रामद्वारा में श्रीमद् भागवत कथा
अजमेर। नला बाजार स्थित रामद्वारा में आयोजित चातुर्मास सत्संग के दौरान रामस्नेही संप्रदाय मेड़ता देवल के महंत 108 श्री रामकिशोर जी महाराज के चातुर्मास के अवसर पर कहा संसार में कर्मयोग ऐसा है जिससे आदमी अपनी उन्नति करता है। भक्ति योग ऐसा है जिसमें भगवान को पाया जा सकता है।
भक्ति में श्रद्धा, आशा और विश्वास का होना बहुत जरूरी है। भगवान का स्मरण करते समय हृदय में किसी भी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए। भावना पर ही भगवान प्रकट होते हैं। श्रद्धा विश्वास दो ऐसे साधन हैं जिससे भगवान को प्रकट किया जा सकता है। साधना में जप व तप और शरीर को कष्ट देकर भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते। मनुष्य के जीवन में निष्काम सेवा, निष्काम भक्ति, निष्काम परोपकार सेवा करने का मन हो तभी साक्षात ईश्वर का दर्शन किया जा सकता है।
महाराज ने कहा कि जब श्री कृष्ण ने उद्धव से कहा कि मैने तुम्हें जो भी बतलाया है उसके अनुरूप बद्रिकाश्रम में जाकर निष्काम भाव से भक्ति करो और ज्ञान का प्रचार करो। इसके पश्चात भगवान कृष्ण ने देखा कि द्वारका में तूफान आया हुआ है अतः उन्होंने द्वारका के महलों का परित्याग कर देने का निर्णय किया। सभी यादव वंश को तीर्थ स्थल पर ले जाकर कहा कि भक्ति करो उन्होंने कहा कि अब मेरी मृत्यु का समय नजदीक है।
इन सबको भूलकर आपस में जुआ खेलने लगे, लड़ने लगे। इस प्रकार में लड़ते-लड़ते थक हार गए और उनके अस्त्र-शस्त्र भी टूट गए। तब वे समुद्र के पास उनकी ऐरा गॉस से एक दूसरे को मारने लगे और इस प्रकार घायल होकर में सभी मर गए। भगवान ने जब यह देखा तो वह बड़े दुखी हुए और भगवान एक वृक्ष के नीचे आकर लेट गए। एक शिकारी के द्वारा मारे गए बाण से भगवान ने अपने शरीर का परित्याग कर दिया।
महाराज ने आज श्रीमद् भागवत कथा से जुड़े कई प्रसंग पर चर्चा करते हुए श्रद्धालुओं को भक्ति प्रेम और श्रद्धा विश्वास आदि के रहस्य बताएं। संत उत्तम राम शास्त्री ने बताया कि रविवार को चातुर्मास के सत्संग और श्रीमद् भागवत कथा की पूर्णाहुति होगी। इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। प्रदेशभर के भक्त और संप्रदाय से जुड़े कई संत भी अजमेर आएंगे। कथा के पश्चात आरती की गई। श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया।