न्यायालय ने दिखाई माउण्ट आबू वासियों के प्रति संवेदना, की राहत भरी टिप्पणी

rajasthan Highcourt

परीक्षित मिश्रा

सबगुरु न्यूज-माउण्ट आबू। अपने हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए चुने जाने वाले नेताओं और अधिकारियों से मायूस हो चुके माउण्ट आबू के लोगों के घाव पर न्यायालय ने संवेदना का मलहम लगाया है। उन्होंने सालों से माउण्ट आबू के लोगों को भवन निर्माण मरम्मत से वंचित रखे जाने के सरकार और ब्यूरोक्रेसी के दिया घाव पर राहत का मल्हम लगाते हुए माउण्ट आबू में भवन निर्माण से वंचित किए गए लोगों के प्रति संवेदना जताई है।

शैतानिंसह बनाम राजस्थान सरकार के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय में शुक्रवार को सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश दिनेश मेहता ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि माउण्ट आबू के लोग सालों में अपने घरों के रिनोवेशन और निर्माण की से वंचित हैं। यहां तक की आवासीय क्षेत्र में होने के बाद भी लोग आधारभूत सुविधाओं से वंचित किए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि न्यायालय माउण्ट आबू के में आश्रय स्थल, शौचालय, अतिरिक्त कमरों जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित माउण्ट आबू के उन गरीब और असहाय लोगों की दुर्दशा के प्रति संवेदना रखता है जिनके पास न्यायालय और सक्षम प्राधिकारियों से संपर्क करने का साधन नहीं है। न्यायलय की इस टिप्पणी ने नेताओं और अधिकारियों से मायूस होकर माउण्ट आबू से पलायन करने का मानस बना चुके लोगों में आशा की नई किरण का संचार किया है।

शैतानसिंह बनाम राजस्थान सरकार के इस प्रकरण में माउण्ट आबू से जुडे अन्य प्रकरण को भी क्लब कर दिया गया था। इस सुनवाई के दौरान परिवादी के अधिवक्ताओं ने न्यायालय के समक्ष ये पक्ष रखा कि सरकार के द्वारा 14 अगस्त को पेश किए गए ष्शपथ पत्र के बावजूद माउण्ट आबू का ड्राफ्ट जोनल मास्टर प्लान को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। इसके जवाब में सरकार की तरफ से पेश एडीशनल एडवोकेट जनरल ने कहा कि उनकी कल ही स्थानीय निकाय के संयुक्त सचिव और निदेशक से बात हुई है। उन्होंने जल्द से जल्द जोनल मास्टर प्लान का अंतिम रूप देने को आश्वस्त किया है।

दीवाली से पहले हो सकती है दीवाली

न्यायाधीश दिनेश मेहता के द्वारा माउण्ट आबू के मजबूर लोगों के प्रति संवदेना दिखाने के बाद ये प्रतीत हो रहा है कि माउण्ट आबू में इस बार दीवाली से पहले दीवाली से बडी खुशी मिल सकती है। माउण्ट आबू में करीब तीन दशकों से आम आदमी नया भवन बनाने और अपने पुराने टूटे हुए भवनों की मरम्मत करने से प्रशासनिक तौर पर हाशिये पर डाला हुआ था। यहां तक कि माउण्ट आबू के ईको सेंसेटिव जोन घोशित होने के बाद भी मॉनीटरिंग कमेटी और मॉनीटरिंग कमेटी की उप समिति के द्वारा येनकेन प्रकारेण सशक्तों को रिनोवेशन और मरम्मत के बहाने टूटे भवनों के पुननिर्माण के लिए निर्माण सामग्रियां जारी की गई। लेकिन, ईको सेंसेटिव जोन के नोटिफिकेशन के प्रावधानों के अनुसार लम्बे अर्से से मानीटरिंग कमेटी के द्वारा भी नए निर्माणों की अनुमति और जर्जर भवनों के पुननिर्माण की अनुमति माउण्ट आबू के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को नहीं दी गई।

मॉनीटरिंग कमेटी ने ऐसा पहला प्रयास किया भी तो उसे उपखण्ड अधिकारी कार्यालय ने अटका दिया। शैतानसिंह ने भी नगर पालिका के द्वारा आवंटित भूखण्ड पर लम्बे अर्से से संघर्ष किया। मॉनीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष जिला कलेक्टरों के समक्ष प्रस्तुत हुए, जिला मुख्यालय पर भरी बरसात में सपरिवार धरना दिया, मॉनीटरिंग कमेटी की उप कमेटी के अध्यक्ष के समक्ष कई बार अनुरोध किया। हर कोई उन्हें आश्वासन तो देता लेकिन, मकान बनाने की अनुमति नहीं देता।

