नैनीताल। उत्तराखंड में दुष्कर्म के आरोपी लालकुआं दुग्ध संघ के अध्यक्ष मुकेश बोरा को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिल पाई है। उच्च न्यायालय ने आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
बोरा पर लालकुआं दुग्ध संघ में आउटसोर्स पर काम करने वाली एक महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। यह भी आरोप है कि महिला की नाबालिग बच्ची से भी छेड़खानी की गई है।
आरोपी के खिलाफ लालकुआं थाना में यौन शोषण और यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत अभियोग पंजीकृत है। इसके खिलाफ आरोपी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और गिरफ्तारी पर रोक और उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने की मांग की।
न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की पीठ में इस मामले में मंगलवार को सुनवाई हुई। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था। बुधवार को देर शाम को आदेश जारी किया गया।
आरोपी की ओर से कहा गया कि उस पर लगाये गये आरोप बेबुनियाद हैं। उसे झूठा फंसाया गया है। याचिकाकर्ता की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिये उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। इसके विरोध में सरकार की ओर से कहा गया कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है।
आरोपी का मोबाइल फोन एवं लिखावट और हस्ताक्षर का नमूना जांच के लिए जरूरी है। आगे कहा गया कि आरोपी को संरक्षण देने पर जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
दूसरी ओर पीड़िता की ओर से दलील दी गई कि वर्तमान याचिका जांच में देरी और उस पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए दायर की गई है। दुष्कर्म जैसे जघन्य आरोप है। इसलिए आरोपी संरक्षण का हकदार नहीं है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने साफ-साफ कहा है कि उच्च न्यायालय को ऐसे मामलों में अपनी अधिकारों का प्रयोग संयम से करना चाहिए और आरोपी के पक्ष में अंतरिम संरक्षण का आदेश पारित करने से बचना चाहिए।
अंत में अदालत ने कहा कि अदालत का विचार है कि आरोपी इस स्तर पर अंतरिम संरक्षण का हकदार नहीं है। अतः आरोपी के खिलाफ के मांग को अस्वीकार किया जाता है। अदालत ने इस मामले को सुनवाई के लिए 17 दिसंबर की तिथि नियत कर दी और साथ ही सरकार को विस्तृत जवाबी हलफनामा प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।