी : लखावत

अजमेर। राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने कहा है कि नई पीढ़ी को सिन्ध सभ्यता से परीचित कराना हमारी मुख्य जिम्मेदारी है।

राजस्थान में अजमेर में सिन्धुपति महाराजा दाहिरसेन की 1355वीं जयन्ती के मौके पर सिन्ध इतिहास एवं साहित्य शोध संस्थान और भारतीय इतिहास संकलन समिति के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय ऑनलाइन गोष्ठी ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यशस्वी सिन्ध एवं हमारी भूमिका पर लखावत ने कहा कि सिन्ध सभ्यता का प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है। जब विश्व की अन्य सभ्यताओं में लोग कपड़े पहनना भी नहीं जानते थे, तब सिन्ध सभ्यता अत्यन्त विकसित अवस्था में थी।

उन्होंने कहा कि सिन्ध के बगैर हम अधूरे हैं और हमारे बिना सिन्ध अधूरा है। सिन्ध एवं हिन्द हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, अतः नई पीढ़ी को सिन्ध की सभ्यता से परिचित कराना हमारी मुख्य जिम्मेदारी है।

संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ के सेवानिवृत्त प्रो. मधुर मोहर रंगा ने महाराजा दाहिरसेन एवं उनके बलिदान के साथ-साथ प्राचीन सिंध के ऐतिहासिक स्थानों का उल्लेख करते हुये कहा कि यशस्वी सिन्ध के गौरवशाली परम्पराओं को पाठ्यक्रमों में स्थान दिया जाए। उन्होंने सिन्धी भाषा को उचित स्थान दिलाने के लिये प्रयास किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया।

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के प्रो. अरविन्द पारीक ने कहा कि सिन्ध हमारा मस्तक है, मनुष्य को श्रेष्ठ बनाने में सिन्ध के योगदान को भुला नहीं सकते, क्योंकि सबसे पुरानी सिन्धु घाटी सभ्यता है। सिन्ध पर शोध एवं अध्ययन पाठ्यक्रमों में शामिल करने में हम सबको योगदान देना होगा।

पत्रकार गिरधर तेजवानी ने कहा कि महाराजा दाहिरसेन से आम व्यक्ति भी परिचित नहीं था तब लखावत ने दाहिरसेन स्मारक बनाकर उनके बलिदान एवं उनकी गाथाओं को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। अजमेर स्थित सिंध इतिहास और साहित्य शोध संस्थान में रूपांतरण एवं शोध का कार्य जारी है।

भारतीय इतिहास संकलन समिति के सचिव डॉ हरीश बेरी ने कहा कि सिन्ध के इतिहास की जानकारी लोगों को होना इसलिए भी आवश्यक है कि गुरुवार को कौन बनेगा करोड़पति में प्रश्न पूछा गया कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल ऐसी कौन सी भाषा है जिसके बोलने वालों की संख्या भारत से अधिक अन्य देशों में है। उसका सही उत्तर सिन्धी भाषा था। इतिहास संकलन द्वारा सिन्ध पर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रमों की भी चर्चा अब तक होती है।

भारतीय सिन्धु सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने कहा कि सिन्धी भाषा और सभ्यता को आगे बढ़ाने में भारतीय सिन्धु सभा का बड़ा योगदान है। आनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन कंवल प्रकाश किशनानी ने किया।