जोनल मास्टर प्लान लागू नहीं होने के बहाने अपने मूल हक से वंचित किया जाता रहा। इस समस्या से परेशान पूरा माउण्ट आबू था लेकिन, अंततः शैतानिंसह ने न्यायालय की शरण लेने का साहस दिखाया। उसी साहस और धैर्य का परिणाम ये रहा कि शुक्रवार को सुनवाई के दौरान न्यायाधीश दिनेश मेहता ने माउण्ट आबू के लोगां के प्रति संवेदना दिखाते हुए 15 अक्टूबर से पहले हर हाल में जोनल मास्टर प्लान को अंतिम रूप देकर 18 अक्टूबर को अगली सुनवाई निर्धारित की। ऐसे में तीस साल बाद माउण्ट आबू के लोगों को इस दीवाली से पहले सम्मानजनक रूप से जीने की आशा की किरण नजर आ रही है।

तीन मुख्यमंत्री नही दिलवा सके राहत

माउण्ट आबू की इस समस्या से राहत देने में प्रदेश के तीन मुख्यमंत्री नाकाम रहे। माउण्ट आबू नगर पालिका क्षेत्र और इसके निकट के सात गांव 2009 से पहले अभयारण्य का हिस्सा थे। इससे माउण्ट आबू के लोगों को होने वाली समस्या से अवगत होकर तत्कालीन जिला कलेक्टर सिद्धार्थ महाजन ने इसे अभयारण्य से अलग करके ईको सेंसेटिव जोन बनाने का प्रयास ष्शुरू किया जिससे यहां के लोगों को अभयारण्य वाली पाबंदिया नहीं झेलनी पडे।

इसके बाद जून 2009 को माउण्ट आबू के सात गांवों को ईको सेंसेटिव जोन घोशित करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इस नोटिफिकेशन के अनुसार जोनल मास्टर प्लान लागू होने तक मॉनीटरिंग कमेटी को नए निर्माण, पुनर्निर्माण, मरम्मत, रिनोवेशन के अधिकार दिए गए। लेकिन, मॉनीटरिंग कमेटी ने लोगों को नए निर्माण और जर्जर भवनों के पुननिर्माण से वंचित कर दिया और मरम्मत के लिए कुछ उपखण्ड अधिकारियों ने राहत दी तो कुछ ने माउण्ट आबू के लोगों की नाक में दम किए रखा। जोनल मास्टर प्लान दो साल में लागू करना था। लेकिन, तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने ये नहीं किया। इसके बाद वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं तो दो साल बाद 2015 में जोनल मास्टर प्लान लागू हुआ। लेकिन, बिल्डिंग बायलॉज अटका दिया गया।

वहीं जोनल मास्टर प्लान को भी एनजीटी में चैलेंज कर दिया गया। एनजीटी से 2021 में कुछ संशोधन के साथ जोनल मास्टर प्लान लागू करने का आदेश हुआ तो अशोक गहलोत सरकार ने इसे अटकाए रखा। यही नहीं उन्होंने तो माउण्ट आबू में ईंट, सीमेंट, बजरी की राशनिंग भी उपखण्ड अधिकारियों के हवाले कर दी। कुछ उपखण्ड अधिकारिय तो ऐसे भी  थे जिन्होंने ने तो कथित सत्ताधारी नेताओं और पावर इंफ्लूयेंस लोगों के लिंबडी कोठी जैसे प्रकरण में टनों निर्माण सामग्रियां दी तो आम आदमी का बजरी के दाने के लिए भी तरसा दिया यहां तक कि माउण्ट आबू में भवन निर्माण सामग्री की बिक्री की पाबंदी भी यथावत रखी। जिससे एक बोरी सीमेंट भी 30 किलोमीटर दूर आबूरोड से लानी पड़ती थी।

मॉनीटरिंग कमेटी ने निर्माण सामग्री के लिए स्थानीय स्तर पर दुकानों को लाइसेंस देने का निर्णय किया तो स्वाथी नेताओं ने इसमें बाधा डाल दी। इसके बाद 2023 में सरकार बदल गई। भजनलाल सरकार भी दस महीने में राहत नहीं दे सकी।2030 का जोनल मास्टर प्लान के मात्र 6 साल बचे हैं, 3 सरकारें इसे 13 साल से लागू नहीं कर पाई हैं। 6 साल बाद इस जोनल मास्टर प्लान की मियाद खत्म हो जाएगी। अंततः न्यायालय के हस्तक्षेप से अब कुछ राहत की आशा जगी है।