अजमेर के गुजराती समाज के गरबा रास में झलकती है गुजराती संस्कृति

अजमेर। शहर में धूम धडाके और डीजे पर बजते गानों पर ​खनकते डांडियों से इतर शांत वातावरण में परंपरागत तरीके से होने वाला गुजराती समाज का गरबा महोत्सव मिसाल बना हुआ है। गुजराती गरबा रास में डांडिये नहीं खनकते बल्कि ताली बजती है। गोल घेरे में नंगे पैर नृत्य कर माता रानी की आराधना की जाती है। आरती भी गुजराती भाषा में गायी जाती है।

गुजराती महामंडल के ट्रस्टी अध्यक्ष चंद्रकात पटेल, सचिव नितिन भाई, सह सचिव राजेश अंबानी का कहना है कि हर साल शारदीय नवरात्र में होने वाले गरबा रास में सभी गुजराती परिवार जुटते हैं। गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। पहले दिन सिर्फ महिलाएं गरबा नृत्य करती हैं इसके बाद छोटे, बडे, महिला, पुरुष, बच्चे सामूहिक रूप से गरबा रास में शिरकत करते हैं। गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा, मंजीरा आदि का ताल देने के लिए प्रयोग होता हैं। वर्तमान में यह आयोजन गुजराती स्कूल परिसर में हो रहा है। पूरी पवित्रता के साथ माता रानी की आराधना की जाती है। पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा इस महोत्सव के दौरान की जाती है।


गरबा नृत्य के लिए महिलाओं के लिए पारंपरिक वस्त्रों में घाघरा, चोली, और दुपट्टा शामिल होता हैं। वहीं पुरूष भी धोती कुर्ता और पगड़ी आदि पहन कर गरबा खेलते है। इसके अलावा, महिलाएं और पुरुष गरबा नृत्य के समय झुमके, बांगड़ी, और अन्य तरह के आभूषण सजने के लिए पहनते हैं। मान्यता है कि गरबा के समय तालियों से जो आवाज उत्पन्न होती है उससे सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसके अलावा जीवन की नकारात्मकता भी समाप्त हो जाती है।

ऐसे होती है घट स्थापना

नवरात्रों की पहली रात्रि को गरबा की स्थापना होती है। गुजराती परंपरा के अनुसार 27 छिद्र वाले मिट्टी के कलश में दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। कलश में 27 छिद्र 27 नक्षत्रों का प्रतीक माने जाते हैं। यह घट दीपगर्भ कहलाता है। कच्ची मिट्टी के सछिद्र घड़े को फूलपत्तियों से सजाकर उसके चारों ओर गरबा रास किया जाता है।