दिवेर विजय उत्सव व्याख्यानमाला
अजमेर। महाराणा प्रताप ने अपनी जान पर खेलकर मातृभूमि की रक्षा के लिए मुगलों के बार-बार हुए हमलों से मेवाड़ की रक्षा की। उन्होंने अपनी आन, बान और शान के लिए कभी समझौता नहीं किया।विपरीत परिस्थिति में भी कभी हार नहीं मानी। यही कारण रहा है कि महाराणा प्रताप की वीरता के आगे कोई भी वीरगाथा टिकती नहीं है।
अपनी माता महारानी जयवंता बाई से पाए संस्कारों और पालन पोषण से ही वे एक महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष सेनापति बन पाए थे। ये विचार अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राजस्थान (उच्च शिक्षा) की स्थानीय इकाई और प्रताप गौरव केन्द्र उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दिवेर विजय उत्सव व्याख्यानमाला में केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि 1576 में हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच युद्ध हुआ जो कि निर्णायक युद्ध नहीं था। अकबर की सेना के दोनों सेनापति हतोत्साहित होकर मैदान से भाग खड़े हुए किंतु इतिहास में तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया और अकबर को विजयी बताया गया।
अब इतिहास पर नवीन शोध करने की आवश्यकता है जिससे भावी पीढ़ी को सत्य से अवगत करवाया जा सके। महाराणा प्रताप ने अकबर की विशाल सेना के सामने अपने थोड़े से सैनिकों और सीमित संसाधनों के बल पर स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। किन्तु महाराणा प्रताप को महान न बताकर अकबर को महान बताया जाता है जो पूर्णतया असंगत है।
कार्यक्रम में महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. मनोज कुमार बहरवाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की धरती पर जन्म लेने वाले महाराणा प्रताप का गौरव अक्षुण्ण है। 30 साल तक लगातार प्रयास के बाद भी महाराणा प्रताप को अकबर न तो झुका सका और न ही बंदी बना सका। आखिरकार, अकबर को उन्हें पकड़ने का ख्याल दिल से निकाल देना पड़ा। हम राजस्थान के ऐसे अमर सपूत को हृदय से नमन करते हैं।
महाविद्यालय के महाराणा प्रताप सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अतिरिक्त राष्ट्रीय महामंत्री नारायण लाल गुप्ता सहित महाविद्यालय के समस्त संकाय सदस्य और विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन एवं औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन स्थानीय इकाई सचिव प्रो. दिलीप गैना ने प्रस्तुत किया।