नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6-ए की संवैधानिक वैधता बरकरार रखते हुए इसे चुनौती देने वाली याचिका गुरुवार को बहुमत के फैसले से खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जेबी पार्दीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से कानूनी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति पार्दीवाला ने बहुमत के विचार से असहमति जताई।
मुख्य न्यायाधीश ने फैसले का अंश पढ़ते हुए कहा कि प्रावधान के उद्देश्य को बांग्लादेश युद्ध के बाद की पृष्ठभूमि में समझा जाना चाहिए। संविधान पीठ की ओर से उन्होंने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान था और धारा 6ए विधायी समाधान है। उन्होंने कहा कि धारा 6-ए मानवीय चिंताओं और स्थानीय आबादी की सुरक्षा की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाने के लिए लागू की गई थी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून घरेलू कानूनों को मात नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि धारा 6ए संवैधानिक रूप से वैध है। यह एक वैध कानून है। पीठ ने कहा कि धारा 6ए उन लोगों से संबंधित है जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं, यानी वे लोग जो 26 जुलाई 1949 के बाद पलायन कर गए।
गौरतलब है कि धारा 6-ए 15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शामिल किया गया था। धारा 6ए के तहत जो लोग एक जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच भारत में प्रवेश कर चुके हैं और असम में रह रहे हैं, उन्हें भारत के नागरिक के रूप में खुद को पंजीकृत करने की अनुमति होगी। शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर 2023 को सुनवाई पूरी होने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।